कहानी कहने का कोई तय फार्मूला नहीं : सुभाष घई

Samachar Jagat | Wednesday, 30 Nov 2016 08:23:26 AM
There is no fixed formula of story telling said Subhash Ghai

पणजी।  प्रसिद्ध फिल्मकार सुभाष घई ने कहा कि कहानी कहने के लिए कोई तय तरीका या फार्मूला नहीं है और यदि आप दर्शकों से जुड़ाव रखते हैं तो फिल्म हिट हो जाती है और नहीं रखते तो वह फ्लाप हो जाती है।

श्री घई ने कल 47वें इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया (आईएफएफआई) के समापन समारोह में कहा, कहानी कहने के लिए कोई तय मानदंड या फार्मूला नहीं है। यह वक्ता और श्रोता के बीच का आदर्श संबंध होता है। यदि आप दर्शकों के साथ जुड़ाव रखते हैं तो फिल्में हिट होती है और यदि आप नहीं रखते तो वह फ्लॉप होती हैं।

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उन्होंने कहा, मैं मानता हूं कि जब मैं छोटा था तो मेरी नानी एक महान कथाकार थी। हालांकि वह मुझे अनावश्यक कहानियां सुनाती थीं लेकिन वह मुझे अच्छा लगता था। जब आप काल्पनिक और गैर-काल्पनिक फिल्में बनाते हैं तो आप सफल होते हैं और इससे दर्शकों पर अधिक तीव्र प्रभाव छोड़ पाते हैं। 

बॉलीवुड में वर्तमान फिल्मों के ट्रेंड के बारे में उन्होंने कहा, हर 30 वर्षों में लोगों का नजरिया बदल जाता है। नये लोग पैदा होते हैं और उनकी सोच अलग होती है। कहानी कहने के लिए कई तरह के तरीके और माध्यम हैं। कुछ वर्ष पहले यह रामायण, महाभारत आदि के माध्यम से कही जाती थी। सवाल यह है कि इसमें किस तरह सुधार किया जाये। क्या हम रामायण और महाभारत को अच्छी तरह अपनाने की स्थिति में हैं। पांच हजार वर्ष पहले की कहानी को जानने के लिए क्या हम एक बेहतर दार्शनिक हैं। इसके लिए क्या हमें आजादी मिली है और क्या हम बुद्धिमान हैं।

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उन्होंने कहा, पिछले एक साल के दौरान बनाई गई फिल्में बिल्कुल अलग थी। 1940 में बनी फिल्मों में त्याग और शौर्य को दर्शाया जाता था। इसमें दोस्ती की कहानी, जीवन में त्याग और अन्य मुद्दों पर फिल्में बनती थी। 1960 और 1970 के दशक की फिल्में धैर्य और बेहतर समय की प्रतीक्षा पर आधारित होती थी। लेकिन इसके बाद अमिताभ बच्चन के दौर में हिंसक कहानियों पर फिल्में बनने लगी। लोग विद्रोह करना चाहते थे। वह वे वह हासिल कर पा रहे थे जो वह पाना चाहते थे।

भविष्य में फिल्मों के ट्रेंड के बारे में उन्होंने कहा आने वाली फिल्में थोड़ी अलग होंगी। यह ट्रेंड हमारे समाज में हो रहे बदलाव को परिलक्षित करता है। स्वतंत्रता के नाम पर हम अपनी ज़िन्दगी के साथ प्रयोग कर रहे हैं। इसलिए सिनेमा हमारे समाज का प्रतिबिम्ब है। हमारे समाज में जो होता है उसे हम सिनेमा में देखते हैं। समाज और सिनेमा में हो रहे बदलाव में कुछ भी गलत नहीं है। यह हमारी मानवता के बारे में हैं। 

 

 

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