विकास दर का अनुमान घटाया

Samachar Jagat | Saturday, 10 Dec 2016 04:46:34 PM
Growth forecast lowered

रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता में मंगलवार और बुधवार को हुई छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति की बैठक में ब्याजदरों में कोई बदलाव नहीं करने से उद्योग जगत को निराशा हुई है। मौद्रिक नीति समिति की यह दूसरी बैठक थी। ऐसी पहली बैठक अक्टूबर में हो चुकी है। 

500 रुपए और 1000 रुपए के बड़े मूल्य के नोटों को वापस लेने की प्रक्रिया के चलते उद्योग-कारोबार पर असर पड़ने के मद्देनजर ब्याज दरों में कटौती की अपेक्षा की जा रही थी। यहां यह उल्लेखनीय है कि सांख्यिकी विभाग की ओर से 30 नवंबर को जारी आंकड़ों के अनुसार सितंबर को समाप्त हुई वर्ष 2016-17 की दूसरी तिमाही में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर उम्मीद से कम रहते हुए 7.3 फीसदी रही।

 यह पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि के मुकाबले भी कम है। इतना ही नहीं जुलाई-सितंबर तिमाही की वृद्धि दर की स्थिति के पीछे मुख्य रूप से सरकार की ओर से खर्च बढ़ाने और कृषि क्षेत्र के अच्छे प्रदर्शन की वजह से दिखाई दे रही है। लेकिन अब नोटबंदी की 8 नवंबर की घोषणा के बाद से आर्थिक गतिविधियों में एक तरह से ठहराव आया है। नोटबंदी के चलते नवंबर में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि रफ्तार धीमी पड़ गई।

 नकदी की कमी के चलते घरेलू खपत कमजोर पड़ने से वस्तुओं के उत्पादन और नए कारोबार प्रभावित हुए है। नकदी की किल्लत की वजह से अगली तिमाही में औद्योगिक क्षेत्र में नरमी आ सकती है। निक्केई मार्केट इंडिया मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) के आंकड़ों के अनुसार नवंबर 2016 में विनिर्माण क्षेत्र की गति घटाकर 52.3 अंक रह गई है। इससे पहले अक्टूबर में यह गति 54.4 अंक पर पिछले 22 महीने के उच्चतम स्तर पर थी।

 नकदी संकट से प्रभावित सेवा क्षेत्र में नवंबर महीने में तीन साल की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज हुई है। एक मासिक सर्वेक्षण के अनुसार जून 2015 के बाद पहली बार सेवा क्षेत्र में नए आर्डरों में गिरावट आई है। उद्योग संगठन एसोचैम के इस आकलन से असहमति व्यक्त करना कठिन है कि 500 और 1000 के पुराने नोटों की वापसी का तत्काल नकारात्मक असर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर पर पड़ेगा।

 बाजार से 86 प्रतिशत नोट एक बार बाहर हो गए और उसके अनुपात में अत्यंत ही कम नोट आएं तो फिर इसका असर पूरी आर्थिक गतिविधियों पर पड़ना ही है। लोगों के पास नोट नहीं तो खरीदारी नहीं, खरीदारी नहीं तो फिर उत्पादन क्यों? इस तरह विकास चक्र पर तात्कालिक असर तो होगा। इन सब स्थितियों के मद्देनजर नोटबंदी से मांग से गिरावट के कारण आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी ग्रोथ रेट का अनुमान 7.6 प्रतिशत से घटाकर 7.1 प्रतिशत कर दिया है। केंद्रीय बैंक का कहना है कि कमजोर मांग के कारण मैन्युफैक्चरिंग की रफ्तार धीमी पड़ गई है। इसके साथ इनपुट कास्ट बढ़ने से कंपनियों का मुनाफा प्रभावित हुआ है।

 इससे नवंबर-दिसंबर में औद्योगिक गतिविधियां सुस्त होंगी। कंपनियों को वेतन देने में देरी हो रही है। कच्चा माल और दूसरी चीजें खरीदने का फैसला भी वे टाल रही है। हालांकि नोटबंदी का विस्तृत आकलन अभी बाकी है। निर्माण, व्यापार, परिवहन, होटल और संचार क्षेत्र में इस कदम का मिश्रित असर होगा। कैश का ज्यादा इस्तेमाल करने वाला असंगठित क्षेत्र भी प्रभावित होगा। 

यहां यह भी बता दें कि दुनिया की प्रमुखता रेटिंग एजेंसियों मूडीज और एसएंडपी ने कहा है कि नोटबंदी से उद्योग-कारोबार और जीडीपी में कमी आने से भारत की निवेश रेटिंग प्रभावित होगी। कुछ महीनों तक भारतीय अर्थव्यवस्था कमजोर होगी। नकदी की कमी से खुदरा कारोबार में कमी आएगी।

 रुपए की कीमत में कमी के कारण आयात महंगे होंगे। लोगों के कर्ज भुगतान की क्षमता पर असर गिरेगा। परिणामस्वरूप चालू वित्तीय वर्ष 2016-17 में भारत की निवेश रेटिंग कमजोर रहेगी। उल्लेखनीय है कि अंतरराष्ट्रीय साख निर्धारक एजेंसी मूडीज ने भारत को निवेश के मामले में निचली रेटिंग बीएए-3 दी है। इसका मतलब यह है कि अभी भी भारत में निवेश का परिदृश्य अनुकूल नहीं है।

 इसी तरह अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एमएंडपी) ने भी भारत के लिए बीबीबी रेटिंग और स्थिर आउट लुक बरकरार रखा है। यह रेटिंग निवेश के लिहाज से सबसे निचली ग्रेड मानी जाती है। इसके नीचे की रेटिंग जंक यानी निवेश के लायक नहीं होती है। ऐसे में 2016-17 के लिए 7.5 फीसदी वृद्धि दर के अनुमान को हासिल करना कठिन हो सकता है। रेटिंग एजेंसी फिच ने नोटबंदी के मद्देनजर मौजूदा वित्त वर्ष में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.9 प्रतिशत रहने का नया अनुमान व्यक्त किया है, जबकि नोटबंदी से पहले उसने 7.4 प्रतिशत का अनुमान व्यक्त किया था।

 देश का औद्योगिक ही नहीं निर्यात परिदृश्य भी निराशाजनक है। प्रोत्साहनदायक प्रावधानों की कमी से औद्योगिक और निर्यात वृद्धि की संभावनाओं पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। जहां भारत से निर्यात घटे हैं, वहीं कुछ पड़ोसी देशों के निर्यात बढ़े हैं। चूंकि देश में औद्योगिक परिदृश्य पर निराशाएं है, परिणामस्वरूप निवेशक नए प्रोजेक्ट्स में निवेश करने से कतरा रहे हैं। 

देश में सार्वजनिक और निजी निवेश में कमी आर्थिक तरक्की को बाधित करने वाला प्रमुख कारण है। खर्च के आधार पर निर्धारित प्राइवेट फाइनल कंजप्सन एक्सपोंडिचर (पीएफसीई) का वर्तमान मूल्य सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 60 प्रतिशत और स्थिर मूल्य पर 55 प्रतिशत हिस्सा होता है।

 उद्योग संगठन एसोचैम की माने तो नोटों की वापसी के कारण तीसरी तिमाही में पीएफसीई में कम से कम 35 से 40 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है और चौथी तिमाही में भी इसमें गिरावट रहने के आसार है। जाहिर है इसका असर समूची अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। प्रश्न है कि क्या सरकार ऐसा कर सकेगी जिससे नोट वापसी का असर कम हो सके। नोट वापसी के कारण बाजार की मंदी को तोड़ने और उसमें गतिशीलता लाने के लिए सरकार एवं रिजर्व बैंक दोनों को कमर कसना होगा।



 

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