भ्रष्टाचार के विरुद्ध सबसे बड़ी नसबंदी है नोटबंदी

Samachar Jagat | Friday, 09 Dec 2016 05:14:26 PM
demonitisation is the biggest Sterilization against corruption Chat Conversation End

विश्व के देश एक बार फिर 9 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस के रूप में मानाने जा रहा है। इस अवसर पर विभिन्न देशों में भ्रष्टाचार के उन्मूलन की चर्चा होगी। यह जगजाहिर और अकाट्य सत्य है कि दुनियाभर में भ्रष्टाचार की वजह से न केवल आर्थिक विकास पर असर पड़ता है बल्कि लोकतंत्र के प्रति विश्वास को भी ठेस पहुँचती है। विश्व का कोई भी देश भ्रष्टाचार से सुरक्षित नहीं है। 

भ्रष्टाचार ने पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले रखा है। भ्रष्टाचार आर्थिक विकास में बाधक है, लोकतंत्र के प्रति विश्वास को नुकसान पहुँचाता है और रिश्वत की संस्कृति को बढ़ावा देता है। भ्रष्टाचार से सामाजिक असामानता फैलती है। 

इसी बीच भारत ने कालेधन और भ्रष्टाचार के विरुद्घ नोटबंदी का बिगुल बजा दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत 8 नवम्बर को 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने का बहुत ही साहसिक फैसला किया। प्रधानमंत्री की इस यकायक घोषणा से पूरा देश स्तब्ध रह गया। देशवाशियों ने शुरू  में इस फैसले का व्यापक स्वागत  किया। दो तीन राजनीतिक दलों को छोडक़र सभी ने देशहित में इसका समर्थन किया। 

मगर शीघ्र ही लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। शादी सगाई सहित अंतिम संस्कार तक में पैसों का लाला पड़ गया। बैंकों में राशि जमा होने के बावजूद लोग अपने ही पैसों से मरहूम हो गए। कतारें निरंतर लंबी होती गई और बैंकों ने अपनी खाली जेब दिखानी शुरू  कर दी। सरकार की नित नई घोषणाएं भी खोखली साबित हुई। आम आदमी राहत के स्थान पर आहत हुआ। 

इसी दौरान भ्रष्टाचारियों ने अपनी राह खोज ली। लंबी कतारें कहीं सही तो कहीं कृत्रिम खड़ी की गई। कुछ लोगों ने नोट बदलाने का धंधा बना लिया। ऐसे दलालों को भी देखा गया जिन्होंने दिहाड़ी मजदूरों को कतार में खड़ा कर अपना ऊल्लू सीधा किया। 

बहुत से लोगों ने फायदा देखकर इस नए धंधे को अपना भी लिया। कालेधनवालों ने अपने परिजनों, जानकारों, नौकर चाकरों के बैंक खातों को खंगालना शुरू  कर दिया। ऐसे लोगों ने गरीबों के जन धन योजना के खातों की भी सुधबुध ली और लालच दे कर अपनी बड़ी राशि इन खातों के हवाले कर दी जिसके खिलाफ प्रधानमंत्री को देशवाशियों को सतर्क करना पड़ा। दूसरी तरफ बैंक कर्मियों ने भी चांदी कूटने में कई कसर नहीं छोड़ी। परिजन और जान पहचानवालों को उपकृत करना तो समझ में आने वाला गणित है। मगर कमीशन बाजी ने सारी पोल खोल कर रख दी। करोड़ो रुपयों का खेल हुआ। बहती गंगा में बहुत से लोगों ने हाथ धोये इससे कोई इंकार नहीं कर सकता।  बहुत से लोगों को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ा। जनता की परेशानियों को भांपकर प्रधानमंत्री को देशवाशियों से 50 दिन का समय मांगना पड़ा। यह भी कहना पड़ा कि आप लोगों को पिछले 70 सालों में बहुत सी कतारों का सामना करना पड़ा। यह अंतिम कतार है।

नोटबंदी के इस फैसले से राजनीतिक सियासत में भी उछाल आगया। कांग्रेस पार्टी ने आम आदमी की परेशानियों को जोर शोर से उछाल कर अन्य विपक्षी दलों के समर्थन से संसद ठप्प कर दी। वहीं केजरीवाल और ममता बनर्जी ने देशभर में घूम घूम कर नोटबन्दी की जमकर मुखालपत की।

 मायावती, मुलायम, लालू और वामपंथियों ने भी अपने अपने तरीकों से विरोध किया। नीतीश कुमार और नवीन पटनायक अवश्य इस मुद्दे पर सरकार के साथ नजर आये। नोटबंदी ने सोशल साइटों पर घमासान मचाना शुरू  कर दिया जिससे लोगों को वास्तविक स्थिति समझने में काफी मश्किलातों का सामना कर पड़ा। ट्विटर, फेसबुक सहित विभिन्न सोशल साइटों पर  लोगों ने जमकर अपनी भडांस निकाली। जनशिक्षण का स्थान जैसे जन भक्षण ने ले लिया।

यहां यह सवाल उठना लाजमी है कि है कि कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ इस जंग में एक बहुत अच्छा कदम होते हुए भी सरकार की इतनी किरकिरी क्यों हुई। 

क्या सरकार की तैयारी नाकाफी थी अथवा विमुद्रीकरण के इस क्रांतिकारी फैसले के क्रियान्वयन में जनहितों की अनदेखी हुई। सरकार की तैयारियां आधी अधूरी क्यों थी। सरकार बैंकों तक नई करेन्सी पहुंचाने में कामयाब क्यों नहीं हुई जिससे विपक्ष को जनता की परेशानी का मुधा उठाने का घर बैठे मौका मिलगया। यह कुछ ऐसे सवाल है जिनका आम आदमी सरकार से जवाब चाहता है। कुछ भी हो देश में एक बारगी हाहाकार की स्थिति अवश्य पैदा हुई। सरकार ने कैशलेस की बात की। क्या गाँव, गरीब और किसान की हालत से सरकार वाकिफ नहीं थी। अनेक सवालों के मध्य यह भी कटु सत्य है कि ग्रामीण की बैंकों तक पहुंच न होने के बावजूद किसान के लडक़े के हाथ में वाट्सअप के साथ एटीएम और डेबिट कार्ड देखा जा सकता है विशेषकर किसान की गाढ़ी कमाई से शहर में पढऩे वाले बच्चे जमकर इन साधनों का उपयोग कर रहे है। 

नोटबंदी ने आम आदमी को परेशानी के बावजूद अनेक सौगातें भी दी है। मितव्ययता के साथ लोगों ने बचत की आदत भी डाली है। आसमान छूतें रियल स्टेट के दामों में गिरावट देखने को मिली है वहीं दाल सब्जियों और खानपान की अन्य चीजों के भाव गिरने से लोगों ने राहत महसूस की है। इलेक्ट्रनिक खरीद फरोख्त साधनों का उपयोग बढ़ा है।  हालांकि खुद प्रधानमंत्री यह स्वीकार करते है की लोगों की परेशानियां बढ़ी है। मगर आगे जाकर देश की अर्थव्यस्था में सुधार होगा और भ्रष्टाचारियों की कमर टूटेगी। चूंकि प्रधानमंत्री ने देशवाशियों  से 50  दिन की मोहल्लत मांगी है इसलिए परेशानी के बावजूद यह मोहल्लत दी जानी चाहिए। 

भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ मुहिम चलाने वाले अन्ना हजारे ने सरकार के नोटबंदी के कदम की जमकर तारीफ करते हुए इसे केन्द्र का बड़ा एवं क्रांतिकारी कदम बताया है। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के पुरोधा अन्ना ने कहा कि 500 और 1000 रुपए के पुराने नोट के बैन होने से ब्लैक मनी पर रोक लगेगी। उन्होंने कहा, इस क्रांतिकारी कदम से बड़े पैमाने पर ब्लैक मनी, भ्रष्टाचार और आतंकियों की फंडिंग पर रोक लगेगी। अन्ना ने कहा, पिछली सरकार ने ब्लैक मनी पर रोक लगाने की हिम्मत नहीं की थी।  
   
भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है भ्रष्ट आचरण यानि  जिसका आचार बिगड़ गया हो। स्वार्थ में लिप्त होकर  किया गया गलत कार्य भ्रष्टाचार होता है। भ्रष्टाचार के कई रूप हैं- रिश्वत, कमीशन लेना, काला बाजारी, मुनाफाखोरी, मिलावट, कर्तव्य से भागना, चोर-अपराधियों आतंकियों को सहयोग करना आदि आदि। इसका सीधा मतलब है जब कोई व्यक्ति समाज द्वारा स्थापित नैतिकता के आचरण का उल्लंघन करता है तो वह भ्रष्टाचारी कहलाता है। यहां भ्रष्टाचार से हमारा तात्पर्य अनैतिक और गलत तरीके से अर्जित आय से है। विभिन्न संगठनों के संघर्ष के बाद भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए 12 अक्टूबर 2005 को देशभर में सूचना का अधिकार कानून भी लागू किया गया। इसके बावजूद रिश्वत खोरी कम नहीं हुई। 

भ्रष्टाचार संवेदन सूचकांक (करप्शन पर्सेप्शन्स इंडेक्स)-2015 नामक रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने भ्रष्टाचार खत्म करने के मामले में अपनी छवि को और बेहतर किया है और वह 168 देशों वाली सूची में 85वें स्थान से उठकर 76वें स्थान पर पहुंच गया। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के मुताबिक भ्रष्टाचार दुनिया भर के लिए एक बड़ा मुद्दा रहा है और पिछले साल दुनिया भर में भ्रष्टाचार के विरोध में लोग सडक़ों पर उतर आए थे। भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए किये जा रहे प्रयासों के कारण भारत का 76वें स्थान पर पहुंचना दुनिया भर के लोगों के लिए एक मजबूत संकेत है और इससे यह भी साबित होता है कि भ्रष्टाचार से निपटने के लिए सही और ठोस कदम उठाये जा रहे है। कालेधन के खिलाफ विमुद्रीकरण का यह प्रयास सफल हुआ तो भ्रष्टाचार की गणना में भारत का स्थान और नीचे आएगा इसमें कोई संदेह नहीं है।
(ये लेखक के निजी विचार है)



 

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