जन्मस्थली के लोग ही भूलने लगे हैं आचार्य रामचन्द्र शुक्ल को

Samachar Jagat | Saturday, 19 Nov 2016 02:32:28 PM
People are beginning to forget the birthplace Acharya Ramchandra Shukla

बस्ती। काल निर्धारण एवं पाठ्यक्रम निर्माण में आज भी उपयोगी हिन्दी साहित्य का इतिहास समेत कई नामचीन ग्रंथो की रचना कर हिन्दी साहित्य जगत में अमिट छाप छोडऩे वाले आचार्य रामचन्द्र शुक्ल को उनकी जन्मस्थली पर ही लोग भूलने लगे हैं। बस्ती के अगौना गांव में चार अक्टूबर 1884 को जन्मे शुक्ल को तीन प्रकार की कृतियों के लिए जाना जाता है।

सूर, तुलसी, जायसी पर की गई आलोचनाएं, काव्य में रहस्यवाद, अभिव्यंजनावाद, रस मीमांसा श्री शुक्ल के अनूठे ग्रंथ है वही चितामणि नामक ग्रंथ के दो भागों में संग्रहीत हैं उनकी लेखन शैली गत विशेषतायें झलकती हैं। क्रोध निबन्ध में उन्होंने सामाजिक जीवन मे क्रोध के पहलुओं का विश्लेषण किया है। हिंदी साहित्य का इतिहास उनका अनूठा ऐतिहासिक ग्रंथ है।

जिले के साहित्यकार उनके जन्मदिवस पर अथवा कभी कभार गोष्ठियों पर उन्हें याद करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। यही कारण है कि देश और प्रदेश में तो क्या, उनके गृह जिले के अधिकांश लोगों को ही उनकी जन्मस्थली के बारे में भी पता नहीं है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी परिषद के संस्थापक डॉ़ परमात्मा नाथ द्विवेदी का कहना है कि उत्तर प्रदेश सरकार और केन्द्र सरकार ने अभी तक अगौना के विकास के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की है।

उन्होंने सरकार से मांग की है कि अगौना के विकास के लिए यहां साहित्य शोध संस्थान स्थापित करे और प्रत्येक वर्ष देश तथा प्रदेश स्तर के हिन्दी साहित्य के विद्वानों को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल सम्मान से सम्मानित किया जाए।

द्विवेदी ने कहा कि पिछले चार दशकों से यहां के साहित्यकारों,पत्रकारों द्वारा अगौना को विकसित करने के लिए निरन्तर शासन और प्रशासन से प्रयास किया जाता रहा है। वर्ष 1983-1984 में जिले के तत्कालीन जिलाधिकारी राकेश कुमार मित्तल ने सात मार्च 1984 को शुक्ल की एक आदमकद की मूर्ति जिलाधिकारी आवास के तिराहे पर लगवाई थी।

बस्ती क्लब से कटरा जाने वाले मार्ग का नाम करण भी आचार्य रामचन्द्र शुक्ल मार्ग रखा गया था लेकिन अगौना के विकास के लिए कुछ भी नहीं किया जा सका। 

जिलाधिकारी आवास के समीप लगाई गई आदम कद की प्रतिमा को सात आठ साल पहले कुछ लोगो ने तोड़ दिया गया था। इसके स्थान पर अप्रैल 2002 में नवीन प्रतिमा स्थापित की गई थी मगर रखरखाव के अभाव में वह भी उपेक्षा की शिकार है।

हिन्दी साहित्य की धरोहर की जन्मस्थली में बालिकाओं का एकमात्र विद्यालय है। डुमरियागंज के भाजपा सांसद जगदम्बिका पाल के सहयोग से विद्यालय प्रांगण में 23 अक्टूबर 1980 को तत्कालीन उ.प्र के स्वास्थ्य मंत्री लोक पति त्रिपाठी द्वारा आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आदम कद की प्रतिमा स्थापित की गई थी।

साहित्यकार राजेन्द्रनाथ तिवारी का कहना है कि अगौना की उपेक्षा के लिए नागरिक,जनप्रतिनिधि, सरकार सभी लोग जिम्मेदार हैं। उन्होंने अगौना को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किए जाने की मांग की है। साहित्यकार सत्येन्द्रनाथ मतवाला ने शुक्ल के स्मृति में राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य सदन निर्माण कराये जाने की मांग की।

तिवारी ने बताया कि शुक्ल प्रकृति के अत्यन्त प्रेमी थे और उन्हें पशुओं से भी विशेष प्रेम था वे अस्थावान व्यक्ति थे किन्तु किसी प्रकार का पूजा पाठ नहीं करते थे।

आरम्भ से छायावाद और रहस्यावाद का उन्होंने विरोध किया। उन्होंने छायावाद के स्थान पर प्रकाशवाद चलाने का प्रयत्न किया, तथा कुछ प्रकाशवादी कविताएं लिखी बाद में उनका आक्रोश कुछ कम हुआ। सामन्तवादी और पूंजीवादी व्यवस्था के विरूद्ध भी शुक्ल जी ने लिखा। उनका निधन दो फरवरी, 1941 ई. को काशी में हुआ। वे मरकर भी हमेशा हिन्दी साहित्य जगत में अमर रहेेंगे।



 

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