धर्म डेस्क। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मोरयाई छठ व्रत या सूर्य षष्ठी व्रत किया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन जो भी व्यक्ति पूरे विधि - विधान से व्रत करता है उसे अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है। आइए जानते हैं क्या - क्या करना चाहिए इस दिन.....
मोरयाई छठ के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है इसलिए इस दिन सुबह उठकर सबसे पहले गंगा स्नान करें। अगर गंगा स्नान करना संभव न हो तो नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल डाल लें और इससे स्नान करें।

इसके बाद सूर्यदेव की आराधना करें, इस दिन उगते सूर्य को जल अर्पित करना चाहिए और डूबते सूर्य के हाथ जोड़कर दर्शन करने चाहिए। वहीं सूर्य देव को लाल रंग की वस्तुएं जैसे लाल चंदन, लाल पुष्प आदि अर्पित करने चाहिए। सूर्य देव को जल अर्पित करते समय इन मंत्रों का जाप करें.....
ऊं घृणिं सूर्य्य: आदित्य:।
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।
ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ।
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः।
एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर।।

दूसरा मंत्र :-
ऊँ खखोल्काय शान्ताय करणत्रयहेतवे।
निवेदयामि चात्मानं नमस्ते ज्ञानरूपिणे।।
त्वमेव ब्रह्म परममापो ज्योती रसोमृत्तम्।
भूर्भुव: स्वस्त्वमोङ्कार: सर्वो रुद्र: सनातन:।।
पूरे दिन व्रत रखें और शाम को सूर्यदेव को अर्क देने के बाद ही व्रत खोलें, ध्यान रहे इस व्रत में नमक का सेवन नहीं किया जाता है।
इस दिन दान का भी विशेष महत्व होता है, अपनी यथाशक्ति ब्राह्मणों और गरीबों को दान दें।
( इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है। )
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