जयपुर। आज के मशीन युग में हर कोई मन की शांति चाहता है। मगर इसे पाना हर किसी के बस की बात नहीं है। फिर विश्व के जैन मंदिरों के बारे में कहा जा सकता है कि वहां से अहिंसा और चित्त की शांती मिलती है। इसी का परिणाम है कि यह पवित्र स्थल जैनियों के साथ- साथ अन्य धर्म के लोगां का आकर्षण बना हुआ है। इसी श्रंखला में बाड़ा पदमपुरा देश भर में बहुत ही लोकप्रिय हो रहा है। इस पवित्र स्थल की स्टोरी के बारे में बताया जाता है कि अतिशय क्षत्र पदमपुरा 71 साल से भी अधिक पुराना है। ब्शाख शुक्ल पंचमी संवत 2001 सन 1944 में गांव पदमपुरा के एक सख्स मूलाराम जाट अपने बाड़े में नया घर बनाने के लिए नींव खोदने लगा। इसी दौरान उसे अपने फावड़े से किसी पत्थर के टकराने की आवाज आई।
इस पर उसने वहां की भूमि को धीमे- धीमे खोदना शुरू कर दिया। इस पर वहां भगवान पदमप्रभु की पद्मासन प्रतिमा भू-गर्भ से प्राप्त मिली। इस चमत्कार का परिणाम रहा कि आसपास के सैकड़ों जैन परिवार वहां पहुंचे और प्रभु के लिए वहां निकट ही एक छोटा मंदिर बना कर भगवान पदमप्रभु को विराजमान किया गया। कुछ सालों के बाद ही श्री मोहरी लाल गोधा परिवार द्बारा लगभग 17- 18 एकड़ जमीन जो कि मंदिर के लिए दान में दी गई थी, उस पर भव्य गोलाकार जैन मंदिर का निर्माण हुआ।
पिछले कई सालों से मंदिर प्रबंध समितियों के द्बारा क्षत्र का आबाध विकास होता रहा। पदमप्रभु की चमत्कारी प्रतिमा के दर्शन की बात आग की तरह देश- भर में फेल गई। जयपुर ही नहीं, देश- भर के जैनी वहां पहुंचने लगे। ऐसे में मंदिर परिसर में यात्रियों के विश्राम के लिए चारों ओर सैकड़ों कमरे बनाए जा चुके है। इसके बाद भी वहां की आवास व्यवस्था प्राय कर हाउसफुल ही रहती है। यहीं पर मंदिर के पीछे श्रीहरिश्न्द्र धाडूका द्बारा एक ए.सी. सभागार भी बनाया गया है। इसी तरह का दक्षिणी पश्चिमी कोनो पर सुपार्श्वमती माता जी के नाम से संत भवन तथा पुष्पदंत सागर संत भवन बन चुके हैं।
गत वर्ष अंतर्मना 108 मुनि प्रसन्नसागर जी महाराज का इसी क्षत्र पर भव्य चातुर्मास भी हो चुका है। इसमें तत्कालीन मानद मंत्री श्री ज्ञानचंद झांझरी परिवार ने विशाल रूप से स्थायी सभागार के लिए स्टील के पिल्लरों पर डोम बना कर देने की घोषणा की गई। इसे कार्यरूप दिया गया है। मंदिर के विकास में इसके समक्ष एक उत्तम मान स्तम्भ तथा सामने विशाल द्बार बना हुआ है। लगभग पचास कमरे पूर्ण आधुनिक संसाधनों युक्त है। वर्तमान में दूसरी मंजिल पर 1० बैड वाले बड़े कमरे भी बने है। वहां की 31 सदस्यीय प्रबंधकारिणी समिति में सुधीर जैन एडवोकेट दौसा, श्री हेमंत सोगाणी, श्री राजकु मार कोठारी हैं। इसी बीच परम पुज्य क्षमामूर्ति आचार्य विशदसागर महाराज द्बारा अतिशयकारी पदमप्रभु के दर्शन करके उन्होने प्रभु के गुणगान में पदमप्रभु पूजन का विधान की रचना की है। जो कि लगातार लोकप्रिय हो रही है।
क्षमामूर्ति आचार्य श्री विशदसागर जी महाराज के विनय पाठ के अनुसार......
पूजा विधि के आदि में, विनय भाव के साथ।
श्री जिनेन्द्र के पद युगल, झुका रहे हम साथ।।
कर्मधातिया नाश कर,पाया के वलज्ञान ।
अनंत चतुष्य के धनी, जग में हुए महान।।
दु:खहारी त्रयलोक मं, सुखकर है भगवान।
सुर-नर किन्नर देव तव, करें विशद गुणगान ।।
अधहारी इस लोक में तारण तरण जहाज। निजगुण पाने के लिए, आए तव पद आज।।
समवशरण में शोभते, अखिल विश्व के ईश ।
ओमकारमय देशना, देते जिन आधीश।।
निर्मल भावों से प्रभु, आए तुम्हारे पास।
अष्टकर्म का नाश हो, होवे ज्ञान प्रकाश ।।
भवि जीवों को आप ही,करते भव से पार।
शिव नगरी के नाथ तुम, विशद मोक्ष के द्बार।।
करके तव पद अर्चना, विधन रोग हो नाश।
जन- जन से मैत्री बढे, होवे धर्म प्रकाश ।।
इन्द्र चक्रवर्ती तथा, खगधर काम कुमार।
अर्हत पदवी प्राप्त कर बनते शिव भरतार ।।
निराधारआधार तुम, अशरण शरण महान ।
भक्त मानकर हे प्रभु तुम, करते स्वयं समान।।
अन्य देव भाते नहीं, तुम्हें छोड़ जिनदेव।
जब तक मम जीवन रहे,ध्याऊं तुम्हें सदैव।।