नई दिल्ली । केंद्र सरकार ने गुरुवार को कहा कि 500 रुपये तथा 1,000 रुपये के नोट बंद करने के उसके फैसले ने लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया है, क्योंकि यह काला धन तथा नकली नोट खत्म करने के उद्देश्य लगाई गई 'उचित पाबंदी' है। सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दाखिल एक जवाब में सरकार ने कहा, सरकार द्वारा 500 रुपये तथा 1,000 रुपये के नोट की मौजूदगी खत्म करने के फैसले की प्रकृति केवल एक उचित प्रतिबंध तथा नियामक की है। लोगों द्वारा पुराने बड़े नोटों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाने को अवैध या अनुचित पाबंदी करार नहीं दिया जा सकता, क्योंकि इससे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं होता है। सरकार ने अपने फैसले का बचाव करने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934 की धारा 26 (2) का संदर्भ दिया।
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इस धारा के मुताबिक,सेंट्रल बोर्ड (केंद्र सरकार) की सिफारिश पर अधिसूचना, घोषणा कर तत्काल प्रभाव से किसी भी श्रेणी के बैंक नोट को लीगल टेंडर से बाहर किया जा सकता है। सरकार ने 2,000 रुपये का नोट लाने के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि ऐसा मुद्रास्फीति के मद्देनजर, रुपये की क्रय शक्ति में कमी के मद्देनजर किया गया है।
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सरकार ने विनिमय तथा अभाव के बीच फर्क बताते हुए गुरुवार को कहा कि किसी भी व्यक्ति को विभिन्न मूल्य वर्ग के नोटों, चेकों तथा ई-ट्रांसफर से वंचित नहीं किया जा सकता है।सरकार की यह प्रतिक्रिया वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के सवाल के जवाब में आई है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश सिब्बल ने अदालत से पूछा था कि किस कानून के तहत लोगों को अपने बैंक अकाउंट से पैसे निकालने से वंचित किया जा रहा है।
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