नई दिल्ली। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2009-10 से घर और सार्वजनिक स्थानों पर 'सेकंड हैंड स्मोकिंग' की जद में आने वाले लोगों की तादाद घटी है लेकिन अब भी यह देश में एक बड़ी चिंता बनी हुई है। हालांकि इस दौरान अस्पतालों में सेकंड हैंड स्मोकिंग में इजाफा देखा गया है। सेकंड हैंड स्मोकिंग (एसएचएस) को पैसिव स्मोकिंग या एनवायरनमेंटल टोबैको स्मोक (ईटीएस) कहते हैं।
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अगर आप धूम्रपान नहीं करते हैं, लेकिन धूम्रपान करने वाले व्यक्ति द्वारा छोड़े गए धुएं में ही सांस ले रहे होते हैं तो आप सेकंड हैंड स्मोक के शिकार हो रहे हैं। जो लोग धूम्रपान के धुएं की चपेट में आ जाते हैं उन्हें सांस की बीमारी हो सकती है। पैसिव स्मोकिंग को वैज्ञानिक भाषा में सैकंड हैंड स्मोकिंग कहते हैं। यह उन लोगों के लिये सजा बन रही है जो खुद धूम्रपान नहीं करते हैं।
''ग्लोबल अडल्ट टोबैको सर्वे 2" (जीएटीएस 2) में यह पता चलता है कि भारत में धूम्रपान नहीं करने वालों में एक तिहाई से अधिक (35 प्रतिशत) लोग घरों में सेकंड हैंड स्मोक के संपर्क में आते हैं। शहरी इलाकों में 25 प्रतिशत और ग्रामीण तबकों में 40.4 प्रतिशत गैर धूम्रपानकर्ता इसके संपर्क में आते हैं।
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वयस्कों में 5.3 प्रतिशत सरकारी भवनों, 3.6 प्रतिशत निजी कार्य स्थलों, 5.6 प्रतिशत स्वास्थ्य सुविधाओं, 7.4 प्रतिशत रेस्त्रां में, 13.3 प्रतिशत सार्वजनिक परिवहन, 2.1 प्रतिशत बार / नाइट क्लब और 2.2 प्रतिशत सिनेमा हॉल में सेकंड हैंड स्मोक के संपर्क में आते हैं। 37.7 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं घर पर सेकंड हैंड स्मोकिंग के संपर्क में आती हैं जबकि 21 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं अपने कार्यस्थल और 25.9 प्रतिशत किसी सार्वजनिक स्थान पर सेकंड हैंड स्मोक के संपर्क में आती हैं।- एजेंसी
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