हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर धर्मगुरुओं की मिलीजुली राय

Samachar Jagat | Saturday, 27 Aug 2016 03:26:03 PM
Haji Ali Dargah on allowing women in the mixed opinions of Muslim religious leaders

बरेली। हाजी अली की दरगाह में महिलाओं के प्रवेश की इजाजत देने के मामले में मुबंई हाइकोर्ट के फैसले को लेकर उत्तर प्रदेश में बरेली शहर की दो प्रमुख दरगाह और खानकाह के अलग अलग मत सामने आए हैं।  सुन्नी बरेलवी मुसलमानों के मरकज दरगाह आला हजरत के सज्जादानशीन मौलाना अहसान रजा कादरी ने कहा कि शरीयत महिलाओं को दरगाह पर हाजिरी की इजाजत नहीं देती। उन्होने कहा कि मुबंई उच्च न्यायालय के महिलाओं के प्रवेश संबधी आदेश के खिलाफ मामला यदि उच्चतम न्यायालय में जाता है तो वहां बहस के लिए अपना वकील खड़ा करेंगे। उधर, खानकाह नियाजिया ने महिलाओं के दरगाह व खानकाह जाने को सही ठहराया है। 

दरगाह आला हजरत के सज्जादानशीन का कहना है कि शरीयत महिलाओं को दरगाह आने की इजाजत नहीं देती। इसके लिए आला हजरत ने फतवा भी जारी किया है। महिलाओं की हाजिरी को नाजायज करार दिया है। आला हजरत ने इस पर किताब भी लिखी है, जिसमें दरगाह आने से रोकने की वजहें भी साफ की हैं।

दरगाह पर तीन बड़े उर्स होते हैं। तीनों के पोस्टर में महिलाओं से नहीं आने की अपील की जाती है। उसका असर भी होता है। इस सिलसिले में अल्लाह के रसूल की हदीस भी है। सज्जादानशीन कहते हैं कि इस्लाम दुष्कर्म को ही जुर्म नहीं मानता बल्कि उसके रास्तों को भी बंद करता है। पर्दा और सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं का जाना सही नहीं है। 

हाजी अली की दरगाह में महिलाओं के प्रवेश से खानकाह को हालांकि कोई आपत्ति नही है। ख्वाजा गरीब के रूहानी जानशीन कुतबे आलम हजरत शाह नियाज अहमद रहमतुल्ला अलैह की खानकाह नियाजिया में महिलाओं के आने पर कोई रोक नहीं है। खानकाह नियाजिया के प्रबंधक शब्बू मियां नियाजी, कहते हैं कि महिलाएं खानकाह पर अदब व एहतराम के साथ आ सकती हैं।

उन्होने कहा कि महिला-पुरुष का भेदभाव होना भी नहीं चाहिए। मजहब और मुल्क का कानून अलग अलग है। यह दारुल हरम है, जहां शरई कानून लागू नहीं होता। लिहाजा यहां का कानून मानना चाहिए। जहां तक महिलाओं को दरगाह पर आने से रोक का सवाल है तो ऐसा नापाकी की वजह से कुछ लोगों ने मना किया था। उसे नजीर नहीं बनाया जा सकता।

मौलाना कादरी कहते हैं कि दरगाह और कब्रिस्तान में महिलाओं का जाना शरीयत के खिलाफ है। मां और बहनें खुद भी मजारों और दरगाहों में बिल्कुल न जाएं। मुस्लिम वकीलों को मिलकर उच्चतम न्यायालय में इस मामले को मजबूती से उठाया जाना चाहिए। 



 

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