तम्बाकू से केन्सर होता है.. यह सब जानते-मानते हैं, मगर डरते क्यों नहीं हैं!?

Samachar Jagat | Tuesday, 29 Nov 2016 03:29:45 PM
Tobacco causes cancer

सभी तम्बाकू पदार्थों पर सचित्र चेतावनी के अतिरिक्त अधिकाँश तम्बाकू-विक्रेताओं के विज्ञापन बोर्डों पर यह बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा होता है कि “तम्बाकू से केन्सर होता है”. पर क्या इसे खाने-पीने वाले इससे सन्देश से डरते हैं? युवा तो संभवतः बिलकुल नहीं, पर व्यस्क और अधेड़? इनको भी जब पता लगता है किसी तम्बाकू साथ चबाने वाले के मुँह में केन्सर का संदेह है या कोई साथ बीड़ी-सिगरेट पीने वाला फेंफड़े के केन्सर से जूझ रहा है, तब कुछ समय वे इस शौक को कुछ समय के लिए बंद कर देते है या फिर कम कर देते हैं.

तम्बाकू पदार्थों पर सचित्र चेतावनियाँ

परन्तु, फिर कुछ समय बाद फिर उसी व्यसनी स्थिति में पंहुच जाते हैं- बिना इसे छोड़ने के प्रयास के और/या यह सोच कर कि केन्सर मुझे तो नहीं होगा. अतः इन सभी का यह जानना लाभकारी होगा कि तम्बाकू खाने-पीने वालों में केन्सर का खतरा 30-गुना अधिक होता है. साथ ही यह भी जाने कि अब तक तम्बाकू कोई सुरक्षित मात्रा निर्धारित नहीं की जा सकी है. अतः कुछ उपभोगियों को यह रोग (या अन्य तम्बाकूजनित रोग- हृदयाघात, अस्थमा, लकवा, इत्यादि) एक लम्बे समय तक खाने-पीने के पश्चात् भी नहीं होते है और कुछ को मात्र कुछ वर्षों के पश्चात् ही! विज्ञान की सीमितता यह है कि ऐसे कोई परीक्षण (टेस्ट) नहीं हैं अब तक कि जो यह बता दें कि इस तम्बाकू उपभोगी को केन्सर होगा और इसे नहीं.

आइये, अब यह भी जाने कि तम्बाकू खाने-पीने से केन्सर क्यों होता है. तम्बाकू में ~30 से 70 तक केन्सरकारक तत्व होते हैं-. इनकी संख्या इस बात पर निर्भर करती है कि कोई किस प्रकार की तम्बाकू का सेवन कर रहा है. इन तत्वों में महत्वपूर्ण हैं- तम्बाकू-विशिष्ट नाईट्रोसेमाईंस, बेंजीन, पॉलोनियम-210 (एक विकिरण-युक्त पदार्थ), पोलीसाइक्लिक हाइड्रो-कार्बन्स, इत्यादि. ये पदार्थ कोशिकाओं में उपस्थित डी.एन.ए. पर चिपक उसे विकृत कर क्षति पहुँचाते हैं अथवा इनमें सुरक्षा हेतु उपस्थित जीन पी-53 में बदलाव ला देते हैं. इसके अतिरिक्त, आर्सेनिक और निकल जैसे रसायन क्षतिग्रस्त जीनों को ठीक हो पुनर्जीवित होने से रोक देते हैं. इन मिलेजुले प्रभावों से एक केन्सर-युक्त कोशिका उत्पन्न होती है जोकि उचित समय और वातावरण पा शरीर में केन्सर प्रक्रिया को उभारती है.

कुल मिलाकर लगभग 14 केन्सरों का तम्बाकूजनित होना जाना गया है- होंठ, मुँह, गले, फेंफड़े, स्वरयंत्र, खाने-की-नली, पैंक्रियास, बड़ी आँत, गुर्दा, मूत्राशय, आमाशय, गर्भाशय के मुँह, ड़ीम्बकोश, लीवर और ल्यूकीमिया. राष्ट्रीय केन्सर रजिस्ट्री प्रोजेक्ट, आई.सी.एम.आर. यूनिट, बंगलारु द्वारा प्रकाशित आंकड़े बताते हैं कि भारत के विभिन्न भागों में पुरुषों में तम्बाकूजनित केन्सरों की दर 39%- 56% और महिलाओं में ये दर 12%- 24% तक है. पुरुषों के जहाँ प्रथम पाँच अधिकतम केन्सरों में से चार तम्बाकूजनित हैं- होंठ-मुँह, फेंफड़े, गले-स्वरयंत्र व खाने-की-नली के केन्सर, महिलाओं में प्रथम पाँच में से तीन केन्सर तम्बाकूजनित होते हैं- होंठ-मुँह फेंफड़े और गर्भाशय के मुँह के केन्सर (ग्लोबाकेन, 2012 के अनुसार). भारतवर्ष में सभी केन्सरों से होने वाली मृत्युओं में से 45% तम्बाकूजनित केन्सरों से होती हैं- होंठ, मुँह और गले के केन्सरों से होने वाली मृत्युओं की संख्या स्वरयंत्र, सांस-की-नली और फेफड़ों से होने वाली मृत्युओं से लगभग दो गुना अधिक हैं (13.8% की बजाये 22.8%).  

होंठ, मुँह-गले, स्वरयंत्र, मूत्राशय, गर्भाशय के मुँह, इत्यादि के तम्बाकूजनित विशिष्ट केन्सरों को तो प्राय: इनकी प्रारंभिक अवस्था के लक्षणों और चिन्हों की जानकारी होने से इनकी पूर्वावस्था में ही जाना जा सकता है (इन अंगों की सतही झिल्ली पर उभरते खुरदरे, टेढे-मेढे सफ़ेद-लाल छाले या घाव के रूप में; इसे अल्सरेटेड ल्यूकोप्लेकिया, एरिथ्रोप्लाकिया या एक गाँठ के रूप में निदानित किया जाता है). अतः इनकी संभावित उपस्थिति के लक्षणों-चिन्हों को न अनदेखा किया जाये ना ही टाला जाये.

इन प्राय: पाये जाने वाले तम्बाकूजनित केन्सरों के उपचार-पक्ष का एक और सकारात्मक पहलू है इनका सफलता से उपचार किया जा पाना “यदि इन्हें इनकी पूर्वावस्था में निदानित किया जा सके”. और, क्योंकि शरीर में केन्सर की निश्चित उपस्थिति को बायोप्सी कर के ही जाना जा सकता है, अतः यह अत्यंत आवश्यक है चिकित्सक द्वारा एक तम्बाकू उपभोगी में केन्सर होने की संभावना बताये जाने पर निदान की इस प्रक्रिया को नकारा नहीं जाना चाहिए अन्यथा रोग के अनुपचारित हो जाने का खतरा बढ़ जा सकता है.

तम्बाकू और स्वास्थ्यकर्ता.....

अन्य केन्सरों जैसे फेंफड़े, खाने-की-नली, पैंक्रियास, इत्यादि के केन्सरों की उपस्थिति भी प्रारंभिक अवस्था में जानी जा सकती है यदि इनकी प्रारंभिक अवस्था के लक्षणों और चिन्हों की जानकारी व्यापकता से दी जा सके. तब ही, वर्तमान में इनको सफलता से उपचारित न किये जा सकने की निराशाजनक स्थिति से बचा जा सकेगा.   

अंत में, तम्बाकू खाने-पीने को सर्वथा और सदैव ना कह पाना तम्बाकूजनित केन्सरों से मुक्ति पाने का सबसे सफलतम और सस्ता उपाय है. और, यदि आप वर्तमान में इसके उपभोगी हैं तो तत्काल छोड़ें इसे और सालों-साल तम्बाकू-मुक्त बने रहें क्योंकि इनका खतरा तम्बाकू छोड़ने के लगभग दस साल बाद ही समाप्त होने लगता है.        

लेखन-

डॉ. राकेश गुप्ता, अध्यक्ष, राजस्थान केन्सर फाउंडेशन और वैश्विक परामर्शदाता, गैर-संक्रामक रोग नियंत्रण (केन्सर और तम्बाकू).

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