ब्यावर। श्री दिगम्बर जैन समाज के चातुर्मास पर्व के दौरान धर्मसभा पांडाल में मुनिश्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन देते हुए कहा कि किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए तीन बातें जरूरी है।
प्रथम लक्ष्य क्या है। मैं जो भी हूं पर की अपेक्षा हूं। पापा की अपेक्षा पुत्र हूं। गुरु बनना जरुरी नहीं साधक बनना जरूरी है।
समन्त भद्र स्वामी ने साधु के लिए तपस्वी बतलाया है। जन्म व मरण पराधीन है। गुरुवर कहते है नाम तो बदलते रहते है। दूसरे की गिरवी का ब्याज ले सकते हैं लेकिन उस पर मिल्कियत नहीं कर सकते। ब्रह्मचर्य धर्म की व्याख्या करते हुए मुनिश्री ने कहा कि मैं परम आत्मा हूं, पर मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है।
सम्यक दृष्टि कहता है। कर्म रूपी राक्षस मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। जिनवाणी कहती है। अस्ति गुण को प्रकट करों। प्रचार मंत्री अमित गोधा ने बताया कि चातुर्मास प्रवचन सभा में श्रावक-श्राविकाएं भाग ले रहे हैं।
कार्यक्रम के तहत जिज्ञासा-समाधान कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया।