जयपुर। हिन्दू धर्म हो या फिर मुस्लिम धर्म, इनके अपने - अलग -अलग अनुयायी और ·ेही अनुयायी खूब मिल जाएंगे, मगर जयपुर में एक सख्स ऐसा भी है जो भगवान श्री राम और रहीम दोनों का एक साथ प्रचार कर रहा है। अनुकरणीय युवक की विश्ोषता यह है कि हर शुक्रवार को मस्जिद में नमाज के लिए जाता है तो दूसरी ओर मंगलवार को हनुमान का व्रत भी रखता है। अनोखा युवक स्वभाव से सीधा- साधा और शांत स्वभाव का है। कहने को उसके साथी- सेवक अधिक लोग नहीं है, मगर जो भी हैं, उनका टीम वर्क देखने लायक है।
क ैलास नाम के इस युवक से संयोगवश संपर्क नारायण सिंह सर्किल बस स्टैण्ड पर हुई थी। यात्रियों की भीड़- भाड़ और शोरगुल ना जाने कौन से विचारों मेंं खोया हुआ था। हल्का सांवला रंग और चेहरे की दाढी उलझी हुई हालत में थी। मानो कई माह से इसे नहीं संवारा गया होगा। चेहरा धूल भरा था, गालों पर मिटटी की परत के चलते वह कुरूप दिखाई देता गया था।ा है। परिवार के सदस्यों के बारे में पूछे जाने पर एक बारगी वह सकपका गया गया था। जवाब देने के बजाए रोड़ पर खड़ी हरियाणा रोड़वेज की बस की ओर में छिपने का प्रयास करने लगा। पीड़ित युवक का विश्वास जीतने के लिए थोड़ी मेहनत करनी पड़ी। एक बार झिझक खुल जाने पर स्वत: ही अपनी कहानी सुनाने लगा था।
कैलाश कहता था कि उसके परिवार में क ोई भी मौजूद नहीं है। माता- पिता बचपन मेंे ही मर गए थ्ो। विवाह नहीं होने पर बीबी और संतान का सहारा भी नहीं मिल पाया। अपनी पीड़ा सुनाने वक्त वह बताता है कि पूर्व में वह जूते बनाने का काम किया करता था। खुद का छोटा सा कारखाना था। दो- तीन श्रमिक भी उसके साथ काम करते थ्ो। कैलाश की जिंदगी में सबसे बड़ा बदलाव क ोई मुस्लिम फकीर से संपर्क के बाद आया। जिसने उसे कुरान की कुछ आयात का अभ्यास करवाया। फकीर का दावा था कि आयात का जितना अधिक स्मरण करेगा, उतनी ही मन की शांति मिलेगी और तरक्की करता जाएगा। कुरान के अलावा उसे हनुमान चालीस कंठस्थ थी। दोनोंे का समान रूप से स्मरण करने पर उसका जीवन बदल सा गया था। ऊपर वाले की कृपा से उसका कारखाना अच्छा चल गया। जूते तैयार कर वह उन्हें जयपुर ले जाकर बेच आता था। इस पर जो भी आमद होती थी, उसे दान पुण्य मेंं खर्च कर दिया करता था।
उसकी हंसी खुशी के दिन अधिक दिनों तक नहीं रहे,गांव के लोगों को जब राम-रहीम वाली बात का पता चला तो गांव की उसकी सवा बीघा जमीन और मकान पर कब्जा करके उसे गांव से भगा दिया। रोता- पीटता युवक पिछले दो साल से जयपुर में ही भटक रहा है। रहने और खाने- पीने का क ोई ठोर ना होने पर शहर की फुटपाथ पर ही सो जाया करता है। चाय- नाश्ते की कहने को क ोई स्थाई व्यवस्था ना होने के बावजूद क ोई ना क ोई उस पर कृपा क र दिया करता है। कई बार तो इस कदर अधिक भोजन एकत्रित हो जाता था कि उसे अन्य गरीब फुटपाथियों के बीच वितरित करने लगा है। गौर करने वाली बात यह है कि भोजन के बारे में उसका यही मानना था कि यह सब ऊपरवाले की कृपा है। जैसे रख्ोगा। वैसा ही रहना होगा। मुस्लिम त्यौहार ईद पर वह घाटगेट एरिया में स्थित मस्जिद में चला जाता है।
दिवाली पर, पवनपुत्र की कृपा से इस कदर मिठाईयां आ जाती थी कि कई दिनोें तक उसका सेवन किया करता था।सांप्रदायिका को लेकर उसके विचार स्पष्ट है। हिन्दू हो या मुसलमान अथवा सिख और ईसाई सभी धर्म अपने- अपने हिसाब के श्र्ोष्ठ है। इनमें किसी का भी मन से स्मरण क रे। फिर देखिए आपको कितना मानसिक व शारीरिक शांति मिलती है। उसका संपर्क अभियान फिलहाल में बहुत सीमित है, मगर विश्वास है उसके भीतर, अच्छे कर्म का फल सदां ही देरी से मिलता है। मगर जो भी मिलता हो उसका आनंद ही कुछ ओर होता है।