जिंदगी भीड़ में खोने लगी
एक अकेली भीड़ में रोने लगी
वजूद को ढूंढ़ने निकली हूं मैं
बात अपनी यौं कहने लगी
भीड़ के सर था न पैर कोई
सैलाब बन उन्माद का बहने लगी
जिंदगी हूं जिंदगी रहूं कैसे
दास्तां यौं बेबसी की कहने लगी
कहते हैं कि वक्त सब कुछ है अर्थात् वक्त पर निर्णय, वक्त पर काम, वक्त की कदर और वक्त को सलाम, क्योंकि वक्त ने अपनी गति और मति को बहुत तेजी से बदला है और यौं कहे कि कभी वक्त मंद-मंद मुस्कान से भरा सहज और सरल था, सबके पास भरपूर था, कहीं भी वक्त को लेकर कोई खींचतान और कमी नहीं थी। इसका मतलब था कि सबके पास वक्त था अर्थात् भरपूर जिंदगी थी, जिंदगी खुशियों, आत्मियता और सुख-शांति से भरी थी, जिंदगी के हर पल से सुकून की बारिश होती थी।
लेकिन वक्त ने पलटा खाया या यौं कहे कि यह सबके पास से गायब होने लगा और सब कहने लगे हैं कि मेरे पास एक मिनट का भी समय नहीं है, एक पल दूसरों की भलाई के लिए कुछ सोचने और करने के लिए देश और मानवता के लिए कुछ करने के लिए या फिर एक मिनट सुकून की जिंदगी जीने के लिए। व्यक्ति का मन-मस्तिष्क बेचैन है।
यहां यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि अर्थ युग है, महंगाई है, हौड़ है, दौड़ है, साधन हैं, सुविधाएं हैं, विलासिता है, दबाव है लेकिन इन सबके बावजूद जिंदगी तो जिंदगी चाहती है, जिंदगी तो सुकून चाहती है, जिंदगी थोड़ा आराम तो चाहती ही है। यदि जिंदगी में सुकून ही नहीं रहेगा, रिश्ते ही नहीं रहेंगे, शांति ही नहीं रहेगी, अपनों के लिए वक्त ही नहीं रहेगा, किसी की तकलीफें दिल में धडक़ेंगी ही नहीं, एक-दूसरे से हाथ ही नहीं मिलेंगे, गले ही नहीं मिलेंगे, दिल ही नहीं मिलेंगे तो फिर ये अथाह पैसा, अकूत दौलत, बड़ा सा बंगला और बड़ा सा पद कोई मायने नहीं रखता है। असंख्य लोग ऐसे भी है जिनकी जिंदगी में आनंद है, सुकून है और शांति है। आइए, इस शानदार जिंदगी को शानदार तरीके से जिएं और जीने दें।
प्रेरणा बिन्दु:-
निकल पड़ा हूं आज ढूंढ़ने कहां मिलेगी मुझे जिंदगी
कांटों पर गुलाब खड़े हैं, वहां मिलेगी मुझे जिंदगी
बेबसी पर इंकलाब खड़े हैं, वहां मिलेगी मुझे जिंदगी
लम्हें बन मोहताज खड़े हैं, वहां मिलेगी मुझे जिंदगी।