शीतला माता की पूजा करने से मिलती है चेचक जैसें रोगों से मुक्ति, जानिये क्या है महत्व

Samachar Jagat | Sunday, 19 Mar 2017 01:30:03 PM
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शिव किशोर शर्मा    

शीतला अष्टमी हिन्दुओं का एक बड़ा त्योहार हैै। इस दिन महिलाएं व्रत और पूजन कर अपने परिवार की सुख और शांति की कामना करती है। शीतला अष्ठमी होली के आठवें दिन मनाई जाती है। यह पर्व चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। राजस्थान में अधिकतर महिलाएं सोमवार या गुरूवार को ही शीतला माता की पूजा करती है। 

पूजा का विधान
शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व माता को भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग यानि बसौड़ा तैयार किया जाता है। अष्टमी के दिन बासी खाने को नैवेद्य के रूप में माता को समर्पित किया जाता है। इस कारण से ही संपूर्ण उत्तर भारत में शीतलाष्टमी त्यौहार, बसौड़ा के नाम से विख्यात है।

प्राचीनकाल से है खास महत्व
प्राचीनकाल से ही शीतला माता का बहुत अधिक माहात्म्य रहा है। पुराणों में शीतला देवी शीतला का वाहन गर्दभ बताया गया है। ये हाथों में कलश, सूप, झाडू और नीम के पत्ते धारण करती हैं। इन बातों का प्रतीकात्मक महत्व होता है। शीतला माता चेचक रोग की देवी है।

शीतला अष्टमी के दिन घरों में नहीं जलते चूल्हे 
शीतला माता की पूजा के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ के कृष्ण पक्ष की अष्टमी शीतला देवी की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होती है। इसलिए यह दिन शीतलाष्टमी के नाम से विख्यात है। आज के समय में शीतला माता की पूजा स्वच्छता की प्रेरणा देने के कारण महत्वपूर्ण है।

क्या है मान्यताएं
मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने से शीतला देवी प्रसन्न होती हैं और व्रती के परिवार में दाहज्वर, पीतज्वर, दुर्गन्धयुक्त फोडे, नेत्रों के समस्त रोग, शीतला की फुंसियों के चिन्ह और शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं।

शीतला माता का क्या है इतिहास
एक बार किसी गांव में गांववासी शीतला माता की पूजा-अर्चना कर रहे थे तो मां को गांववासियों ने गरिष्ठ भोजन प्रसादस्वरूप चढ़ा दिया। शीतलता की प्रतिमूर्ति मां भवानी का गर्म भोजन से मुंह जल गया तो वे नाराज हो गईं और उन्होंने कोपदृष्टि से संपूर्ण गांव में आग लगा दी।

बस केवल एक बुढिया का घर सुरक्षित बचा हुआ था। गांव वालों ने जाकर उस बुढ़िया से घर न जलने के बारे में पूछा तो बुढिया ने मां शीतला को गरिष्ठ भोजन खिलाने वाली बात कही और कहा कि उन्होंने रात को ही भोजन बनाकर मां को भोग में ठंडा-बासी भोजन खिलाया।

जिससे मां ने प्रसन्न होकर बुढ़िया का घर जलने से बचा लिया। बुढ़िया की बात सुनकर गांव वालों ने शीतला माता से क्षमा मांगी और रंगपंचमी के बाद आने वाली सप्तमी के दिन उन्हें बासी भोजन खिलाकर मां का बसौड़ा पूजन किया।

जयपुर जिले में भी है माता का बड़ा मंदिर
जयपुर जिले की चाकसू तहसील में शीलकी डूंगरी नाम से एक गांव है जहां पहाड़ के उपर माता का बड़ा मंदिर स्थापित है, यहा आस-पास के क्षेत्र से महिला और पुरूष रात में ही पहुंचना शुरू हो जाते है और सुबह जल्द ही माता की पूजा अर्चना करते है। इसके बाद बासी खाने को प्रसाद के रूप में खाया जात है।

चेचक का होता है उपचार
गांव हो या शहर किसी भी परिवार में चेचक होने पर माता की मान्यता ली जाती है, और उसके ठिक होने के बाद परिवार के लोग ठंडा खाना बनाकर माता को भोग लगाते है। 

खंडीत रूप में होती है पूजा
शीतला माता ही एक ऐसी माता है जिसकी खंडीत रूप में पूजा की जाती है और इस माता के पूजा खुम्हार समाज के लोग करते है।                                                       
                                   



 
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