हाँ, सही सुना.. कोटपा अप्रैल, 2004 से लागू है..!!
यूँ तो हर कोई कह सकता है, “क्या जमाना आ गया है, अब हर चीज पर कानून लगा रही है सरकार”. पर सरकार तब क्या करे, जब तम्बाकू-उपभोगी अपनी सेहत के ही लिए सधने को ही तैयार नहीं हो और सरकार को बेवजह इनके तम्बाकूजनित रोगों के उपचार का खर्चा भी उठाना पड़ रहा हो, और लोग फिर भी हर रोज हजारों में मर रहे हों..!? यों तो इस तम्बाकू पर खाने-पीने पर लगे कानून को आये भी दस वर्षों से अधिक हो गए हैं (सिगरेट और अन्य तम्बाकू पदार्थ अधिनियम, 2003; संक्षिप्त में “कोटपा”). फिर आज इसके उल्लंघन करने वालों की धर-पकड़ को जाओ तो यह ही सुनने मिलता है “अरे भाई साहेब, या सरकार पेहला सूँ माणे बता देती तो मैं या गलती काँई करतो”. इसीलिए, आइये एक बार फिर से जान लेते हैं, इस “कोटपा” के सूचित नियमों के बारे में.
तम्बाकू का नशा..छूट सकता है...
नियम 4 सभी लोकस्थानों, लोकवाह्नों और कार्यस्थलों पर धूम्रपान पर रोकता है अर्थात जहाँ पर भी धूम्रपायी का धुआँ किसी भी तम्बाकू ना पीने वाले को इसे सूंघने को मजबूर करे, उसे रोका जाये. अन्यथा, धूम्रपायी के साथ-साथ उस जगह का मालिक या व्यवस्थापक दोनों पर अलग-अलग दो सौ रूपये तक जुर्माना किया जाये. इसकी पुनरावृति पर, एक ही दिन में एक से अधिक बार भी, उसी व्यवस्थापक-मेनेजर और धूम्रपायी को दण्डित किया जा सकता है. मात्र एअरपोर्ट अथवा वे होटल और रेस्टोरेंट जहाँ तीस से अधिक लोगों के रहने-बैठने की व्यवस्था हो, धूम्रपायियों के लिए अलग से व्यवस्था की जा सकती है. इस हेतु कमरा, हवा-से-कम दबाव सहित बिना खिड़की-रोशनदान के मात्र चार दीवारों और छत वाला होना चाहिए; इसका दरवाजा स्वतः बंद हो जाता हो; और, इसके अन्दर किये गए धूम्रपान का धुएँ का निस्तारण उस परिसर में आने-रहने वाले गैर-धूम्रपायियों को किसी भी तरह से प्रभावित ना करता हो.
नियम 5, सभी तरह के परोक्ष-अपरोक्ष विज्ञापनों पर समूची रोक लगता है जिनसे तम्बाकू पदार्थों के ब्रांड किसी भी प्रकार से प्रचारित होते हों, किसी भी फिल्मी-गैरफिल्मी सांस्कृतिक, खेल-कूद, आध्यत्मिक, लेखन-पठन या पुरुस्कृत की जाने वाली प्रायोजित या विज्ञापित गतिविधियों सहित. साथ ही जहाँ भी तम्बाकू पदार्थों को बेचा जाये वहाँ पर इनके विज्ञापन हेतु मात्र दो बोर्ड 60x45 सेमी. आकार के हों जिनके ऊपरी 20x15 सेमी. भाग में चेतावनी (सफ़ेद पृष्ठभूमि में काले अक्षरों से) हो और बचे निचले भाग में मात्र बिकने वाले तम्बाकू पदार्थ का उल्लेख हो जैसे सिगरेट, बीडी, जर्दा, इत्यादि, ना कि उनके ब्रांड के नाम, चित्र, रंग वाले बोर्ड, इत्यादि. इस नियम और निचे दिए गए नियम 7 को तोड़ती सामग्री/सामग्रियों को जब्त कर उल्लंघनकर्ता को उल्लेखित न्यायिक कार्यवाही हेतु मजिस्ट्रेट/जज के सामने निर्देशित जुर्माने और/या कारावास के लिए प्रस्तुत किया जाना होता है. एक से अधिक बार उल्लंघन पर जुर्माने की राशि और/या कारावास की अवधि बढ़ जाते हैं.
नियम 6 के दो भाग हैं: नियम 6(अ) 18 वर्ष से कम आयु के ग्राहकों को किसी भी तम्बाकू पदार्थ बेचे जाने या स्वयं उनके द्वारा किसी अन्य को इनकी बिक्री को रोकता है. और, नियम 6(ब) किसी भी शिक्षण-संस्थान की 100 गज की परिधि में सभी तम्बाकू पदार्थों की बिक्री को रोकता है; सभी प्रशिक्षण-संस्थान भी इसके अंतर्गत ही आयेंगे. इनके उल्लंघनकर्ताओं पर नियम 4 की तरह दो सौ रूपये तक जुर्माना किया जा सकता है.
नियम 7 सभी खुदरा तम्बाकू पदार्थों पर 85% सचित्र चेतावनियों को पैकेज के आगे-पीछे, उनके ऊपरी हिस्से में (बीडी के बंडलों पर निर्देशानुसार) होने की बाध्यता का है (दंड हेतु नियम 5 देखें).
तम्बाकू और स्वास्थ्यकर्ता.....
अब देखें हो क्या रहा है? तम्बाकू कम्पनियाँ, थोकविक्रेता के अलावा अधिकाँश खुदरा विक्रेता, तम्बाकू-उपभोगी, लोकस्थानों के मालिक-व्यवस्थापक और लोकवाह्नों के चालक-कंडक्टर तो इन नियमों को तोड़ते ही रहते हैं, इनको लागू करवाने वाली निर्धारित सरकारी एजेंसियाँ भी अधिकाँश समय निष्क्रिय ही रहती हैं जब तक कि उनपर केंद्र सरकार या किसी गैर-सरकारी संस्था से प्रेरित (अथवा स्व-प्रेरित) नेता या ऊपरी अधिकारी की दबिश ना हो. इस नकारात्मकता के मुख्य कारण: (1) प्रवर्तनकारियों की जवाबदेही का सर्वथा अभाव; (2) नियमों के प्रवर्तन को अतिरिक्त-कार्य मानना; (3) अपने रोजमर्रा की कार्यशैली में इसे जोड़ ना पाना; (4) जहाँ एक से अधिक एजेंसियों के समन्वय की आवश्यकता हो उसे वांछित समयावधि में कार्यान्वित ना करा पाना; (5) प्रवर्तनकर्ताओं हेतु प्रोत्साहन या पुरुस्कृत न किये जाने के अलावा (6) जनमानस की सहभागिता में खासी कमी भी है. आमजन का इन नियमों के प्रभावी और निरंतर चलाये जाने वाले प्रवर्तन की मांग ना करना या उन्हें अनजाने/जानबूझ कर तोड़ना क्योंकि नियम 4 और 6 में दंड की राशि कम है और नियम 5 और 7 में क़ानूनी प्रक्रिया अपनाना एक बोझिल लम्बी प्रक्रिया है, अन्य महत्वपूर्ण कारक हैं.
फिर भी, इस कानून के नियमों को लागू करवा पाना संभव है यदि (1) इसे लागू करवाने वाली एजेंसियाँ प्रेरित-सक्रिय हो निरंतर सक्रिय रहें; (2) अपने रोजमर्रा के कामों के साथ इन्हें प्रवर्तित करवाने हेतु अनुशासित हो जाएँ; (3) इस हेतु उन्हें अथवा कानून की पूरी-पूरी पालना करने वाले तम्बाकू विक्रेताओं को प्रशासनिक या सामाजिक रूप से पुरुस्कृत या/और सम्मानित किया जाये; साथ ही, (4) इसमें प्रादेशिक नेतृत्व, प्रशासन, जनमानस और मीडिया भी निरंतरता से भागीदारिता करे. तब ही हो सकेगी प्रदेश में तम्बाकू खाने-पीने की, इससे रोगी हो कम आयु में असामयिक मृत्यु की दरों में कमी.
लेखन-
डॉ. राकेश गुप्ता, अध्यक्ष, राजस्थान कैंसर फाउंडेशन और वैश्विक परामर्शदाता, गैर-संक्रामक रोग नियंत्रण (कैंसर और तम्बाकू).
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