नई दिल्ली। इस बात को पचा पाना बेहद मुश्किल है लेकिन यह वाकई एक चौकानें वाला तथ्य है। कि देश में करीब 80 प्रतिशत दुपहिया चालको को सड़क संकेतो की सही रुप से पहचान नहीं है। जी हां होंडा मोटरसाइकिल एंड स्कूटर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (एचएमएसआई) ने सडक़ सुरक्षा संकेतों के प्रति इनके जागरुकता का स्तर जानने और उनके बर्ताव को समझने के उद्देश्य से राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण ‘होंडा रोड साइन आईक्यू सर्वे’ किया है। जिसमें वाकई में चौकानें वाले तथ्य सामनें आए है।
देश में सडक़ हादसे के कारण होने वाली 31.5 प्रतिशत मौतें दुपहिया वाहनों से जुड़ी होती हैं लेकिन फिर भी यहां के 78 प्रतिशत दोपहिया चालकों को आधे से अधिक सडक़ संकेतों की पहचान नहीं है। पुरुषों की अपेक्षा महिला दोपहिया चालक सडक़ संकेतों को अधिक पहचानती हैं।
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सर्वेक्षण में दोपहिया चालकों को सडक़ सुरक्षा उपायों से रुबरू कराने के अपने प्रयासों को जारी रखते हुए देश के करीब दस प्रमुख शहरों में लगभग 1,500 दोपहिया चालकों के सर्वेक्षण किए गए है।
इन शहरो में किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक 78 प्रतिशत दोपहिया सवार 50 प्रतिशत सडक़ संकेतों को भी नहीं पहचानते। सडक़ संकतों की पहचान के मामले में मुंबई सबसे अधिक जागरूक शहर रहा ,जहां के 79 प्रतिशत दोपहिया चालकों ने आधे सडक़ सुरक्षा संकेतों को बिल्कुल सही पहचाना। इसके बाद पुणे के 63 प्रतिशत और बेंगलुरु के 41 प्रतिशत दोपहिया चालक इन संकेतों को पहचानने में सफल रहे।
इससे यह भी बात सामने आई है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलायें अधिक जागरुक चालक हैं। सर्वेक्षण में शामिल 26 प्रतिशत महिलाओं ने आधे सडक़ संकेतों को पहचाना जबकि बहुसंख्यक स्थिति में होने के बावजूद पुरुषों के मामले में यह आंकड़ा 21 प्रतिशत ही रहा।
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शिक्षित युवा सडक़ संकेतों के लिए जागरूकता का नेतृत्व करते हैं। विभिन्न आयु वर्ग के बीच 20 से 24 वर्ष के युवा सडक़ संकेतों के प्रति सबसे अधिक (31 प्रतिशत) जागरूक हैं जबकि 25 से 44 आयु वर्ग के महज 18 प्रतिशत प्रतिभागी ही आधे सडक़ संकेतों को पहचाने में सफल रहे। दिलचस्प है कि 45 वर्ष से अधिक आयु के 30 प्रतिशत प्रतिभागी आधे सडक़ संकेतों को पहचान सकते थे। करीब 80 प्रतिशत दोपहिया सवार अब भी सचेत करने वाले सडक़ संकेतों और अनिवार्य सडक़ संकेतों में अंतर से अनभिज्ञ हैं।
हालांकि,अच्छी खबर यह है कि दुपहिया वाहन चालक खुद की सुरक्षा को महत्व देते हैं। सर्वेक्षण में शामिल 63 प्रतिशत यानी अधिकांश सवारों ने कहा कि वे खुद की सुरक्षा के लिए हेलमेट पहनते हैं जबकि16 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे जुर्माने से बचने के लिए हेलमेट पहनते हैं और 16 प्रतिशत ने कहा कि वे पारिवारिक दबाव के कारण हेलमेट पहनते हैं।
अधिकतर दुपहिया चालक हेलमेट के महत्व को समझते हैं लेकिन तभी जब वे खुद दोपहिया वाहन की सवारी करते हैं। करीब 55 प्रतिशत सवार पीछे बैठने पर हेलमेट नहीं पहनते हैं और इस प्रकार अपनी जान जोखिम में डालते हैं। सर्वेक्षण में शामिल 51 प्रतिशत सवारों ने कहा कि गत साल उन्होंने न तो जुर्माना भरा और न ही लाल बत्ती को पार किया, 30 प्रतिशत सवारों ने कहा कि वे सप्ताह में 1-2 बार लाल बत्ती पार कर जाते हैं।
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सर्वेक्षण के खुलासों और सडक़ सुरक्षा को प्रोत्साहित करने की दिशा में होंडा के प्रयासों के बारे में बताते हुए कंपनी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (बिक्री एवं विपणन) यादविंदर सिंह गुलेरिया ने कहा, ‘‘देश में सडक़ हादसों के कारण सबसे अधिक मौत (31.5 प्रतिशत) दोपहिया वाहनों के मामले में होती है। देश की सडक़ों पर प्रत्येक दो सेकेंड में एक नया दोपहिया वाहन उतर रहा है और ऐसे में -हरेक के लिए सुरक्षा - एक जिम्मेदार कंपनी के रूप में होंडा की प्राथमिकता है। इस सर्वेक्षण से एक बार फिर साबित होता है कि सडक़ सुरक्षा शिक्षा के माध्यम से भारतीय मानसिकता में व्यवहार संबंधी बदलाव में निवेश करने की बेहद आवश्यकता है। ’’
उन्होंने कहा,‘‘ हम देश भर में होंडा के 11 यातायात पार्कों में सडक़ सुरक्षा पर 10 लाख से अधिक लोगों को पहले ही शिक्षित कर चुके हैं जिनमें 38 प्रतिशत बच्चे हैं क्योंकि होंडा का उद्देश्य आज के युवाओं को कल के जिम्मेदार सडक़ उपयोगकर्ता बनाना है।’’
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