दूल्हा अपनी दुल्हन को गोद में उठाकर लेते हैं फेरे

Samachar Jagat | Wednesday, 05 Oct 2016 01:04:39 PM
Groom carrying his bride take turns taking

बीकानेर। कृष्ण-रुकमणी विवाह से जुड़ी द्वापर युग की परम्परा जिसमें दूल्हा-दुल्हन को गोद में लेकर फेरे लेते हैं, यह परम्परा आज भी एक समाज में कायम है। श्रीमाली समाज आज भी इस अनूठी प्रथा को निभा रहा हैं।

बीकानेर के डॉ. राजेन्द्र श्रीमाली के अनुसार शादी के दिन चबरक के कार्यक्रम में कन्या पक्ष की सुहागिनें दूल्हे को घी-शक्कर युक्त चावल लाकर ग्रास की मनुहार करती है। बाद में दूल्हा और दुल्हन एक-दूसरे को इस ग्रास की मनुहार करने के पश्चात दूल्हा अपनी दुल्हनियां को गोद में उठाकर फेरे लेता हैं।

...तो हो जाती है जल्दी शादी
श्रीमाली समाज में रची-बसी इस परम्परा को देखने बड़ी संख्या में अन्य समाज के लोग भी पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि कुंवारे लडक़े व लड़कियों की ओर से इन चावल को खाने से शादी शीघ्र होती है।

द्वापर युग की परम्परा
डॉ. श्रीमाली ने बताया कृष्ण-रुकमणी के विवाह के समय शिशुपाल भी रूकमणी से विवाह करने पहुंचा था। उस समय कृष्ण-रुकमणी के विवाह का चौथा $फेरा चल रहा था। विवाह के मध्य में श्रीकृष्ण को शिशुपाल से युद्ध करना पड़ा और रात निकल गई । युद्ध में विजय के पश्चात श्रीकृष्ण ने रुकमणी को गोद में लेकर चार फेरे सुबह लिए। इस प्रकार कृष्ण-रुकमणी के विवाह पर कुल आठ फेरे हुए।

सात की जगह आठ फेरे
डॉ. श्रीमाली ने बताया कि श्रीमाली समाज में भी विवाह पर कुल आठ $फेरे होते हैं । चार अग्नि को साक्षी मानकर और शेष चार चबरक के दौरान दुल्हन को गोद में लेकर होते हैं, जबकि अन्य समाज में विवाह के दौरान सात $फेरे ही होते हैं ।  चार फेरे रात में एवं चार फेरे दिन में इसलिए ंलिए जाते हैं ताकि दम्पती के भावी जीवन में विवाह के दौरान एवं विवाह पश्चात किसी प्रकार का कोई कष्ट न आए।



 

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