चंडीगढ़। मुनिश्री विनयकुमारजी आलोक ने कहा कि कहते है कि जीवन ईश्श्वर है अर्थात यह जीवन ईश्वर का है और इसी कारण यह जीवन सतत नया करने वाला, सदा रहने वाला और अविनाशी है। चाहे जैसे इस जीवन को जिया हो आपने या जी रहे है या फिर जिएंगे, वह सदा रहने वाला है, आपके जीवन की कहानी चाहे जैसी हो, उसको कभी भुलाया नही जा सकेगा।
इसलिए अपने जीवन की ऐसी कहानी लिखे, जो सदा लोगों के लिए प्रेरणा बने। ये विचार मुनिश्री विनयकुमार जी आलोक ने सैक्टर 24सी अणुव्रत भवन तुलसीसभगाार में कहे। उन्होने कहा प्रेम, आनंद विनम्रता, धैर्य, शौर्य सर्वकल्याण दया और सद्भावना जैसे गुण कभी वृद्ध नही होते हैं इन्हे अच्छी तहर से विकसित होने दे, अभिव्यक्त होने दे और सही जहां में फैलने दें।
हमेशा बूढा होने का भय, बहुत जल्द बुढा कर ही देता है, शरीर और मस्तिष्क को बेकार बना देता है, ऐसे में अपने मन को हमेशा युवा बनाए रखें क्योकि मेरे अनुसार जीवन में व्यक्ति न तो रिटायर होता है ओर न ही टायरड होता है, वह तो अपनी अंतिम सांस तक जीवन की इबादत लिखता रहता है, व्यक्ति के सामने हमेशा नए अध्ययन, नए लक्ष्य, नया मिशन और नई नई अभिरूचियां तैयार खडी रहती है, बस उसे ऐसा मानने और ठानने की जरूरत होती है। किसी के जीवन के वर्ष नही गिने जाते बल्कि हर्ष के दिन गिने जाते है।
मनीषीश्रीसंत ने कहा जब व्यक्ति अपने जीवन की अभिरूचियों को छोड देता है, सपने लेना बंद कर देता है, जीवन की सच्चाइयो से मुंह मोड लेता है तो फिर उसे क्रोध, नफरत और झगडे न केवल बूढा बना देते है बल्कि खत्म ही कर देते हैं। व्यक्ति एक अदभुत प्राणी है, वह ऊर्जा का अथाह स्त्रोत है, बशर्ते वह ऐसा माने।
जितना स्वयं को उपयोगी समझेगा उतना ही उपयोगी बनेगा। जितना युवा समझेगा उतना ही युवा बनेगा, जितना जज्बाती समझेगा उतना ही जज्बाती हो जाएगा। जितना लायक समझेगा उतना ही लायक हो जाएगा। जितना खुश समझेगा उतना ही खुश हो जाएगा और जितना मानवतावादी समझेगा उतना ही मानवतावादी हो जाएगा। इस प्रकार मानव जीवन ही ऐसा है जो स्वतंत्र लेकिन सक्षम और सार्थक है क्योकि उसमे समझने करने और अभिव्यक्त करने की योग्यता भरी है।