राजस्थान की इस कुल देवी से फिरंगी भी खाते थे ख़ौफ़

Samachar Jagat | Tuesday, 21 Feb 2017 04:52:07 PM
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नरेंद्र बंसी भारद्वाज : यू तो राजस्थान के जर्रे जर्रे में एक अमर वीरता, शौर्यता के साथ अपना इतिहास छिपा हुआ है। राजपुताना के शासको के शौर्य की अमर गाथा किसी से छिपी नही है। दिल्ली के मुस्लिम शासको के यहाँ के हर एक शासक ने अपनी वीरता से दांत खट्टे कर दिए थे। इसी गौरवमयी इतिहास की एक अनकही कहानी आज हम आपको बताने जा रहे है। यह कहानी उस दौर की है जब देशी रियासतों पर अंग्रेजो का कब्ज़ा हो चुका था। उस ज़माने राजपूताने की एक कुल देवी ऐसी भी थी जिनसे दुनिया में कभी भी सूरज नही डूबने वाले फिरंगी भी ख़ौफ़ खाते थे। आइये जानते है इन माता के बारे में....

सन् 1857 के स्वाधीनता संग्राम में यह देवी स्वतंत्रता सेनानियों की प्रेरणास्त्रोत भी रही है। सन् 1857 के सैनिक विद्रोह की चिंगारी सबसे पहले 28 मई को राजस्थान की नसीराबाद छावनी सुलगी और यही से यह पूरे राजपुताना में एक भयंकर आग के रूप में फैल गयी। 1857 के स्वाधीनता संग्राम के दौरान राजस्थान में क्रांति का आउवा एक प्रमुख केन्द्र रहा था। जो आज भी राजस्थान में लोक गीतों के रूप में सुनाई देता है। 

ढोल बाजे चंग बाजै, भलो बाजे बाँकियो। 
एजेंट को मार कर, दरवाज़ा पर टाँकियो। 
झूझे आहूवो ये झूझो आहूवो, मुल्कां में ठाँवों दिया आहूवो।

आउवा तत्कालीन समय में मारवाड़ रियासत का एक ठिकाना था। उस समय आउवा के ठिकानेदार ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत थे। इन्होंने अंग्रेजो को चेलावास के युद्ध में बुरी तरह से हराया था। इतना ही नही आउवा के किले पर मारवाड़ के पोलिटिकल एजेंट मॉक मेसन का सर काट कर लटका दिया था। इस युद्ध के बाद अंग्रेज आउवा और किले में स्थापित माता की मूर्ति से भय खाने लगे थे।

यही मारवाड़ के आऊवा ठिकाने के किले में एक दुर्लभ मूर्ति सुगालीमाता की प्रतिष्ठापित थी। सुगालीमाता आऊवा की कुलदेवी रही है। काले पत्थर से निर्मित यह देवी प्रतिमा सन् 1857 के स्वाधीनता संग्राम में स्वतंत्रता सेनानियों की प्रेरणास्त्रोत भी रही थी। बताया जाता है कि स्वतंत्रता सेनानी अपनी गतिविधियां इस देवी के दर्शन कर प्रारम्भ करते थे।

स्वतंत्रता सेनानियों का दमन कर आऊवा के किले पर अधिकार करते ही अंग्रेजों ने महाविकराल माँ शक्ति की इस प्रतिमा को आऊवा के किले से हटा दिया। अंग्रेजो को यह भय था कि देवी की इस मूर्ति (सुगालीमाता) में विश्वास कर वहाँ के आंदोलनकारियों में विद्रोही की भावना जागृत होती है। अंग्रेज इस मूर्ति को पहले माउंट आबू ले गये और वहाँ से सन् 1908 में अजमेर में राजपूताना म्यूजियम खुलने पर देवी की यह मूर्ति अजमेर म्यूजियम में स्थापित कर दी गयी। जिसे आजादी के बाद पाली म्यूजियम में रखा गया। 

सुगालीमाता की यह मूर्ति काली (शक्ति) का कोई तांत्रिक स्वरूप है। देवी राक्षस के ऊपर क्रोधित मुद्रा में खड़ी है और राक्षस धरती पर अधोमुख (अौंधा) पड़ा है। देवी राक्षस पर नृत्य की अवस्था में है। देवी के 10 सिर ओऱ 54 हाथ है। एक मुख मानव का है तथा अन्य मुँह वभिन्न पशुओं के है। देवी के सभी हाथों में विभिन्न प्रकार के आयुध है। गले में मुण्डमाला सुशोभित है जो घुटनों तक नीचे लटकी हुई है। मूर्ति की ऊचाँई 3 फुट 8 इन्च के लगभग है। देवी  प्रतिमा की चौड़ाई 2 फुट 5 इन्च है। मूल मूर्ति के मंदिर से विस्थापन के बाद कालान्तर में सुगाली माता की नवीन मूर्ति स्थापित कर दी गयी। 



 

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