भगवान परशुराम का जिक्र रामायण में मिलता है, उन्होंने अहंकारी और धृष्ट हैहय वंशी क्षत्रियों का पृथ्वी से 21 बार संहार किया था। परशुराम धनुर्विद्या के ज्ञाता थे और उन्हें अपना फरसा बहुत प्रिय था। झारखंड में रांची से करीब 150 किमी की दूरी पर घने जंगलों में स्थित टांगीनाथ धाम में भगवान परशुराम का फरसा गड़ा हुआ है। नक्सल प्रभावित इस इलाके में अलग ही भाषा चलती है और यहां की स्थानीय भाषा में फरसा को टांगी कहा जाता है, इसलिए इस जगह का नाम टांगीनाथ धाम हो गया।
परशुराम जयंती : ब्राह्मण होते हुए भी क्यों था परशुराम का क्षत्रियों सा स्वभाव
खबरों के अनुसार इस जगह भगवान परशुराम का फरसा जमीन में गड़ा हुआ है और यहां पर परशुराम के चरण चिह्न भी मिले हैं। ये फरसा यहां कैसे आया इसके बारे में एक लोककथा प्रचलित है जो इस प्रकार है...
रामायण में जब सीता स्वयंवर में भगवान श्रीराम ने शिव का धनुष तोडा़ तब परशुराम को बहुत क्रोध आया और वे स्वयंवर स्थल पर पहुंचे। उस दौरान लक्ष्मण से परशुराम का विवाद हुआ। बाद में जब उन्हें ये ज्ञात हुआ की श्रीराम परमपिता परमेश्वर हैं तो उन्हें अपनी इस गलती के लिए पछतावा हुआ और वे जंगलों में चले गए।
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दुखी होकर उन्होंने अपने फरसे को वहीं जंगल में जमीन में गाढ़ दिया और उस स्थान पर भगवान शिव की स्थापना की। उसी जगह पर आज टांगीनाथ धाम स्थित है और यहां के स्थानीय लोगों के अनुसार परशुरामजी का वही फरसा आज भी यहां गड़ा हुआ है, एक बार इस इलाके में लोहार आकर रहने लगे थे।
काम के दौरान उन्हें लोहे की जरूरत हुई तो उन्होंने परशुराम का यह फरसा काटने की कोशिश की। फरसा तो नहीं कटा बल्कि लोहार के परिवार वालों की मौत होने लगी और घबराकर उन्होंने ये स्थान छोड़ दिया। इसी कारण आज भी यहां कोई इस फरसे से हाथ नही लगाता है।
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