"हवा में तैर रहे हैं जानलेवा बैक्टीरिया: रिसर्च"

Samachar Jagat | Thursday, 24 Nov 2016 07:12:00 PM
deadly bacteria are floating in air of china 

नई दिल्ली। वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर पर पहुंचने के बीच प्रदूषित हवा के एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया के संवाहक होने के नये शोध ने वैज्ञानिकों को गंभीर चिंता में डाल दिया है। 

स्वीडन के गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में प्रदूषित वातारवरण में एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टरिया की उपस्थिति पायी है। 

विश्वविद्यालय के सोग्रेंसेका एकेडमी में प्रोफेसर एवं सेन्टर फॉर एंटीबोयोटिक रेसिसटेंस रिसर्च के निदेशक जोकिम लार्सन ने 'यूनीवार्ता' के साथ विशेष बातचीत में आज बताया कि उनकी टीम ने चीन की राजधानी बीजिंग की हवा के नमूने में ऐसे बैक्टीरिया के जीन के डीएनए पाये हैं जो एंटीबायटिक प्रतिरोधी हैं।

प्रोफसर लार्सन ने कहा कि उनकी टीम ने इंसान और जानवरों के कुल 864 डीएनए और हवा के नमूनों का गहन अध्ययन किया। इस दौरान प्रदूषित हवा के नमूने में कई मिश्रित जीन मिले। प्रदूषित हवा में मौजूद बैक्टीरिया के जीन के डीएनए में उनके एंटिबायोटिक प्रतिरोधी होने की बात सामने आयी है। 

प्रोफेसर लार्सन ने कहा चिंता यह है कि हमने प्रदूषित हवा के जिन नमूने की जांच की उसमें ऐसे कई जीन मिले हैं जो सबसे असरदार एंटीबायोटिक कारबपेनेम्स के प्रतिरोधी हैं। यह एंटीबायोटिक दवा ऐसी बीमारी में दी जाती है जिसका इलाज प्राय: बहुत मुश्किल होता है। लेकिन हमने हवा के विस्तृत नमूने की जांच नहीं की है और एक सटीक नतीजे के लिए और विभिन्न देशों की प्रदूषित हवा के नमूनों की जांच करनी होगी। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी प्रदूषित हवा भारत समेत कई देशों की हो सकती है।

प्रोफेसर जोकिम लार्सन ने कहा, हवा के नमूने में मौजूद जीन के डीएनए के हमारे परीक्षण से यह पता नहीं चल पाया है कि बैक्टीरिया जीवित हैं अथवा मृत। हालांकि प्रोफेसर लार्सन ने यह भी कहा कि हवा के पहले हुये अन्य परीक्षणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इसमें जीवित और मृत दोनों बैक्टीरिया मौजूद हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि अगर ऐसे बैक्टीरिया जीवत हैं तो हमारे लिए बहुत बड़ा खतरा हो सकता है क्योंकि ये स्वस्थ्य व्यक्तियों को संक्रमित करेंगे।

उन्होंने कहा अभी हमने एक जगह की हवा के नमूने की जांच की है और इसके आधार पर हम किसी अंतिम नतीजे की घोषणा नहीं कर सकते। बड़े पैमाने पर शोध के बाद अगर प्रदूषित हवा में ऐसे बैक्टीरिया की माजूदगी मिलती है तो हमें यह पहचान करना होगा कि किन कारणों से इस तरह के बैक्टीरिया हवा में तैर रहे हैं। प्रोफेसर लार्सन ने कहा फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि हवा में इस तरह के बैक्टीरिया कहां से आते हैं। आशंका है कि इंसान के'सूअरिज'(मल) की वहज से हवा में एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया पैदा हो रहे हों। यह जांच का विषय है।

यह पूछने पर कि अगर आपके शोध से यह बात साबित जो जाती है कि सूअरिज की वजह से हवा में एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया पहुंच रहे हैं, तो वैज्ञानिकों का अगला कदम क्या होगा, उन्होंने कहा गंदे नालों और सूअरिज टैंकों को कारगर तरीके से ढ़क कर रखना इसके खिलाफ कारगर कदमों में से एक है। हमारे यह पूछने पर कि गंदे नाले और ऐसे टैंक विकासशील देशों की समस्या हो सकती है लेकिन अमेरिका समेत अन्य विकसित देश तो इस श्रेणी में नहीं आते उन्होंने कहा नहीं ऐसी बात नहीं है। यह एक आम समस्या है। हमारे देश में भी यह 'बीमारी' है। 

वर्ष 2007 में आंध्र प्रदेश के पटानचेरू फार्मास्युटिकल संयंत्र के कारण छह कुएं के पानी की जांच में एंटीबायोटिक सिप्रोफॉक्सिन और एंटिहिस्टामाइन सिट्रीजिन के सूक्ष्मतम कणों की पुष्टि करने वाले प्रोफेसर लार्सन ने कहा, इसी आशंका के मद्देनजर शोध का हमारा अगला कदम यूरोप का सीवेज ट्रीममेंट प्लांट है। हमें आशंका है कि कहीं ऐसे स्थानों के बैक्टीरिया हवा में तैर कर एक से दूसरे स्थान पर तो नहीं पहुंच रहे हैं जो एंटीबायोटिक प्रतिरोधी हैं। 

उन्होंने कहा कि इस परियोजना पर एक अंतरराष्ट्रीय टीम की काम करने की बड़ी योजना है। प्रोफेसर लार्सन ने कहा हम उस संयंत्र में काम करने वालों को एक 'सैंपलर' के रूप में रखेंगे। इसके साथ ही संयंत्र के आसपास और दूर रह रहे लोगों के बैक्टीरिया फ्लोरा का अध्ययन करेंगे और यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि इस संयंत्र की आबोहवा का इनके ऊपर क्या प्रभाव है।

यह पूछने पर कि अगर वृहद पैमाने पर होने वाले शोधों में हवा में एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया की पुष्टि हो जाती है तो वैज्ञानिक क्या नया और अधिक उन्नत एंटीबायोटिक की खोज कर करेंगे, उन्होंने कहा, वैज्ञानिक नये और अधिक प्रभावशाली एंटीबायोटिक पर दिन रात काम कर रहे हैं लेकिन नतीजा सामने आने में समय लगता है और एंटीबायोटिक प्रतिरोधी क्षमता तेजी से बढ़ती है। 

प्रतिरोधी क्षमता को रोकने की दिशा में काम करना सबसे जरूरी कदम होगा। इसके लिए हमें एंटीबायोटिक के हानिकारक उपयोग से बचना होगा। दवा फैक्टरियों के कूड़ों का निस्तारण तय मानकों के तहत किये जाने और सूअरिज टैंकों के ढ़ंकने के बेहतरीन प्रबंधन सुनिश्चित किए जाने के साथ- साथ वायु प्रदूषण पर अकुंश लगाने के तमाम महत्वपूर्ण एवं गंभीर कदम उठाना होगा। 

वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने की दिशा में सभी देशों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा हमें इस दिशा में गंभीरता से सोचना होगा कि हवा को किस तरह से शुद्ध रखा जाये। जीवन की 'सांस' कहीं हमारी सबसे बड़ी दुश्मन न बन जाये। 

प्रोफेसर लार्सन ने कहा, हमने पेटानचेरू में जल के जिन विभिन्न आठ सौ नमूनों का विश्लेषण किया था उसकी तुलना अपने इस नये शोध के नतीजों से की। हमारा यह निष्कर्ष है कि ये ऐसे वातावरण मुनष्यों के लिए बेहद खतरनाक हैं।

उल्लेखनीय है कि 1980 के दशक में फार्मास्यूटीक के लिए 'हब' बने पेटानचुरू में प्रोफेसर लार्सन ने जल के कई नमूनों पर शोध किए थे और उन्होंने छह कुंओं के पानी में एंटीबायोटिक दवाइयों का अंश होने की पुष्टि की थी। उन्होंने यह भी बताया कि स्थानीय लोगों का 30 साल से इलाज करने वाले डॉक्टर किशन राव ने माना था कि उनके मरीजों में वे दवाइयां नहीं काम कर रही हैं जिनके अंश जल के नूमनों में मिले थे।

वार्ता



 
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