Child Surrounded By Blood Diseases : ब्लड के खतरनाक रोग से घिरा बचपन,कारण और समाधान

Samachar Jagat | Tuesday, 10 May 2022 12:00:19 PM
Child Surrounded By  Blood Diseases  : Childhood surrounded by dangerous blood diseases, causes and solutions

जयपुर। गर्भस्थ और नवजात शिशुओं के बेहतर स्वास्थ्य के बीच अनेक परेशानियोंं ने जन्म ले लिया है। प्राय:कर होता यह है कि माताएं किन्हीं कारणोें से पौष्टिक आहार नहीं ले पाती। ऐसे में अनेक तरह की जन्मजात बीमारियां उनके शिशुओं को घेर लेती है। कहने को जयपुर में इस तरह के बीमार बच्चों के उपचार की सुविधाएं हैं,मगर पेसेंट की संख्या काफी अधिक होने पर इन नन्हें बच्चों को जीने का अधिकार नहीं मिल पा रहा है। बच्चों के जे.के.लॉन अस्पताल के सूत्र दावा करते हैं कि इन बीमारियों से बच्चों को सुरक्षित रखने या उनके उपचार के लिए वहां की सघन उपचार इकाई में बैड्स की संख्या कई गुना अधिक बढा दी गई है, मगर इसके बाद भी इन जटिल बीमारियों पर ना केवल काबू पाया जा सका है, बल्की ऐसे बीमार बच्चों का बेहतर तरीके से उपचार नहीं हो पा रहा है। इसी तरह की एक खतरनाक बीमारी का नाम है लिम्फोमा....। यह रोग ब्लड की विकृति से सबंधित है।

जिससे रोगी बच्चों की जान बचाने में बड.ी परेशानियों का सामना करना पड. रहा है। यहां समस्या यह भी है कि इस रोग के बारे मे आम जनता में पर्याप्त जानकारी व जाग्रति नहीं है। ऐसे में बीमारी की आरभिक स्थिति में ऐसे बच्चों का ईलाज नहीं हो पाता। कई माह तक ऐसे शिशु सामान्य चिकित्सक या नीम हकीमों के चक्कर लगाते रहते है। दर-दर ठोकरे खाने के बाद जब इन बालकों में यह रोग डायग्नोस होता है, तब तक पेसेंट की हालत बेहद सीरियस हो जाती है। उनकी जान बचाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। हाल फिलहाल ही ऐसा एक केस यहां जे.के.लॉन अस्पताल में देखने को मिला है।

गरीब परिवार में पल रहा यह दस साल का बालक ब्लड की बेहद महंगी और खतरनाक बीमारी लिम्फोमा का शिकार हो गया है। बच्चे का दुर्भाग्य है कि एक दर्जन से अधिक बाल रोग चिकित्सकों के ईलाज के बाद भी कोई भी इस रोग को नहीं पकड. पाया। अज्ञानता वश परिजन उसे गांव के झाड.ा लगाने वाले तांत्रिक के पास भी ले गए थे। मगर कोई समाधन नहीं हो सका। जगह- जगह की ठोकरोें के बाद जब बीमारी खुलासा हुआ,तब तक वह मौत के जाल में घिर चुका है।

इस बीमार बालक का नाम शगुन है जो पांचवी क्लास में पढ रहा है। इस साल उसे उम्मीद थी कि वह अच्छे नम्बरों से पास होगा, मगर इन हालातोें ने सब गुड. गोबर कर डाला है। बालक निराश है। हताश हो गया है। दिन में अनेक बार अपने पिता से पूछा करता है कि वह कब ठीक होगा। अपने छोटे भाई बहन के साथ स्कूल कब से जाया करेगा या फिर पास- पड.ौसी और घर के बच्चों में कहीं पीछे तो नहीं रह जाएगा। जयपुर के जेकेलॉन अस्पताल में उपचारित इस बालक के शरीर का खून सूखने लगा है। जगह- जगह गांठे बनने लगी है। माह में कम से कम दो तीन बार उसे ब्लड चढाना पड.ता है। कुछ दिन आराम से निकालता है,

मगर अरमानों के पंख फिर से मुरझा जाते है। क्या करे। क्या ना करे.....बेबस बच्चा अपने मासूम चेहरे को लेकर पिता की ओर ताकने लगता है।  शकुन जब ठीक था तब और सामान्य बच्चों की तुलना में बहुत ही चुस्त था। खेलने के सिवाय पढाई में भी किसी से उन्नीस नहीं था। बालक शकुन से जब संपर्क हुआ, तब वह अपने पिता की गोद में लेटा, दूसरे स्वस्थ बच्चोें को ताक रहा था। उसका मन करता था, सबके साथ बात करे। तरह- तरह के गेम खेले। टॉफी खाने का उसका शोक पूरा हो सकेगा।

अफसोस....शकुन का चेहरा सूख चुका है। हड्डिया झांकने लगी है। होठ काले स्याह पड. चुके है। दांतों की खूबसूरती गुम हो गई है। इन पर गहरे पीले रंग की पपड.ी जमकर उसे बदसूरत बना रही है। चिपके गालों के बीच गडढे में घंसी उसकी आंखें जरूरत से ज्यादा मोटी हो चुकी है। सुखे पन को ढकने के लिए आंसु तक नहीं निकल पा रहे है। बच्चे का पहला शोक टॉफी खाने का है। पर करे भी क्या, डॉक्टर मना कर गया है। पिता बताते हैं कि शुकुन के खाने- पीने का हर शोक वे पूरा कर रहे है। गर्मा- गर्म हलवा और दूध की बनी ताजा और स्वादिष्ट मिठाईयां फरमाइस के मुताबिक दी जाती है। मगर टॉफी नहीं।

कोशिश की जाती है कि वह टॉफियों का दूसरा विकल्प चुनले। इसके लिए उसे डराने की कोशिश की जाती है। अच्छे बच्चे नहीं खाते टॉफी.......इससे बीमारियां हो जाती है। अस्पताल मं इंजेक्शन खाने पड. जाते है।बच्चे के पिता कहते हैं कि शगुन को बीमारी की आरम्भिक शिकायत पीलिया रोग के लक्षणोें से हुई थी। भूख खत्म होने पर खाने- पीने से जी चुराया करता था। तभी कोई एक सप्ताह के बाद उसके शरीर का वजन एका-एक, बड.ी तेजी से गिरा। हैरान रह गए थे,हम सभी।

दिमाग में एक ही सवाल उठता था कि अच्छे खासे बच्चे को आखिर यह क्या हो गया। झुंझनू शहर के मंडावा कस्बे के एक सीनियर बाल रोग चिकित्सक को दिखाया तो कहता था, कोई खास बात नहीं है । सामान्य सी बीमारी, पीलिया लगता है, कुछ दिनों मेंं यह ठीक हो जाएगा। मगर हुआ नहीं। ऐसे में नवलगढ ले जाया गया। किसी ने सलाह दी कि झुंझुनू दिखा कर आए। मगर वहां के चिकित्सकों ने केस बीकानेर के पीबीएम अस्पताल के लिए रेफर कर दिया।

बीकानेर पहुंचा, तब तक यह बीमारी काफी जोर पकड. चुकी थी। खून की आर्टरियां बंद होने लगी थी। गले के बगल में और इसी तरह की दूसरी लाल सुर्ख गांठ पीढ पर बन गई..... क्या करते। तभी किसी ने सलाह दी, डॉक्टरोें के चक्कर में यह बच्चा मर जाएगा। हमारी मानों तो इसे झाड.ा लगवाओ। कई सारे ओझा बताए। झाड. चलते रहे। मगर हुआ कुछ भी नहीं। कमजोरी इस कदर बढ गई थी कि सांस लेने में परेशानी महसूस करने लगा था। पीबीएम अस्पताल में बच्चे की बायप्सी हुई तब जाकर लिम्फोमा पता चला।

बाल रोग चिकित्सकोें की परेशानी यह थी कि बीमारी तीसरी स्टेज पार कर चुकी थी। ऐसे मं दो ही जगह के अस्पताल में उपचारित करवाने की सलाह दी। पहली दिल्ली या फिर जयपुर.....। सोच विचार कर वह जयपुर आ गया।शगुन की अब मुसीबत यह है कि माह में सात दिन उसे अस्पताल के ऑनकोलोजी वार्ड में भर्ती रहना पड.ता है। इस दौरान दो से तीन युनिट ब्लड हर हाल में चढाना ही पड.ता हैं। जयपुर में उनका कोई परिचित नहीं है, ऐसे में हर बार पिता ने ही उसे ब्लड दिया है। बच्चे का उपचार कर रहे बाल रोग चिकित्सक बताते हैं कि लिम्फोमा रोग में शरीर की रोग से लड.ने की क्षमता खत्म हो जाती है।

जिसमें लसिका पर्व,तिल्ली,लीवर,सांस लेने में परेशानी होने पर ऑक्सीजन पर रखना पड.ता है। थामस ग्रंथी, अस्थि मज्जा कार्यप्रणाली प्रभावित हो जाने पर संकट और अधिक बढ जाता है, रात के समय सोते समय एकाएक बहुत अधिक पसीना आना,खांसी, पीलिया के लक्षण भी देखने को मिलने लगते है। सच पूछो तो शगुन को किसी समाज सेवी संस्था या सख्स की मदद चाहिए। ताकि महंगी से महंगी, बेहतर से बेहतर दवाएं वह खरीद सकेगा। जान भी बच सकती है। बालक के पिता का मोबाइल नम्बर 998010351 है। जिस पर उससे संपर्क किया जा सकता है। जीने की आस में वह दानवीरों का इंतजार कर रहा है।

 

 



 

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