एनजीओ के खातों का 31 मार्च तक ऑडिट हो

Samachar Jagat | Monday, 23 Jan 2017 05:39:58 PM
NGO's accounts be audited by March 31

सर्वोच्च न्यायालय ने गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) को जवाबदेही के दायरे में लाने के लिए उनके खातों का 31 मार्च तक आडिट कराने का निर्देश दिया है। यह जिम्मेदारी ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधीन काम करने वाली संस्था कपार्ट (लोक कार्यक्रम और ग्रामीण विकास परिषद) को सौंपी गई है, जो एनजीओ को फंड जारी करती है। यानी एनजीओ को जनता के पैसों का हिसाब देना होगा। देश भर में करीब 32 लाख एनजीओ है, जिनमें से मात्र तीन लाख ही अपनी बैलेंस शीट फाइल करते हैं। उन पर निगरानी रखने के लिए कोई समुचित विकसित तंत्र भी नहीं है।

 मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे.एस. खेहर की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने पिछले सप्ताह एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए गबन करने वाले एनजीओ के खिलाफ फौजदारी मुकदमा चलाने का भी निर्देश दिया। निर्देशों में सरकार से कहा गया है कि वह एनजीओ को विनियमित करने, उन्हें मान्यता देने और उनकी फंडिंग के बारे में दिशा-निर्देश तय करे। हालांकि ऐसा नियम 2005 में बनाया गया था, लेकिन उसे लागू नहीं किया गया। अब कोर्ट की टिप्पणी से भी साफ है कि मौजूदा नियम काफी नहीं है। केंद्र में नरेन्द्र मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद कई एनजीओ पर कार्रवाई की। 

लेकिन वे ऐसे संगठन है जो सार्वजनिक नीतियों के क्षेत्र में काम करते हैं। उनमें ज्यादातर ऐसे है, जिन्हें विदेशों से अनुदान मिलता था। उन पर शिकंजा कसने के लिए सरकार ने विदेशी अनुदान विनियमन अधिनियम को सख्त कर दिया है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का आदेश उन गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) के मामले में है, जिन्हें सरकार से अनुदान मिलता है। ये संगठन सरकारी योजनाओं पर अमल में सहभागी बनने के नाम पर पैसा लेते हैं। इसलिए कोर्ट ने यह उचित टिप्पणी की कि एनजीओज को दिया गया धन जनता का पैसा है। इसका हिसाब-किताब रखा जाना चाहिए। यह शिकायत आम है कि इस क्षेत्र में भारी भ्रष्टाचार है। 

अनुदान जारी करने से पहले सरकारी अधिकारी कमीशन खाते हैं। फिर एनजीओ को मनमाने ढंग से काम करने की छूट मिल जाती है। आम अनुभव है कि एनजीओज बिना जमीन पर काम किए प्रोजेक्ट पास कराते रहते हैं। ऐसे बढ़ते उदाहरणों का ही परिणाम है कि सिविल सोसायटी की साख घटती गई है। इसलिए कोर्ट ने कहा है कि फंड का दुरूपयोग करने वाले एनजीओ के पदाधिकारियों के खिलाफ दीवानी और आपराधिक कार्रवाई होनी चाहिए। यानी एनजीओज को काली सूची में डाल देना भी काफी नहीं है। 

यहां यह बता दें कि गत वर्ष सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट दी थी कि 32 लाख से ज्यादा एनजीओ में से सिर्फ 10 फीसदी एनजीओ ही अपने कोष का हिसाब-किताब देते हैं। वर्ष 2002 से 2009 तक केंद्र तथा राज्य सरकारों ने विभिन्न एनजीओ को 6634 करोड़ रुपए जारी किए थे। सरकार को लेखा-जोखा प्रस्तुत किए बगैर कैसे इन एनजीओज को सरकारी धन जारी होता रहा। 

जनता के पैसों के साथ धोखाधड़ी करने वाले एनजीओ का यह एक पक्ष है। यानी सिर्फ एनजीओ ही इसके लिए अकेले जिम्मेदार नहीं है। इसमें चार तरह के गठजोड़ शामिल है, जो मिल जुलकर हेराफेरी और गबन करते हैं। मसलन केंद्रीय सामाजिक कल्याण बोर्ड, कपार्ट और जिला तथा ब्लाक स्तर पर कार्यरत सरकारी संस्थाएं जिन्हें दाता (डोनर एजेंसी) कहा जाता है। दूसरे एनजीओ के कामकाज को मॉनिटर करने वाले, तीसरे आडिटर और चौथा एनजीओ। दाता संस्था ही मॉनिटर को नियुक्त करता है, जो कामकाज के निर्धारित मानकों को नजरअंदाज करके फर्जी रिपोर्ट पेश करता है। आडिट के मामले में प्रशासनिक खर्चे के हिसाब में अस्पष्टता का फायदा आडिटर उठाते हैं। इसमें यात्रा बिल आदि को भी नत्थी कर दिया जाता है, जिसकी ठीक से जांच नहीं हो पाती। 

इस तरह जनता के पैसों के साथ धोखाधड़ी और लूट के खेल में दाता संस्थाओं के उच्च अफसरों से लेकर एनजीओ तक शामिल है। इसलिए सबसे पहले दाता संस्थाओं के शीर्ष अफसरों को ईमानदार बनाने एनजीओ को ही रकम मुहैया कराए। आडिट करने वाली संस्था या व्यक्ति की भी समुचित निगरानी करने की जरूरत है। अगर एनजीओ की कार्यप्रणाली को पारदर्शी और ईमानदार बनाना है तो पूरे तंत्र को सुधारना होगा। सुप्रीम कोर्ट का देश में सरकारी अनुदान पर चलने वाली गैर सरकारी संस्थाओं का आडिट करने का निर्देश दिया है। जैसा कि पूर्व में कहा गया है। 

मोदी सरकार ने विदेशों से चंदा लेने वाले एनजीओ पर कार्रवाई की है। विदेशी चंदा लेने वाली देश में चल रहे 33 हजार गैर सरकारी संगठनों में से करीब 20 हजार संगठनों के लाइसेंस रद्द कर दिए हैं। सरकार ने यह कार्रवाई तब की जबकि यह पाया गया कि ये एनजीओ विदेशी चंदा नियमन कानून (एफसीआरए) के विभिन्न प्रावधानों का उल्लंघन कर रहे हैं। यानी जिन एनजीओ का एफसीआरए लाइसेंस रद्द किया गया है, वे अब विदेशी चंदा नहीं ले सकेंगे। इस कार्रवाई के बाद अब देश में सिर्फ 13 हजार एनजीओ कानूनी तौर पर विदेशी चंदा लेने के लिए मान्य है।

 विदेशी चंदा लेने वाले एनजीओ के कामकाज की समीक्षा की कवायद करीब एक साल पहले शुरू की गई थी। इसी प्रक्रिया के तहत यह कदम उठाया गया है और सरकार द्वारा विदेशी चंदा नियमन कानून का पालन नहीं करने के कारण इन एनजीओ पर ये बंदिश लगाई है। अब सरकार को सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार उन एनजीओ के खिलाफ कार्रवाई करनी है जो कि सरकारी अनुदान से चल रही है। सीबीआई की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई रिपोर्ट के अनुसार ऐसे एनजीओ की देश में संख्या 32 लाख 97 हजार है और इनमें से मात्र तीन लाख सात हजार ने ही अपने खर्च का लेखा-जोखा सरकार को दिया है।



 

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