पंजाब की नाभा जेल पर हमला कर भगाए गए खालिस्तानी आतंकवादी हरमिंदर सिंह उर्फ मिंटू को अगले ही दिन दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया गया। इसके पहले रविवार को ही जेल पर हमला करने वाले बंदूकधारियों में से एक को उत्तर प्रदेश के शामली में पकड़ लिया गया। लेकिन इससे घटना से उठे बुनियादी प्रश्न कमजोर नहीं होते। नाभा जेल पंजाब की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली जेल है। लेकिन रविवार को दिन दहाड़े इसकी सुरक्षा को जिस तरह तार-तार किया गया, वह यहां की असली तस्वीर बताने को काफी है।
फाच्र्यूनर और वरना गाड़ी से आए हथियार बंद बदमाशों ने रविवार सुबह ताबड़तोड़ गोलीबारी करते हुए खालिस्तान लिबरेशन कोर्स (केएलएफ) के प्रमुख हरमिंदर सिंह मिंटू समेत छह कैदियों को छुड़ा लिया। हालांकि पुलिस ने अप्रत्यशित तेजी दिखाते हुए मिंटू को दबोच लिया। अपराधियों की तैयारी कितनी बेहतर थी, इस बात का पता इसी से चलता है कि सभी बदमाश पुलिस वर्दी में आए थे और उन्होंने एक साथी को हथकड़ी भी लगा रखी थी। उन्होंने करीब 100 राउंट गोलियां चलाई।
करीब एक महीने के अंदर देश की दो अति सुरक्षित जेलों में सुरक्षा से खिलवाड़ बेहद गंभीर मसला है। दिवाली से पहली वाली रात को भोपाल के केंद्रीय कारागार से आठ सिमी आतंकवादियों की जेल से फरारी और आनन-फानन में उनके एनकाउंटर ने कई सवाल खड़े किए हैं। इस तरह की वारदात इस ओर इशारा करती है कि हमारी सुरक्षा कितनी लचर है और सुरक्षा में कितनी बड़ी चूक।
दोनों घटनाओं का प्रारंभिक निष्कर्ष यह है कि भारतीय जेलों की सुरक्षा व्यवस्था लचर है। ऐसा भूल-चूक के कारण हैं या जेल प्रशासन में फैले भ्रष्टाचार के कारण? इस प्रश्न पर जिस गंभीरता से चर्चा होनी चाहिए वैसा होते नहीं दिखा है। जेल ब्रेक के बाद पुलिस की सफलताओं के महिमामंडन में यह सवाल दबकर रह गया अथवा इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि यह दबा दिया गया है। नाभा में करीब 10 बंदूकधारी रविवार सुबह जेल पर हमला कर खालिस्तान लिबरेशन फोर्स (केएलएफ) के सरगना मिंटू और पांच अन्य अपराधियों को भगा ले गए। चश्मदीदों के मुताबिक हमलावर बड़ी गाडि़यों में आए थे।
इनमें से कुछ पुलिस वर्दी में थे। इनकी गाडि़यों की डिक्की में हथियार रखे हुए थे। यह लोग फायरिंग करते हुए अंदर घुसे और फिर कैदियों को लेकर फरार हो गए। यह साफ है कि जेल तक पहुंचने के पहले की तमाम सुरक्षा व्यवस्था धरी रह गई। अति सुरक्षा वाली नाभा जेल में 197 सुरक्षा कर्मी मंजूर है, किन्तु 50 से सहारे की सुरक्षा व्यवस्था चल रही है, इसमें 148 सुरक्षा कर्मियों की कमी है। 1992 से यहां सुरक्षा कर्मियों की भर्ती नहीं हुई है। यही नहीं यहां के लिए मंजूर 20 सुरक्षा कर्मी दूसरी जगह तैनात है। हाल यह है कि जेल की सुरक्षा का जिम्मा सरकार ने निजी पेस्को सिक्योरिटी प्राइवेट एजेंसी को दे रखी है।
जेल की सुरक्षा में तैनात इस एजेंसी के 70 सुरक्षा कर्मी पूर्व सैनिक है। सूत्रों के अनुसार जेल की क्षमता 462 कैदी है, जबकि जेल में इस समय 200 कैदी और विचाराधीन कैदी है। जेल के कुछ विचाराधीन कैदी पहले भी पेशी की दौरान पुलिस कर्मियों की आंखों में मिर्ची डालकर फरार हो चुके हैं। जेल में कई बार मोबाइल व नशीले पदार्थ भी मिल चुके हैं। अंग्रेजों के जमाने की बनी इस जेल का काफी हिस्सा खस्ताहाल हो चुका है। पंजाब की अधिकतर जेलों में सुरक्षा का जिम्मा पैस्को यानी पंजाब एक्स सर्विस कॉरपोरेशन के पास है। पैस्को के यह सुरक्षाकर्मी उन जेलों में तैनात है, जहां खतरनाक अपराधी, गैंगस्टर या अन्य आतंकी भी बंद है।
इन पैस्को कर्मियों के पास हथियार के नाम पर एसएलआर ही है। भोपाल की घटना में सामने आया था कि कैदी बरतन को तोडक़र बनाए हथियारों का इस्तेमाल करते हुए उच्च सुरक्षा वाली केंद्रीय जेल से भाग निकले। क्या ऐसी घटनाओं के बाद भी जेल सुरक्षा को लेकर कोई भरोसा बना रहा सकता है? यह कोई नया तथ्य नहीं है कि भारतीय जेलें ज्यादा कैदी रखे जाते हैं।
मीडिया रिपोर्टांे पर गौर करें तो साफ होगा कि जेल के अंदर यौन से जुड़े और दूसरे अपराध चलते रहते हैं। रसूखदार कैदियों का जेल के बाहर से भी संपर्क बना रहता है। यह बिना जेल अधिकारियों की मिलीभगत के हो, यह संभव नहीं है। लेकिन यह दुश्चक्र सरकारों की प्राथमिकता में नहीं है। अफसोसनाक यह है कि भागे कैदियों के पकड़े जाने पर राजनेता इतने आल्हादित हो जाते हैं कि असली समस्या पर ध्यान देने की जरूरत भी नहीं समझते हैं।
दरअसल हमारी जेल व्यवस्था भगवान भरोसे है और इसकी वजह भी सच्चाई के काफी करीब है। मसलन, जेल में तय क्षमता से ज्यादा कैदियों की संख्या, सुरक्षा कर्मियों की बेहद कम तैनाती और नियुक्ति, जेल मैन्युअल की अवहेलना और जेल में मादक पदार्थांे से लेकर मोबाइल आदि का खुलेआम इस्तेमाल। ये सारी बातें इसी ओर इशारा करती है कि सरकार मशीनरी जेल सुरक्षा को लेकर सतही रूख अपनाती है।
वरना ऐसा कैसे हो सकता है कि नाभा जेल के बाहर हथियार बंद बदमाश अंधाधुंध फायरिंग करें और पुलिस फोर्स उनके आगे पस्त हो जाए। यह साजिश भी हो सकती है। सो घटनाओं से सबक लेते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को सभी जेलों की तत्काल मॉनिटरिंग करनी होगी। जेल सुरक्षा में तैनात संतरियों को आधुनिक ढंग से प्रशिक्षित करने की भी जरूरत है। साथ ही उन्हें आधुनिक हथियार और अन्य आधुनिक तकनीक से लैस करने की महती आवश्यकता है। जब तक ऐसे कदम नहीं उठाए जाएंगे तब तक जेल ब्रेक की वारदात होती रहेगी।