जयपुर। राजस्थान के झुंझुनू जिले के डूंडलोद - मुकंदगढ कस्बे के मध्य स्थित अष्ट विनायक धाम की मान्यता प्रदेश प्रदेश भर में है। राजधानी जयपुर से भी बड़ी संख्या मंे श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। बताया जाता है कि मलसीसर निवासी मुंबई प्रवासी सेठ अनिल अग्रवाल उर्फ अन्नू ने वर्ष 2००8- ०9 में यहां सड़क के किनारे एक ख्ोत खरीदा था। ख्ोत में टयुबवैल के साथ बलाजी का मंदिर बनवाया था। मूर्ती की स्थापना करने से पहले से ही लगा कि यह छोटा बन गया। इसे बड़ा बनाया जाना चाहिए। तब उसकी जगह बड़ा मंदिर बनाने का काम शुरू हुआ। अनिल अग्रवाल बताते हैं कि इस बार भी मंदिर बन गया। लेकिन उसमें मूर्ति की स्थापना होती कि उससे पहले ही किसी ने कह दिया कि मूर्ति के सामने पीलर आ रहा है। यादी दूसरी बार भी इसकी स्थापना टालनी पड़ गई थी। तब किसी ने बताया कि प्रथम पुज्य देव गण्ोश जी को याद नहीं किया। इसलिए ऐसा हो रहा है। बस उसी दिन गण्ोश जी का ध्यान किया और अपने आप दिमाग मंे अष्ट विनायक धाम का खाका उभर आया। परिवार जनों व मित्रों से चर्चा की। देखते ही देखते सब काम धूमधान पूरे हो गए। वर्ष 2०15 में फरवरी माह में अष्ट विनायक धाम बना कर तैयार हो गया। इस बार गण्ोश जी केसाथ बालाजी महाराज भी विराजमान हो गए। यहां दावा किया जा रहा है कि अष्ट विनायक धाम प्रदेश का अकेला ऐसा गण्ोश मंदिर है, जहां साल 2०15 से हर साल गण्ोश चतुर्थी का मेला भरता है। डूंडलोद - मुकंदपुरा रोड़ पर स्थित अष्ट विनायक धाम की स्थापना महज सात साल पहले हुई थी। लेकिन इन सात सालों में ही मंदिर की मान्यता चारों ओर फैल गई। मंदिर की वास्तु कला हर किसी को आकर्षित करती है। प्रदेश में अकेला अष्ट निवायक धाम होने के कारध यहां श्रद्धालुृओ की भीड़ लगी रहती है। हर दिन यहां मेले जैसा माहोैल रहता है। खासकर बधुवार के दिन यहां सैकड़ों की भीड़ जुटती है।
गण्ोश चतुर्दशी पर यहां दो दिन आयोजित होते हैं। जिनमें हजारोंे श्रद्धालु शामिल होते हैं। इनके आसपास के ही नहीं प्रदेश के विभिन्न इलाकोंे से श्रद्धालु निशान लेकर प्ौदल यात्रा करते हैं। प्रथम पुज्य के दरबार में पहुंच कर उन्हें निशान अर्पित करते है। अष्ट विनायक को मनौति का नारियल बांधत्ो हैं। पुजारी के अनुसार वहां हर बुधवार के दिन विश्ोष पूजा अर्चना की जाती है। जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु भाग लेते हैं।