City News : खतरनाक रोग जिसने जिंदगी को तबाह कर डाला

Samachar Jagat | Thursday, 15 Dec 2022 04:13:14 PM
City News : Dangerous disease that destroyed life

देखा जाए तो हर बीमारी कष्टकारी होती है, मगर कुष्ठ रोग का कष्ट मरीज को कहीं का नहीं छोड़ता। शारीरिक के साथ उसे मानसिक पीड़ा कहीं का नहीं छोड़ती। घर वाले नफरत करने लगते है। अपना घर और अपना गांव काला पानी की सजा बन जाते हैं। कष्ट की दलदल में फंसा सक्स मुक्ति के लिए छटपटाता है,मगर उसे मौत नहीं मिलती।

दुखी में तली जारही यह वृद्धा बिहार की रहने वाली है। छोटा सा परिवार है। गरीबी के कोप के बीच तड़पती मीरा की उम्र अधिक नहीं है, ज्यादा से ज्यादा तीस साल की होगी। छोटे छोटे दो बच्चों की मां है। इनमें सोनू तीसरे साल में लगा है। इससे बड़ा बेटा सुरेंद्र दूसरी कक्षा में पढ़ता है। दोनों सयाने है। मां से चिपके रहते है। मीरा का पति जॉनी मार्केट में खुली मजदूरी करता है। मीरा का परिवार बेसक सही, गरीब सही, अपने हाल चाल में मस्त है। मगर लोगों की धारणा गलत नहीं ठहराई जा सकती। जीवन में दुख सुख सभी को भोगने पड़ते है। मीरा की लाइफ में डाउन फाल का दौर कुछ इस तरह शुरू हुवा । उस दिन की शुरुवात सामान्य थी । घर के काम काज पूरा करके आराम के लिए बैठक में बिछी चार पाई पर लेट गई। घंटा भर की नींद के बाद उठी की सिर में तेज दर्द होने लगा। इतना अधिक तेज कि मानों फट जायेगा सिर।

घर में कोई था नहीं। बड़ा बेटा स्कूल गया था। जबकि छोटा वाला कमरे में ही खेल रहा था। अपने पुराने खिलौने से। अपनी मां से बेखबर। मगर दूसरी ओर मीरा रोने लगी थी। इस बीच दिन बीत गया। कुछ ही समय बाद जानू की खतरा साइकिल की आवाज सुनाई दी। ऐसा लगा की मानो शरीर में ताकत सी आग गई। फिर भी टसकती सी उठी। जानू ने उसे सहारा दिया। मीरा का बदन तप रहा था ।  छट से कड़क सी चाय बना कर दी। गांव में उपचार की व्यवस्था थी नही। एक नीम हकीम था। उसी को दिखाया। बस यहीं खराब हो गया। वो मोटा तोंदुल। जमकर डांटा। हंसने लगा एडिट। दांत फ़ाड़ कर सॉरी सॉरी करने लगा।सच पूछो तो यह केस लिपरेसी का था। मगर उसने डेंगू का इंजेक्शन लगा दिया।

खेर जिला हॉस्पिटल में किसी सीनियर फिजिशियन ने कुछ जांचे करवाई। लिप्रेसी का नाम सुनते ही जानू पसीने पसीने हो गया। क्या होगा मीरा का। गांव वालों को पता चल गया तो। गांव से ही निकाल देंगे। फिर दोनो बच्चों का क्या होगा। मेरा पूरा परिवार तबाह हो गया। डॉक्टर कहता था इस रोग को लेकर पहले लोगों में गलत धारणाएं थी। इसे ईश्वर का प्रकोप मान कर रोगी को घर गांव से निकल दिया करते थे। इसमें महिला रोगियों का तो और भी बुरा हाल था। बहुत सी बार तो ये रोगी भीख मांगते देखे गए थे। मगर १८५० में इस रोग को लेकर अनुसंधान होने लगे।

जिसमें इस बात को गलत बताया। उनका कहना था कि यह बीमारी छूत की नही है। पेसेंट को हाथ लगाने पर यह बीमारी नही होती। इसका बैक्टीरिया हवा के जरिए फैलता है। इस बैक्लटे रिया का नाम मैक्रोबेक्टिरि या लेप्रो रखा गया । इसी पर बीमारी का नाम भी लिप्रेसी पड़ गया। इसकी कई सारी दवाएं मार्केट में आगायी है। मगर इसका कोर्स कम से कम चार साल चलेगए । उम्मीद जागी।मीरा ठीक होगी। उसका घेर उजड़ने से रह गया ।



 

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