मार्गशीर्ष मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भगवान शिव, भैरव रूप में प्रकट हुए थे। इसी उपलक्ष्य में इस तिथि को कालाष्टमी का व्रत किया जाता है। कालाष्टमी को ‘भैरवाष्टमी’ के नाम से भी जाना जाता है। भैरव नाथ के स्मरण मात्र से ही सभी प्रकार के पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं। भैरव की पूजा व उपासना से मनोवांछित फल मिलता है। आइए आपको बताते हैं भैरवनाथ का व्रत किस विधि से करना चाहिए....
कालाष्टमी व्रत कथा
व्रत विधि :-
इस दिन भैरवनाथ की षोड्षोपचार सहित पूजा करनी चाहिए और उन्हें अर्ध्य देना चाहिए।
मध्य रात्रि में शंख, नगाड़ा, घंटा आदि बजाकर भैरव जी की आरती करनी चाहिए।
भगवान भैरवनाथ का वाहन ‘श्वान’ (कुत्ता) है। अतः इस दिन प्रभु की प्रसन्नता हेतु कुत्ते को भोजन कराना चाहिए।
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भैरव नाथ की पूजा व भक्ति करने से भूत, पिशाच एवं काल भी दूर रहते हैं। व्यक्ति को कोई रोग आदि स्पर्श नहीं कर पाते। शुद्ध मन एवं आचरण से ये जो भी कार्य करते हैं, उनमें इन्हें सफलता मिलती है।
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