यह मानव स्वभाव ही होता है कि उसे दूसरों के पास बहुत कुछ दिखाई देता है, खुद से अच्छा दिखाई देता है। व्यक्ति स्वयं को बड़ा दीन-हीन मानता है, कमजोर मानता है, हीन भावना से ग्रसित समझता है और यही कारण है कि उसके पास सब कुछ होते हुए भी वह उसकी वैल्यू नहीं समझता है, यही मानव के साथ त्रास्दी है। एक बार कोई एक व्यक्ति था, जो खुद को बहुत कमजोर और दीन-हीन समझता था, यद्यपि वह बहुत ही हृष्ट-पुष्ट था, एकदम स्वस्थ था तो भी वह दूसरों के सामने गिड़गिड़ाते रहता था, भीख के लिए अपने दोनों हाथों को फैलाते रहता था।
लोग उसको इस तरह की कायराना हरकतों के लिए हीन दृष्टि से देखते थे, खूब डाटते थे, उसे बुरा भी लगता था, लेकिन इसके बावजूद भी वह अपनी आदतों का दास बन चुका था, मजबूर था खुद की बेइज्जती करवाने के लिए। एक दिन की बात है कि वह अपना घर खर्च चलाने के लिए किसी से पैसे उधार मांग रहा था, जबकि हकीकत तो यही थी कि उसने उस व्यक्ति से पहले भी पैसे उधार ले रखे थे और उन पैसों को अब तक भी नहीं लौटाया था। जब उसने फिर से पैसे उधार मांगे तो उसे गुस्सा आ गया और पैसे मांगने वाले व्यक्ति को भला-बुरा कहने लगा।
वह सब कुछ सुनता रहा, कुछ नहीं बोला, बोलता भी कैसे? थोड़ी देर बाद ही उसका गुस्सा शांत हुआ और फिर उससे धीरे से कहा- चलो मैं आपको आप जितने पैसे चाहते हो, उतने पैसे दे दूंगा, लेकिन एक शर्त पर, ऐसा सुनते ही वह बहुत जल्दी बोला- मैं आपकी सब शर्ते मान लूंगा, बस मुझे तो पैसे चाहिए। बोलो आपकी क्या शर्ते हैं? पैसे देने वाले व्यक्ति ने कहा कि मुझे आपके दोनों हाथ चाहिए, दोनों पैर चाहिए, दोनों आंख चाहिए और दोनों कान चाहिए। मैं आपको इनके बदले पांच लाख रुपए दे दूंगा, बोलिए मंजूर है मेरी शर्त। जैसे कि उसको सांप सूंघ गया हो, उसके मुंह से अनायास ही निकल पड़ा कि यह तो मेरे लिए असंभव बात है, मैं ऐसा कभी नहीं करूंगा।
मित्रों, अपनी स्वयं की वैल्यू समझिए, स्वयं को सम्मान दीजिए, स्वयं से प्यार कीजिए, स्वयं पर एतबार कीजिए, स्वयं की श्रेष्ठता को समझिए, स्वयं की योग्यताओं को सम्मान दें, स्वयं की समताओं को मान दें। किसी के सामने दया भरी दृष्टि से देखना, आपके मानव होने पर बड़ा कलंक है, दूसरों को शक्तिशाली चलो मान लें, लेकिन खुद को बहुत कमजोर मानना, यह स्वयं के साथ सबसे बड़ा धोखा है।
ऐसा मत कीजिए क्योंकि यह एक तरह से सीधे श्रीप्रभु की अनमोल कृति की अवहेलना करना है, उपेक्षा करना है, अपमान करना है, ऐसा कभी भी किसी भी परिस्थिति में नहीं करें, ऐसे करने का मतलब है खुद को कमजोर करना, खुद को निकम्मा बनाना और खुद को औरों की नजरों में तो गिराना ही है, बल्कि स्वयं की नजरों में भी गिराना है। आइए, अपने इस शानदार शरीर और अनमोल जीवन को दूसरों के हाथों का खिलौना नहीं बनाए। हमेशा स्वयं को सर्वश्रेष्ठ साबित करें, सर्वश्रेष्ठ करके जो कि आप आसानी से कर सकते हैं, इसी बात से आपके सम्मान की रक्षा हो सकेगी।
प्रेरणा बिन्दु:-
अपने गौरव को मत बेचो
बीच बाजार चौराहों पर
लिखते चलो सम्मान कहानी
अपनी खुद की राहों पर।