जाट आंदोलन पर हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी, इससे बुरा दौर नहीं देखा,1947 जैसे हालात दिखे

Samachar Jagat | Sunday, 25 Sep 2016 08:42:29 AM
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चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के जस्टिस एसएस सारो और जस्टिस लीजा गिल की खंडपीठ ने शनिवार को जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हिंसा मामले को लेकर कड़ी टिप्पणी की।  बेंच ने कहा कि उन्होंने अपने जीवन में इससे बुरा दौर नहीं देखा। आंदोलन के दौरान हरियाणा में जो स्थिति थी वह पंजाब में आतंकवाद से भी बदतर थी। पूरे देश ने शायद 1947 के बाद ऐसे हालात नहीं देखे होंगे। मामले की अगली सुनवाई 22 अक्टूबर को होगी।

हाईकोर्ट ने कहा कि हमें एक्शन चाहिए। राज्य सरकार की अभी जैसी जांच चल रही है वह संतोषजनक नहीं है। इस मामले में वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु के भाई सतपाल ने भी याचिका दायर कर रखी है। इस याचिका पर सुनवाई में उनके वकील ने कहा की आज तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। कोर्ट ने कहा कि अगर वित्तमंत्री के भाई को इंसाफ नहीं मिल रहा तो आम जनता का क्या होगा।

हरियाणा सरकार ने कोर्ट को बताया कि हिंसा में अभी तक 1621 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि आंकड़े बताते हैं कि कितने बड़े स्तर पर बर्बादी हुई थी। सीसीटीवी फुटेज, वीडियो और फोटो में जो लोग आतंक मचाते दिख रहे हैं उन पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई।

इसी दौरान हरियाणा सरकार अपने ही एक हलफनामे पर घिर गई। हलफनामे में कहा गया था कि हाई कोर्ट द्वारा इतने ज्यादा केस मॉनिटर करने से जांच प्रभावित होगी। इस पर कोर्ट मित्र अनुपम गुप्ता ने कहा कि यह हाई कोर्ट की अवमानना है।


हरियाणा सरकार की ओर से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता ने कहा कि यह तथ्यात्मक गलती है हाई कोर्ट इसे अन्यथा न ले। हाई कोर्ट ने साफ कर दिया कि वह इस केस से पीछे हटने वाला नहीं है। इस पर आदेश जारी होंगे। हरियाणा सरकार चाहे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे।

हरियाणा सरकार की ओर से सुझाव दिया गया कि कोर्ट के बजाय चीफ सेक्रेटरी, गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव, डीजीपी व एडवोकेट जनरल या उनके प्रतिनिधि को शामिल कर एक जांच कमेटी गठित की जाए। कमेटी के पास अधिकार हो कि यदि किसी मामले में सीबीआइ जांच की आवश्यकता है तो सीबीआई को भेज दें।

इसके लिए हाई कोर्ट से कुछ समय दिए जाने की मांग भी की। कोर्ट मित्र अनुपम गुप्ता ने कहा कि प्रकाश सिंह ने अपनी रिपोर्ट में गृह विभाग की विफलता का जिक्र किया था, ऐसे में गृह विभाग जांच की निगरानी करे यह समझ सेपरे है।

हरियाणा सरकार ने कोर्ट को बताया कि ठोस जांच की जा रही है। जाट आरक्षण से जुड़े 2000 से अधिक लंबित मामलों की जांच सीबीआई को सौंपने की आवश्यकता नहीं है। इस पर हाई कोर्ट ने सीबीआई के काउंसिल से जवाब मांगा। सीबीआई की ओर से कहा गया कि उनके पास स्टाफ की कमी है, ऐसे में 2000 मामलों की जांच उन्हें नहीं सौंपी जानी चाहिए।



 

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