भारत में वैसे तो नृत्य के लिए कई नाम जाने मने है, जिसमे से एक नृत्य कथक की बात ही कुछ और है। क्लासिकल नृत्य की विधा में सबसे ऊपर नाम आता है कथक का। जब कथ का नाम लिया जाता है, तो एक नाम ज़हन में ज़रूर आता है, मल्लिका साराभाई का ज़रूर आता है। लेकिन दुःख की बात तो यह है की 25 नवम्बर 2014 को उन्होंने हमे अलविदा कह दिया था। तो आइये जानते है कुछ इतिहास के पन्ने कथक नृत्यांगना मल्लिका साराभाई के बारे में।
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1967 में लंदन के प्रतिष्ठित रॉयल एल्बर्ट हॉल और न्यूयॉर्क के कैनेंगी हॉल के अलावा कई देशों में अपनी कला का मंचन किया।
वह 10 साल की उम्र से ही मंच पर एकल नृत्य प्रस्तुति देती रही हैं।
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उन्होंने नृत्य को बॉलीवुड के भीतर जगह दिलाने में अहम भूमिका निभायी।
16 साल की उम्र में उनकी प्रस्तुति से प्रभावित होकर रविंद्र नाथ टैगोर ने उन्हें नृत्य समरागिनी कहा।
साल 1969 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी और 1973 में पद्म श्री पुरस्कार से नवाजा गया।
उन्होंने पद्म विभूषण पुरस्कार लेने से इंकार करते हुए कहा कि ये सम्मान नहीं अपमान है। वह प्रशिक्षण से खुद को सिर्फ कृष्ण लीला की कहानियों की कथाकार मानती थीं।
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