सात साल के बच्चे की दोनों किडनियां खराब हो गई थी, चिकित्सकों ने दिया जीवन दान

Samachar Jagat | Saturday, 28 May 2022 09:07:14 AM
Both the kidneys of a seven-year-old child were damaged, doctors donated life

जयपुर। किडनी की बीमारियां बड़ी खतरनाक होती है। समय पर उपचार में जरा भी चूक हो जाने पर मरीज की जान बचानी बड़ी मुश्किल हो जाती है। इसमेंं पेसेंट तो परेशान होता ही है, मगर साथ में परिवार के अन्य सदस्यों की नींद हराम हो जाती है। पैसा क ाफी खर्च हो जाता है। इस तरह के केसेज में पैसा अपनी जगह होता है। मगर पेसेंट की जान बच जाए तो परिजन अपने आप को संतुष्ठ महसूस कर सकते हैं।


जिंदगी और मौत के ख्ोल में इसी तरह का एक वाकिया जयपुर के प्रतिष्ठित अस्पताल महात्मा गांधी हॉस्पिटल में पिछले दिनों देखने को मिला था। यहां जटिलता इस बात की थी कि ऑपरेशन टेबल पर सात साल का छोटा बच्चा लेटा हुआ था। समय पर ईलाज ना होने पर उसकी जान को खतरा हो गया था। परिजन परेशान थ्ो। जयपुर के लगभग सभी निजी अस्पताल के चक्कर काट चुके थ्ो। पर कहीं भी संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाया। दुखी मां- बाप बताते हैं कि रूद्राक्ष के चेहरे पर सोजन आने पर वे कुछ समझ नहीं पाए। लोगों की सलाह पर तांत्रिकों के यहां गए। झाड़े लगवाए, मगर होना क्या था। कुछ भी तो नही।

बच्चे की बीमारी जोर दे चुकी थी। उसके बचने की उम्मीद बहुत कम रह गई थी। इसी बीच एक परिचित ने उन्हें बताया कि यह केस तो किडनी फेलियर का लगता है। किसी अच्छे अस्पताल में इसका इलाज करवाएं। यहां सवाल उठा कि अस्पताल कौन सा हो। जयपुर में प्राईवेट अस्पतालोंे की सूचि लंबी है। फिर भी सर्वे करके फैसला लिया गया कि रूद्राक्ष का इलाज जयपुर के महात्मा गांधील अस्पताल में ही होगा, क्यों कि वहां बच्चों में किडनी ट्रांसप्लांट की टीम मौजूद थी। इसी तरह के कई केसेज ठीक किए जा चुके थ्ो। फिर ऑपरेशन का पैकेज भी अधिक वजनदार नहीं था।


 पैडियेट्रिक सर्जरी के सीनियर प्रोफेसर के साथ मीटिंग हुई तो उनका कहना था कि बच्चों में किड नी इंफेक्सन सामान्य सी बात हो गई है। आम तौर पर रोगी यदि पंद्रह- बीस साल से अधिक उम्र का हो तो, उसकी किडनी बदले जाने में क ोई खास मेहनत नहीं करनी पड़ती। बच्चों के केस में उसके शरीर की धमनियां और सिराएं संकरी होती है। ऑपरेशन के समय इस बात का बड़ा ध्यान रखना होता है। फिर न्ोफ्र ोटिक सिन्ड्रोम भी किडनी खराब करने का बड़ा कारण है। जिसमें पेसेंट के उपचार में अनावश्यक देरी खतरनाक साबित हो सकती है। इस रोग में बीमार बच्चे की किडनी की छलनी में छेद बड़े हो जाते हैं। ऐसे में अतिरिक्त पानी और उत्सर्जी पदार्थ शरीर से बाहर निकलना शुरू हो जाते हैं। इसके अलावा श्वेत कणों में लिम्फोसाइटस की कमी से भी किडनी में इस समय की समस्याएं देखने को मिल जाती है।
रूद्राक्ष क ा जहां तक सवाल था, उसके चेहरे की सोजन, भूख बंद हो जाना,उल्टी शिकायत बनी रहना, पेशाब में झाग आने की समस्या हो गई थी। अस्पताल में कई तरह की जांचे करवाई गई। तब जाकर इस बात का अंतिम निर्णय लिया गया कि बच्चे की जान बचाने के लिए उसकी किडनी का ट्रांसप्लांट एक मात्र उपाय है। गुर्दा प्रत्यारोपण की जब बात आई तो बच्चे के पिता मनोज गुप्ता ने अपने पुत्र को अपनी किडनी को डोनेट करने का निर्णय सर्जन को बता दिया। तरह- तरह की जांचें चलती रही। एक माह से अधिक का समय इसी में लग गया। तमाम जानकारी मिलने के बाद शहर के महात्मा गांधी अस्पताल के सर्जन्स की टीम ने चार घंटे के लंबे ऑपरेशन के बाद किडनी का सफल प्रत्यारोपण कर दिया।
अस्पताल के सीनियर सर्जन डॉ टी.सी. सदासुखी ने बताया कि छोटे बच्चे में किडनी प्रत्यारोपित करना बड़ा चुनौतिपूर्ण होता है। इसमें सर्जन तजुर्ब वाला होना चाहिए। पेसेंट का सहयोग मिलने पर यह काम आसान हो जाता है। रूद्राक्ष का ऑपरेशन हालांेिक मुश्किल था, मगर किडनी ट्रांसप्लांट सर्जन का डेडिकेसन ने बच्च्ो की किस्मत बदल डाली। इस टीम में डॉ एच एल गुप्ता, डॉ मनीष गुप्ता, डॉ दुर्गेश,डॉ विपिन गोयल और डॉ बीडी बज थ्ो। यह सक्सैस स्टोरी अस्पताल के अचीवमेंट का डायमंड बन गई।



 

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