केंद्रीय विद्यालयों में पहली बार दो तरह की फीस

Samachar Jagat | Tuesday, 29 Nov 2016 05:14:12 PM
The first two such fees in schools

केंद्रीय विद्यालयों में पढ़ रहे गैर सरकारी कर्मचारियों के बच्चों को अब दो गुनी फीस भरनी पड़ सकती है। यह पहली बार होगा, जब एक ही विद्यालय में पढ़ रहे सरकारी कर्मी के बच्चे पांच सौ रुपए अैर गैर सरकारी कर्मी के बच्चे एक हजार रुपए महीने की फीस भरेंगे। मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जुड़ सूत्रों के अनुसार इस प्रस्ताव को जल्दी ही बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की मंजूरी मिल सकती है।

 केंद्रीय विद्यालय की वित्त समिति इस प्रस्ताव को हरी झंडी दे चुकी है। अगर प्रस्ताव स्वीकृत होता है तो एक अप्रैल 2016 से ही अभिभावकों को बढ़ी हुई फीस भरनी पड़ेगी। केंद्रीय विद्यालयों में पांच श्रेणियों में बच्चों के दाखिले होते हैं। पहली चार श्रेणियों में केंद्र सरकार, केंद्र सरकार के स्वायत संस्थान, राज्य सरकार और राज्य सरकार के स्वायत संस्थानों में कार्यरत लोगों के बच्चे आते हैं।

 इन चार श्रेणियों में सीटें नहीं भर पाने पर पांचवीं श्रेणी में सामान्य नागरिकों के बच्चों को दाखिला दिया जाता है। इसके अलावा बड़े पैमाने पर सांसद और मंत्री कोटे के बच्चे भी केंद्रीय विद्यालयों में पढ़ते हैं। माना जा रहा है कि यह कदम केंद्रीय विद्यालय प्रशासन ज्यादा संसाधन जुटाने के मकसद से उठाने जा रहा है। अगर यह प्रस्ताव पारित हो जाता है तो इसका चार लाख बच्चों पर असर पड़ेगा। 

केंद्रीय विद्यालयों में पढ़ने वाले करीब चार लाख बच्चों से पांच सौ रुपए का अतिरिक्त शुल्क लिया जाएगा। यह अतिरिक्त शुल्क हर तीसरे महीने वसूला जाएगा। अभी केंद्रीय विद्यालयों में पांच सौ रुपए विद्यालय विकास निधि, 100-150 रुपए कम्प्यूटर फीस तथा नौवी कक्षा से शिक्षण शुल्क लिया जाता है।

यह कैसी विचित्र स्थिति है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में जिन लोगों के वोट से यह सरकार बनती है, वह 99 फीसदी लोगों की शिक्षा और चिकित्सा जैसे लोक कल्याणकारी कार्यों से किनारा करती जा रही है। उसे केवल अपने कर्मचारियों की चिंता है।

उनके बच्चों के लिए अच्छी स्कूल, अच्छे अस्पतालों की व्यवस्था है। इनका अच्छा वेतनमान, महंगाई भत्ता और अन्य भत्तों के अलावा रहने को सस्ते सरकारी आवास की सुविधा है। देश की कुल आबादी के आधा फीसदी से भी कम है, सरकारी कर्मचारी जिनके लिए सरकार हर तरह की सुविधा देने को तत्पर रहती है और लोकतंत्र में लोक को भुलाया जा रहा है।
 



 

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