City News : बहुत काम का बन गया है गधी का दूध

Samachar Jagat | Saturday, 09 Jul 2022 03:17:23 PM
City News : Donkey's milk has become very useful

डायबटीज का शर्तिया इलाज, चेहरे की झुर्रियां भगाए, कारोना से बचाए
जयपुर। सीध्ो- साधे पशु के नाम से जाने- जाने वाले भोले- भाले गधी  के दिन फिर गए लगते है। वैज्ञानिकोें के शौध कार्यो के प्रचार के चलते इस दूध की इस कदर डिमांड बढा दी है कि अब जयपुर सहित प्रदेश के अनेक जिलों में गदर्भ के डेयरी फार्म खुलने लगे है। इसके उत्पादोें की तो बहुत अधिक डिमांड हो गई है। दूध और उसके उत्पादों ने गधा पालकों की कंगाली दूर कर डाली है। उनकी लाइफ का स्टेण्डर्ड बहुत बढ गया है। चौपहिया वाहनों के अलावा , भौतिक संसाधनों मेंं मुख्यतया टीवी, फ्रिज और ए .सी की मदद से मौज मारने लगे हैं।

राजस्थान के अलावा, आंध्र प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में इनकी पूछ बढती ही जा रही है। इंडिया के अलावा युरोप और अमेरिका मेंं वहां के पशु पालकों ने गधा पालन के अत्याधित आधुनिक डेयरी फार्म विकसित किए है। गधे की डिमांड बढने के पीछे मुख्य कारण इसका बहुमुल्य दूध और इससे बने उत्पाद है। बाजार में इनकी काफी डिमांड है। जिसे देखो वही गधी  के दूध से बने पनीर, शरीर की त्वचा को मुलायम करने के साथ ही इससे शरीर की झुर्रियां से पीछा छूट सकता है। खूबसूरती में चार - चांद लग सकते हैं। गधी के दूध से विश्ोष तरह के साबुन और श्ौम्पू की अब आसानी से ओन लाइन खरीददारी की जा सकती है । शहर वासियों की डिमांड को पूरा करने के लिए जयपुर के करीब आधा दर्जन व्यवसायी इसक ी एजेंेसी लेने की तैयारी कर रहे हैं।
गधी के दूध से जयपुर का बहुत पुराना नाता

गदर्भ पालन पोषण और इसके उत्पादों का जयपुर से काफी पुराना संबंध रहा है। कहा जाता है कि जयपुर शहर की स्थापना से पहले से ही करीब पांच सौ साल पहले कछावों ने चंदा मीणा को घमासान युद्ध में पराजित कि या था। इसकी खुशी में भावगढ बंध्या गांव मेंं गधों का राष्ट्रस्तर का मेला भरा था। जिसमंे 25 हजार से अधिक विभिन्न नस्लों के गधों ने भाग लिया था, इसकेे बाद से ही वहां लगातार इस मेले का आयोजन बिना कोई विराम के हो रहा है। समय के साथ - साथ अच्छी नस्ल के गधी  की डिमांड बढती जा रही है। हालत यह बन गई है कि प्रदेश के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश के पशु पालक राजस्थान के बाडमेर से गधों को बहुत कम कीमत पर खरीद रहे हैं। बाद में इसके दूध और मांस की बिक्री से काफी अधिक मुनाफा कूट रहे है।

जयपुर के पशु पालकोें का कहना है कि यहां के काश्तकार इन गधों का बचपन से ही पालन पोषण करते हैं, काफी परिश्रम के बाद वे जब व्यस्क हो जाते हैं तो जब मुफासा कमाने का टाइम आता है,उन्हें देश के चुनिंदा व्यवसायियों को बेच दिया जाता है। जहां तक सवाल है आंध्र प्रदेश का, वहां इसके मीट का बेहद चलन हैं। इसके पीछे कारण यह बताया जाता है कि इस मांस के सेवन से मर्दो की मर्दानी बढती है। नपुंसकता के उपचार मंें भी इसकी सकारात्मक भूमिका रही है। दमा और फेफड़ोंे की बीमारी में भी गध्ो के दूध और इसके पनीर और योगट का सेवन करने पर पेसेंट को आराम मिलता है।
 

राजस्थान में गधी  की नस्लें

राजस्थान में पहले नम्बर पर बाडमेर में 17495 है। दूसरे नम्बर पर पाली, तीसरे नम्बर पर पाली और चौथ्ो नम्बर पर जोधपुर आता है। इसकी प्रमुख ब्रीड में काठियावाड़ी नस्ल के गध्ो काफी सुंदर होते हैं। दूसरी ओर मालाणी व सांचोरी नस्ल के गधी  रफ एण्ड टफ माने जाते है। इनकी डिमांड सबसे अधिक होती है। जयपुर का जहां तक सवाल है वहां निकट के लूणियावास मंें कुछ वर्ष पूर्व तक गधों का मेला भरा करता था। अब इसकी लोकप्रियता कम हो गई है।

गधी  की लोकप्रियता बढने के कारण


गधोंं की बढती लोकप्रियता का कारण इसका दूध है, जो कि अनेक बीमारियों के उपचार के तौर पर काम लिया जा सकता है। इसमें एंटीआक्साडेंट, विटामिन ई,अमीनो एसिड, विटामिन ए,बी- 1,विटामिन सी और ई। इसके अलावा बहु उपयोगी ओमेगा तीन, और छह होता है। इस दूध से त्वता की बीमारियोें का उपचार किया जा सकता है। इसके जनक तत्व के हिप्पोक्रेटस से बुखार,शरीर में बने घाव के इलाज में मदद ली जा सकती है। सबसे खास बात यह है कि इसके फैटी एसिड्स, पावरफुल एंटी- एंजिंग के गुणो से युक्त होने पर शरीर की त्वचा, चमकदार, कोमल, दाग रहित और कोरोना के उपचार मंें भी यह उपयोगी साबित होने पर इसकी लोकप्रियता में निरंतर इजाफा हो सकता है।
 

महंगे उत्पाद

गधों के दूध का जहां सवाल है, बाजार मेंं इसकी कीमत प्रति किलोग्रगाम सात हजार रूपया है। गुजरात में इसकी कीमत छ: हजार रूपए, महाराष्ट्र मंें पांच हजार रूपया प्रति किलोग्राम है। महाराष्ट्र के हिंगोली नामक स्थान में तो वैज्ञानिक तरीके से गधा पालन के डेयरी फार्म विकसित किए जा चुके हैै, जो कि देश भर में सबसे अधिक है। इससे पनीर भी बनाया जा रहा है, मार्केट में इसकी कीमत सत्तर हजार रूपया प्रति किलो है। एक गघा दिन में एक पाव दूध दे सकता है, मगर इसकी कीमत काफी अधिक है। इसके उत्पाद काफी होने के बाद भी इसके उपभोगताओंे की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। ।

 



 

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