नई दिल्ली। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण एनजीटी ने केन्द्र सरकार के उस रख पर सवाल उठाया है जिसमें केन्द्र ने कहा है कि दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में 10 साल पुराने डीजल वाहनों पर रोक को हटा दिया जाना चाहिये क्योंकि ये वाहन वायु प्रदूषण में बड़ा योगदान नहीं करते हैं।
एनजीटी के चेयरमैन न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘आप केन्द्र सरकार कहते हैं कि हर तरह के ईंधन से कुछ न कुछ प्रदूषण होता है। इस तरह आपने जो तर्क दिया है उसके मुताबिक या तो हर तरह के वाहन पर रोक लगा दी जानी चाहिये या फिर हर चीज को अनुमति दे दी जानी चाहिये। समाधान क्या है?’’
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सरकार ने हरित न्यायाधिकरण से कहा कि इसका कोई सबूत नहीं है की 10 साल पुराने डीजल वाहनों से ही वायु प्रदूषण होता है। सीएनजी और पेट्रोल सहित सभी तरह के ईंधनों से अलग अलग क्षमता में प्रदूषण होता है।
सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की ओर से पीठ के समक्ष पेश अतिरिक्त सोलिसिटर जनरल पिंकी आनंद ने कहा की आईआईटी कानपुर के अध्ययन के अनुसार वाहनों के धुऐं का वायु प्रदूषण में केवल 20 प्रतिशत योगदान ही होता है और इसमें भी डीजल वाहनों का योगदान मात्र 0.22 प्रतिशत ही रहता है। आनंद ने शीर्ष पर्यावरण निगरानी निकाय से कहा कि जहां पेट्रोल से कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन होता है वहीं सीएनजी से नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।
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पीठ ने कहा, ‘‘आपने इससे पहले कहा कि आप 15 साल पुराने डीजल वाहनों को हटाने के पक्ष में हैं। आज आप कुछ अलग बात कर रहे हैं। क्या आपने कभी किसी एक वाणिज्यिक अथवा घरेलू उपयोग वाले वाहन से निकलने वाले धुऐं को मापा है।’’
इस पर पिंकी आनंद ने जवाब दिया कि वह जो भी कुछ कह रही है वह वैज्ञानिक अध्ययन पर आधारित है और सरकार प्रदूषण को नियंत्रण में रखने के नियमों को लेकर काफी सख्त है। बरहाल सुनवाई अधूरी रही और कल भी जारी रहेगी।
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