चुनौतियों भरा बड़ा फैसला

Samachar Jagat | Tuesday, 15 Nov 2016 02:06:52 PM
Challenges big decision

पांच सौ और एक हजार रुपये के नोटों का प्रचलन बंद करने के मोदी सरकार के अप्रत्याशित फैसले ने देश के हर अमीर-गरीब व्यक्ति पर असर डाला है। यह असर सरकार के फैसले को लेकर प्रतिक्रिया के रूप में भी है और परेशानी-संतुष्टि के रूप में भी।

 इसमें दो राय नहीं कि सरकार का फैसला साहसिक है, लेकिन जिस तरह आम लोगों को परेशानी हो रही है उससे यह भी स्पष्ट है कि सरकार के नीति-नियंताओं ने पूरी तैयारी नहीं की अथवा वे यह अनुमान नहीं लगा सके कि इस फैसले का तात्कालिक असर क्या होगा? अगर इस बड़े फैसले को लागू करने के पहले उसके असर का आकलन करके उपयुक्त जमीन तैयार कर ली गई होती तो आज जो आपाधापी मची है और खुदरा कारोबार के साथ बड़े कारोबार भी ठहरते हुए दिख रहे हैं और इस सबके चलते फौरी तौर पर ही सही, अर्थव्यवस्था की गति बाधित होने का अंदेशा उभर आया है उससे बचा जा सकता था। इसी के साथ विरोधी दलों की अनावश्यक चीख-पुकार से भी बचा जा सकता था। 

नोटबंदी के फैसले के बाद सरकार यह भी कह रही है कि वह कैशलेस सोसायटी बनाना चाहती है, लेकिन उसे पता होना चाहिए था कि यह काम रातोंरात नहीं हो सकता और वह भी ऐसे देश में और भी नहीं जहां बड़े पैमाने पर नकद लेन-देन होता है। आखिर यह एक तथ्य है क्रेडिट-डेबिट कार्ड का इस्तेमाल और मोबाइल ट्रांजैक्शन तो अभी प्रारंभिक अवस्था में ही है। 

जहां तक नोटबंदी के फैसले की बात है, प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी का यह फैसला साहसिक है और उस पर हैरानी इसलिए नहीं, क्योंकि गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में वह ऐसे फैसले लेते रहे हैं। काले धन के कारोबार की कमर तोडऩे के लिए बड़े नोट बंद करने का फैसला गोपनीयता की मांग करता था और वह पूरा होना मोदी सरकार की सक्षम कार्यशैली का प्रमाण है। यह फैसला असरकारी साबित हुआ तो इसीलिए कि वह अप्रत्याशित तौर पर सामने आया। बीते मंगलवार की रात आठ बजे प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम संबोधन के पहले किसी को ऐसे फैसले की भनक नहीं थी। 

उनका संबोधन समाप्त होते-होते साढ़े आठ बजे चुके थे और तब तक अधिकांश बाजार बंद हो चुके थे और दो नंबर का धन रखने वालों को उसे अन्यत्र खपाने का अवसर नहीं मिला। प्रधानमंत्री ने इस फैसले के दो कारण बताए। एक, सीमा पार से नकली नोटों का फैलाव और दूसरा, देश की अर्थव्यवस्था में कालेधन की भूमिका बढ़ जाना। इस फैसले से नकली नोट तो रद्दी के ढेर में तब्दील ही हुए, अवैध तरीके से अॢजत और बिना हिसाब-किताब वाला काला धन भी एक झटके से चलन से बाहर हो गया। 

चूंकि देश में एक बड़ी संख्या में कारोबारी दो नंबर के पैसे के जरिये कारोबार करने के आदी हैं इसलिए अभी तो वे सदमे में हैं, लेकिन यह अंदेशा है कि कुछ समय बाद वे नए नोटों के जरिये फिर से काला धन जमा करने में सफल हो सकते हैं। यह ठीक है कि सरकार की ओर से यह कहा गया है कि संदिग्ध नकद लेन-देन पर अंकुश लगाने के लिए कुछ और फैसले किए जाएंगे, लेकिन यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि अभी तक इस दिशा में जो एकाध कदम उठाए जा चुके हैं वे कारगर साबित होने शेष हैं। 

सरकार इससे भी अच्छी तरह परिचित है कि राजनीति में काले धन की एक बड़ी भूमिका है। अभी राजनीति में काले धन के प्रवेश और प्रवाह को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं और इस संदर्भ में चुनाव आयोग की ओर से जो पहल हुई उसकी अनदेखी ही अधिक हुई है। अभी राजनीतिक दलों के चंदे के लेन-देन को भी पूरी तरह पारदर्शी नहीं बनाया गया है। क्या यह अच्छा नहीं होता कि नोटबंदी के फैसले के पहले राजनीति में काले धन के इस्तेमाल को रोकने का फैसला कर लिया जाता? कम से कम अब तो ऐसे कदम उठाए ही जाने चाहिए जिससे काला धन राजनीति के संचालन में सहायक न हो सके। 

राजनीतिक दल काले धन को खपाने में इसीलिए सक्षम हैं, क्योंकि उन्हें 20 हजार से कम राशि के चंदे का हिसाब नहीं देना पड़ता। अच्छा हो कि यह मांग खुद भाजपा की ओर से उठे कि राजनीति में काले धन की भूमिका समाप्त करने की ठोस पहल हो। इससे ही नोट बंदी के मोदी सरकार के साहसिक फैसले की महत्ता बढ़ेगी। चूंकि बड़े नोटों पर पाबंदी के फैसले के लिए पूरी तैयारी का अभाव दिखा इसलिए अब अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में फौरी और कई क्षेत्रों में दीर्घकालिक असर पडऩे का अंदेशा है।

 यदि नकदी का संकट लंबा भखचा तो अर्थव्यवस्था में कुछ नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं। ऐसा न होने पाए, इसके लिए सरकार को सचेत रहना होगा। नोटबंदी का साहसिक फैसला काले धन के कारोबार की कमर तोडऩे वाला है तो कई क्षेत्रों में तत्काल प्रभाव से सकारात्मक असर डालने वाला भी है जैसे कि रियल इस्टेट। यह सबके हित में है कि इस क्षेत्र की स्थिति सुधरे, क्योंकि यह रोजगार उपलब्ध कराने वाला एक प्रमुख क्षेत्र है। जहां नोटबंदी के सकारात्मक प्रभाव स्पष्ट हैं वहीं नकारात्मक प्रभावों के बारे में अभी अस्पष्टता है। 

सरकार की कोशिश होनी चाहिए नकारात्मक प्रभाव उभरे ही नहीं। अब जब आम जनता काले धन के खिलाफ सरकार की सख्ती का कष्ट सहकर भी सहयोग कर रही है तब उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वह काले धन के खिलाफ अपनी मुहिम को अंजाम तक पहुंचाए और कैशलेश सोसायटी का निर्माण करने में अपने स्तर पर आवश्यक फैसले करने में और देर न करे। 

केंद्र सरकार को उम्मीद है कि नोटबंदी के फैसले से ऐसा माहौल बनेगा कि लोग नकदी का प्रयोग कम कर देंगे। अच्छा होता कि इसके लिए पहले ही कुछ जरूरी कदम उठा लिए जाते। एक कदम तो बैंकिंग सेवाओं को सुदढ़ करने का होना चाहिए था, क्योंकि देश का एक बड़ा इलाका बैंकिंग सेवाओं के मामले में पिछड़ा हुआ है। इसका प्रमाण नोटबंदी के फैसले के बाद मची अफरातफरी से भी मिलता है।

 बैंकिंग सेवाओं को बेहतर बनाने के साथ सरकार को ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए थी जिससे असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को भी उनकी मजदूरी बैंक खातों के जरिये मिलती। हर स्तर पर उद्यमियों-व्यापारियों की ओर से नकद लेन-देन के चलन को हतोत्साहित करने की भी जरूरत थी। अगर यह काम कर लिया गया होता तो नोटबंदी के फैसले से श्रमिकों को कहीं कम परेशानी होती और कारोबार की रफ्तार भी सुस्त नहीं पड़ती। 

अभी तो छोटे दुकानदारों, रेहड़ी-पटरी वालों को भी अपना धंधा जारी रखना मुश्किल हो रहा है। यदि हर तरह के कारोबारियों और यहां तक कि छोटी-छोटी दुकानों, रेस्त्रां और धन का लेन-देन करने वाले समस्त सरकारी-गैर सरकारी विभागों आदि में कैशलेस तंत्र विकसित करने का प्रभावी अभियान चला होता तो आज हालात दूसरे दिखते और पर्याप्त नकदी के अभाव में सब कुछ ठप होता नहीं दिखता। सरकार को पता होना चाहिए था कि केवल इतना ही पर्याप्त नहीं कि करीब-करीब हर किसी का बैंक खाता हो। इसी के साथ यह भी जरूरी था कि अधिक से अधिक लोग ऐसी स्थिति में होते कि उन्हें नकदी का न्यूनतम प्रयोग करना पड़ता।

 उम्मीद है कि सरकार ने जरूरी सबक सीख लिए होंगे और अब उसकी ओर से काले धन के कारोबार को फिर से न पनपने देने के लिए हर संभव कदम उठाने के साथ ही कैशलेस सोसायटी का निर्माण करने वाले उपाय भी किए जाएंगे। इससे ही नोटबंदी का फैसला देश की तस्वीर बदलने वाला साबित होगा।
 



 

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