नई दिल्ली। न्यायाधीशों की नियुक्ति के मुद्दे पर न्यायपालिका और सरकार के बीच चल रही तनातनी के बीच केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली ने आज कहा कि आजकल हो रही नियुक्तियां मूल रूप से निर्धारित मानदंडों के अनुरूप नही हो रही हैं ।
लोकसभा पुस्तकालय में संविधान पर आयोजित एक कार्यशाला में ‘राज्य के अंगों के बीच शक्ति का विभाजन’ विषय पर एक व्याख्यान में जेटली ने कहा, ‘‘आप संविधान की व्याख्या के जरिए एक संभावित अर्थ, जो भाषा से अलग है, देकर इसे किसी उद्देश्य की ओर नहीं मोड़ सकते.....आप ठीक विपरीत नहीं कह सकते ।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लिहाजा, आजकल हो रही नियुक्तियां मूल रूप से निर्धारित मानदंडों के अनुरूप नहीं हैं।’’
जेटली ने कहा कि संविधान कहता है कि मुख्य न्यायाधीश से सलाह-मशविरा कर राष्ट्रपति न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगा, लेकिन इसकी व्याख्या अलग-अलग तरीके से की गई है ।
उन्होंने कहा कि इसकी व्याख्या इस तरह की गई है कि मुख्य न्यायाधीश सिफारिश करेंगे और सरकार नियुक्ति करेगी, कोलेजियम नामों की सिफारिश करेगा और तीसरी बात यह कि राष्ट्रपति पर यह बाध्यकारी होगा और सरकार की कोई भूमिका नियुक्तियों में नहीं होगी ।
जेटली ने कहा, ‘‘आप संविधान के बुनियादी ढांचे की व्याख्या ठीक विपरीत नहीं कर सकते ।’’
बहरहाल, जेटली ने कहा कि लोकतंत्र के तीनों अंगों की शक्तियां विभाजित हैं और कोई भी अंग दूसरे अंग से उपर नहीं हो सकता और न्यायपालिका न तो कार्यपालिका और न ही विधायिका बन सकती है ।
उन्होंने कहा कि वह एनजेएसी पर उच्चतम न्यायालय के फैसले के आलोचक रहे हैं और अपनी असहमति सार्वजनिक तौर पर जाहिर कर चुके हैं । उन्होंने कहा कि संविधान के बुनियादी ढांचे के तहत न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखने के बुनियादी सिद्धांत पर यह सही है, लेकिन यह अन्य अंगों से उपर नहीं हो सकती ।
जेटली ने कहा, ‘‘एक निर्वाचित संसद भी बुनियादी ढांचे का हिस्सा है, एक निर्वाचित सरकार भी बुनियादी ढांचे का हिस्सा है और एक मंत्री एवं नेता प्रतिपक्ष भी बुनियादी ढांचे का हिस्सा है ।’’