अपने देश का नाम कौन नहीं जानता? प्राय: प्रत्येक देशवासी अपने देश का नाम जानता है। जन्मभूमि को पहचानता है और मां समान आदर देता है सम्मान करता है। अत: भारत मेरा देश है। यह तथ्य आत्मसात है।
एक ही देश में जन्म लेने वाले सभी लोग देश बंधु है। एक ही गुरु से शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करने वाले शिष्य ‘गुरु भाई’ है।
जन्मभूमि या देश विशिष्ट होता है। वसुधैवकुटुम्बकम् का हिस्सा होने के कारण उसे चरितार्थ भी कर पाता है। भारत देश ऐसा ही कर रहा है।
देश एवं विश्व का केंद्र बिन्दु ‘जन’ होता है। ‘जन-जन’ मिलकर जन मंगल करता है। दो जन मिलकर दाम्पत्य सूत्र (पुरुष-स्त्री) को जन्म देते हैं।
समझ लो दो जन के मिलने पर ही जन-प्रेम की शुरुआत हो जाती है। दो से अधिक जन के मिलने पर संयुक्त कुटुम्ब प्रेम शुरू होने लगता है। कई एक कुटुम्ब मिलकर ही समाज-प्रेम पल्लवित कर पाते हैं। समाज-प्रेम का पूरा वितान देश प्रेम के रूप में झलकता है।
वस्तुत: मनुष्य ही देश प्रेम की इकाई (यूनिट) है मनुष्य ही मनुष्य से मिल पाता है, सुन पाता है, सुना पाता है अंत में परोपकारी या जनहितकारी बन पाता है।
मनुष्य ही मनुष्य को समझ पाता है। एक दूसरे के काम आ पाता है। दो हाथ से ही ताली बजती है।
राजस्थान (जयपुर) में गुरु कमलाकर हुए हैं। वे आसु कवि थे। डिंगल व बृज भाषा के साहित्यकार थे। उन्होंने एक कविता की रचना की थी, जिसका शीर्षक रखा था-
‘‘मनुष्य ही मनुष्य को सदैव काम आएगा’’
गुरु कमलाकर सादगीपूर्ण जीवन जी पाए थे। उन्होंने ही साहित्य सदावर्त नाम से संस्था स्थापित कर हिन्दी साहित्य का प्रचार-प्रसार किया था। उनका देश-प्रेम उनके साहित्य सृजन व विद्यार्थियों के शिक्षण में झलकता था।
महात्मा गांधी का देश-प्रेम उनके चर्खे में झलकता था। जिसे उन्होंने ग्राम स्वराज की नींव के रूप में घर-घर में प्रचारित कर दिखलाया था। गांधी के आचरण में प्रजा प्रेम (जन प्रेम) था। देश की तस्वीर उन्होंने अंगीकार करके एक धोती (खादी) ही धारण की जिससे आधी से नीचे अंग और आधी से ऊपर का अंग ढका। कथित धोती भी हाथ से कटे हुए सूत की बनी हुई होती थी। उस समय के कांग्रेस मैन ने खादी धारण कर कांग्रेस की पहचान सिद्ध की थी।
हम लोग ‘देश प्रेम’ को सन्यास प्रेम समझते हैं-ऐसी बात नहीं है। देश प्रेम तो प्रत्येक गृहस्थी, प्रत्येक विद्यार्थी एवं प्रत्येक सैनिक का है। यहां तक कि प्रत्येक भारतवासी का भारत प्रेम (देश-प्रेम) है क्योंकि वह भारत में जन्म ले पाया है। भारत भूमि ही उसकी भारत माता स्वरूप है।
भारत माता हमारे भारत को ही कहा जाता है और किसी देश में ऐसा नहीं है। माता से संतान का अटूट रिश्ता होता है। माता कष्ट झेलकर भी संतान का पालन पोषण करती है। संतान की भलाई चाहती है। यही वजह है कि वफादार संतान कभी भी अपनी मां को नहीं भूल सकती है।
एक मां को तब ही खुशी होती है जब उसकी सभी संतानें एक दूसरे से मिलकर प्रेम दर्शाती है, एक दूसरे की मदद के लिए तैयार रहती है। एक सबके लिए और सब एक के लिए चरितार्थ कर पाती है।
अत: जन-प्रेम में अपेक्षित है कि हम अहिंसक जीवन शैली अपनाए तथा अधिकारों से अधिक कर्तव्यों पर ध्यान दें। यदि हमने अपने कर्तव्य का निर्वहन किया है तो अधिकार स्वत: चले आएंगे।
सम्पदा वृद्धि में भी जन प्रेम को ही वरीयता मिलनी चाहिए। सत्ता-प्रवेश करने पर भी जनप्रेम की आधार शिला कायम रहनी चाहिए। समझने की बात यह है कि जन-प्रेम चेतन्य है, शाश्वत है। इसका उद्गम आत्मा में से होता है। भगवान भी तब ही खुश होते हैं जब उनसे प्रेम किया जाता है।
अत: बाल प्रेम, जन प्रेम, मानव-हित का सरलतम अर्थ देश प्रेम है और देश प्रेम का सुबोध अर्थ जन प्रेम है। जो जन हमारे सामने हैं हमें उसी में प्रेम दर्शाना है, सेवा करनी है, नमन होना है। समता दर्शानी ही। कर्तव्य निर्वहन करना है। नैतिक ईमानदारी दर्शानी है। बस! यही देश प्रेम है अर्थात् यही जन प्रेम है।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है:-
जो भरा नहीं है भावों से बहती उसमें रसधार नहीं,
हृदय नहीं वह पत्थर है, जिसमें स्व-देश का प्यार नहीं।