मानव अधिकार आयोग दन्तहीन

Samachar Jagat | Saturday, 10 Dec 2016 04:43:28 PM
Human Rights Commission edentulous

चौबीस अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई। संघ के चार्टर में मानवीय अधिकारों व व्यक्ति की गरिमा को मान्यता मिली। मानव अधिकार आयोग की स्थापना 1948 में हुई। मानव के नैसर्गिक अधिकारों को परिभाषित किया गया। विधि के शासन की नीति को प्रत्येक सदस्य राष्ट्र ने स्वीकार किया।

 संविदाओं पर हस्ताक्षर किये गये व समझौतों के पालन में विधियां पारित की गई। भारतीय संविधान में उल्लिखित मौलिक अधिकारों व निदेशक तत्व भी कानूनी प्रावधानों के रूप में व मानवाधिकारों के रूप में महत्वपूर्ण बनाये गये। मानव अधिकार भारतीय संस्कृति, साहित्य व धर्मो के दर्शन से जुड़े हुए हैंं स्वतंत्रता आन्दोलन में इन अधिकारों के हनन पर संघर्ष चला। 

भारतीय संविधान में वर्णित अधिकारों के माध्यम से एवं अन्य कानूनों के माध्यम से भारतीय नागरिकों को मानवाधिकार प्रदान किये गये। भारतीय संविधान के भाग-3 में मूल अधिकारों की व्यवस्था की गई। इन मूल अधिकारों में मानव अधिकार निहित है और उनके सम्बन्ध में आवश्यक व्यवस्थायें की गई हैं।

कानून के समक्ष समानता का अधिकार, धर्म, लिंग, जन्म स्थान, जाति आदि के आधार पर प्रतिबंध, सार्वजनिक संस्थानों में नौकरी के समान अवसर, अभिव्यक्ति, सभा करने, संघ बनाने आदि की स्वतंत्रता, दोष प्रमाणित होने के पूर्व निर्दोष माने जाने का अधिकार, जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा, मनुष्य के व्यापार पर एवं बाध्य करके काम कराने पर प्रतिबन्ध, धर्म प्रचार की स्वतंत्रता, अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा, उत्पीडन विरोधी अधिकार, सम्पत्ति रखने का अधिकार, वयस्क मताधिकार द्वारा सरकार बनाने का अधिकार, निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार आदि मूल अधिकार है। 

मौलिक अधिकारों के हनन के विरूद्घ कोई भी नागरिक उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है और यह कोर्ट का दायित्व है कि वह नागरिकों को उनके अधिकार उपलब्ध करायें।

हमारे देश में गांधी का विचार दर्शन भी, अमानवीय व्यवहार से मुक्त कराने का अहिंसात्मक तरीके से, सन्देश देता है। प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने जीवनकाल में राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों के उल्लंघन का विरोध किया व मानवाधिकारों को लागू कराने के लिए पूरे विश्व समुदाय को प्रभावित किया। डा. अम्बेडकर ने असमानता को मनुष्यता व मानवता के विरुद्घ माना। 

मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु मानवाधिकर संरक्षण अध्यादेश 1993 जारी किया गया। अक्टूबर 1993 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया। अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग और अनुसूचित जाति व जनजाति आयोग के अध्यक्ष पदेन सदस्य रखे गये हैं। 

इसी प्रकार प्रत्येक राज्य में मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया है। 
राष्ट्रीय व राज्य मानवाधिकारों के अधिकार सीमित है, आयोगों की अनुशंसा बाध्यकारी नहीं है, इसलिए सरकारें आयोग की अनुशंसा के बावजूद कार्यवाही नहीं करती। आयोग दन्तहीन है। आयोग की जांच शाखा के अधिकारी राज्य पुलिस विभाग से ही प्रतिनियिुक्ति पर आते है। आयोग के पास साधन, कर्मचारियों व बजट का अभाव रहता है। आयोग केवल सिफारिश कर सकता है, उसकी पालना सुनिश्चित नहीं कर सकता है, सरकारों पर निर्भर रहता है। अत: आयोग को प्रभावकारी बनाने व आयोग की अनुशंसा को बंधनकारी बनाना आवश्यक है। 

आयोगों को औपचारिकता छोडक़र अपने गठन के उद्देश्य के अनुरूप कार्य प्रणाली अपनानी चाहिए। शिकायतों व सूचनाओं को हल्के रूप में नहीं लेना चाहिए। एक अवयस्क बालिका ने अपहरण व बलात्कार के संबंध में मुख्यमंत्री व पुलिस महानिदेशक को पत्र लिखकर उसकी प्रतिलिपि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भेजी। आयोग ने उसका उत्तर यह दिया कि आयोग को सूचनार्थ व कार्यवाही हेतु प्रतिलिपि भेजी गई है। 

अत: आयोग कार्यवाही करने में असमर्थ है। यानि केवल सीधा प्रार्थना पत्र आयोग को भेजा जाता तो शायद आयोग उसको देखता। अगर पुलिस में नहीं जाता तो कहा जाता पुलिस रिपोर्ट क्यों नहीं की गई। मानवाधिकार आयोग द्वारा इससे बड़ा मजाक नहीं हो सकता। करोड़ों रुपया व्यय कर आयोग का गठन किया गया है। सेवानिवृत न्यायाधिपतियों को रोजगार मिला और यह कह दिया है, उन्हें केवल प्रतिलिपि मिली है इसलिए कार्यवाही नहीं हो सकती। वस्तुत: यह गैर जिम्मेदारीपूर्ण रवैया है। सूचना मिलते ही आयोग को स्वयं कार्यवाही करनी चाहिए।

आयोगों के अध्यक्ष भी राजनेताओं की राह पर चल निकलते है। अखबारों में लम्बे चौड़े वक्तव्य, सभा, संगोष्ठियों का आयोजन ही कार्य रह जाता है। मात्र उपदेशात्मक बातें रह जाती है। दूरस्थ इलाकों में जाकर जनसुनवाई का अभाव रहा है। इसलिए आमजन को तो यह मालूम ही नहीं है कि उनके क्या अधिकार है व अधिकारों की सुरक्षा के संबंध में आयोग जैसी संस्था है। एक अत्याचार के संबंध में राज्य मानवाधिकार आयोग को मय दस्तावेजी सबूत आवेदन किया गया। आयोग ने उसकी जांच कराई। 

संबंधित अधिकारियों ने दबावो के चलते समय बर्बाद कर दिया। जब आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष से पीडि़त मिले तो उन्होंने माना कि निर्दोष को मारा गया है परन्तु बहुत देरी हो गई। विनती की गई कम से कम मुआवजा तो पीडि़त की वृद्घ माता को दिए जाने की सिफारिश की जानी चाहिए। परन्तु आयोग ने देरी का कारण बताकर कोई सिफारिश नहीं की व पत्रावली दाखिल दफ्तर कर दी गई। समय पर अधिकारों की रक्षा व न्याय दिलाने के लिए अब आयोगों को अपनी कार्य पद्घति व सोच बदलना ही होगा। 

आज के उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के युग में मानव अधिकारों के संरक्षण पर लगातार प्रश्न चिन्ह लग रहे है। जन सेवक, लोक सेवक, राज्य व्यवस्था, लोक कल्याणकारी अवधारणा से पीछे हटते दिखाई दे रहे है। पूंजीवादी व्यवस्था अपनी समस्त बुराईयों के साथ समाज में प्रवेश कर चुकी है। 

अनाचार, असमानता, भष्ट्राचार, संवेदनहीनता, सामाजिक बुराईयां, शोषण अपनी चरम सीमा की ओर बढ़ रहे है व मानव अधिकारों की बात सोचना बेमानी होता जा रहा है। ऐसे में मानवाधिकार आयोगों को और अधिक सक्षम व सशक्त बनाने की आवश्यकता है। 

नोट बन्दी के मामलों में हुई मौतों के मामले में, जमा पूंजी को निकालने पर लगे प्रतिबन्ध के बारे आयोग को चुप नहीं रहना चाहिए। चाहे दलितों पर अत्याचार के मामलें हों, चाहे महिलाओं पर, सरकार व इस हेतु कार्यरत  संस्थाओं ने  जनता का विश्वास अर्जित नहीं किया। वक्तव्य जारी करना, प्रदर्शन करना, छोटे मोटे धरने देना, इलेक्ट्रोनिक मीडिया व प्रिन्ट मीडिया के माध्यम से अपने को उजागर करना ही उद्देश्य रह गया। समाज के प्रबुद्घजन का व्यवहार तो पूरी तरह अनुत्तरदायित्वपूर्ण हो गया। राजनैतिक क्षेत्र में गिरावट आने से प्रशासन व पुलिस पूर्णतया असंवेदनशील, कर्तव्यों से विमुक्त होकर गैर जिम्मेदारना व्यवहार करने लगे हैं। 

राजनैतिक संरक्षण के चलते उनकी जवाबदारी, संवेदनशीलता समाप्त हो गयी। संक्षेप में मानवता, मानव कल्याण, मानव सुरक्षा अधिकार केवल कहने को शेष रह गये। मानवाधिकार आयोगों को अपनी सार्थकता साबित करने के लिए अधिक सक्रियता से कारगर कदम उठाने होंगे अन्यथा उनके गठन का लाभ जनसाधारण व पीडि़तों को नहीं मिलेगा।



 

यहां क्लिक करें : हर पल अपडेट रहने के लिए डाउनलोड करें, समाचार जगत मोबाइल एप। हिन्दी चटपटी एवं रोचक खबरों से जुड़े और अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें!

loading...
रिलेटेड न्यूज़
ताज़ा खबर

Copyright @ 2024 Samachar Jagat, Jaipur. All Right Reserved.