जयपुर। शराबियोंे के एक से एक दिलचस्प वाकिए देखने - सुनने को मिल जाएंगे,मगर यह घटना इन सभी में अलग है। घटनाक्रम के मुताबिक क मल स्वामी नामक बीस साल के युवक को दस साल की उम्र से ही शराब की लत लग गई थी। पिता खुद इसका शौक फरमाते थ्ो। सुबह से सायं तक शराब ही शराब। कभी कमी रह जाए तो घर में हंगामा। इनकी बद-मिजाजी ने पड़ौसियोंे का भी जीना हराम कर दिया था। लोग चिल्लाने लगे थ्ो, पागल खाने भिजवादो इसे। बाप तो बाप। बेटे ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी।
गलती यहां इस किशोर की ही नहीं थी। घर में शराबी बाप का उत्पात। किशोर अवस्था से ही शराब का माहौल देखा तो पहले छिप-छिप कर पापा जी की ही शराब चुराने लगा था। चौरी का पता किसी को नहीं लगे, इसके लिए। जितनी दारू तो उसकी जगह उतना ही पानी। पापा जी को शक तो कई बार हुआ, मगर यह सोच कर चुप रहगए... मिलावट का जमाना है। हरामी के बच्चे अब दारू में भी अपनी करतूत दिखाने लगे है। अनेक बार शिकायत लेकर शराब के ठेकेदार के पास भी गए। मगर उसी ने फटकार लगा दी। समझाया उन्हें , स्वामी जी टाइम खराब है। आपके परिवार में कोई बच्चा इसी लत का शिकार हो गया है, घर जाकर उसे संभालिए। मेरी दुकान पर आने की जरूरत नहीं है।
ठेकेदार की बात में दम था। एक दिन वे दारू लेकर घर मंे घुसे। पैक बिना बनाकर चार पाई पर लेट गए। कमल की हरकतोंे को वॉच करते रहे। दोपहर के समय, कमल की मां तो लोगोें के घर जाकर झाडूू पौछे का काम करने हुई थी। मौका पाकर पापा जी की दारू की बोतल उठाली,अच्छा सा पैक बनाकर गटगट..., एक ही सांस में साफ। बोतल आधी रह जाने पर उसे शक हुआ, डोकर जाग गया तो...। चलो इसमें जरा सा पानी मिल देते हैं। बुढापा है आखिर उसका। नीट पी तो किडनी बोल जाएगी। स्वामी जी की आंखों के सामने ख्ोल। गुस्से का कोई ठिकाना नहीं रहा। घर के चौक मेंे छड़ी लेकर उसकी जम कर पिटाई की।
यहां बाप-बेटा दोनोंे ही गुनाह गार थ्ो। पहले पापा जी की जान इसी दारू ने ले ली थी। इनके बाद बेटे के सिर पर उनकी जिम्मेदारी आ गई। वो गया तो उनकी जगह मुझे कमी पूरी करनी होगी। वरना उनकी आत्मा बुरा मान जाएगी। फिर क्या। हर सुबह शराब। रात कोई ना कोई हम प्याला मिल जाया करता था। बस्ती में घुसता तो गालियां की गालियां। लोगों ने समझाया भी। पर मानता किसी की भी नहीं। बाप की स्टाइल में हंगामा पर हंगामा। बेहोश होकर बस्ती की गंदी नाली में गिर जाया करता था वह तो उसकी मां थी। उसकी आत्मा रोया करती थी। शराब की लत के पीछे उसकी लीवर जवाब दे गया था। हर वक्त पेट में तेज दर्द...। पेशाब मेंं भी तकलीफ होने लगी थी । बस्ती के देशी डॉक्टर को दिखाता रहा। इसी बीच बीमारी चरम पर आई थी।
मजबूरी हो गई थी उसकी। सवाई मानसिंह अस्पताल में दिखाया। जांचों में पता चला कि कमल बाबू.. हो गया आपका लीवर हलाल। क्या करोगे आप। अब तो दवाएं भी काम नहीं करेगी। कई दिनोें तक अस्पताल में भर्ती रहा। डॉक्टर ने च्ोतावनी दे दी थी कि आगे से एक घूंट भी शराब की ली तो अस्पताल पहुंचने तक की नौबत नहीं आएगी। लीवर डेड रोग का उपचार बड़ा खर्चीला था। कहां से आएगा इतना पैसा। मां के पास कुछ भी तो नहीं बचा था। मदद को कोई भी तैयार नहीं था। ले देकर, बस पुरानी सी अधफटी गुलाबी रंग की साड़ी। सिर के बाल हमेशां बिखरे ही रहते थ्ो। छोटी सी चुटिया गर्दन तक, जब भी वह रोया करती थी। विलाप किया करती थी तो यही चोटी हवा में झूमने लगती थी। बाप -बेटे की चिंता थी।
पर क्या करती। बस में कुछ भी तो नहीं था। दोपहरी के वक्त थोड़ा वक्त मिल जाया करता था, बस्ती की औरतों के संग बैठ कर अपना दुखड़ा श्ोयर कर लिया करती थी। दुखियारोंे की लिस्ट में वह अकेली नहीं थी। बस्ती का माहौल ही बिगड़ गया था। और कुछ नहीं तो प्रशासन को भला- बुरा कहता करती थी। पुलिस वाले खुद बिगड़े हुए थ्ो। क्या मजाल कि किसी दारूड़िए के खिलाफ कार्रंवाही की होगी। जय हो दारू बाजों की। बेटा तो बेटा। बाप तो बाप। कौन कहे। किससे कहे। हर जगह शराबी ही शराबी और जुंआ बाजी । हाई लेबल के ड्रिंकर है...। पेट में डालने को रोटी बेशक ना हो, मगर सुबह की नींद तभी खुलती है, जब उसके सामने दारू नहीं परोसदी जाती थी। बस्ती की महिलाओं की मुसीबत यही थी । ठेकेदार को समझाया, मगर गुंडागर्दी करने लगा था। बस फिर क्या था दूसरे ही दिन से ठेके की दुकान का शटर ही नहीं उठने दिया। हंगामा मचा। पुलिस आई मगर कि या धरा कुछ नहीं। कलेक्टर साहब ने जरूर उनकी परेशानी महसूस की। ठेका बंद करवा दिया गया।
तब जाकर जीत मिली। मगर शराबियोंे ने इसका भी तोड़ निकाल लिया। चांदपोल गेट के बाहर वाले दारू के ठेके वाली दारू की होम डिलीवरी होनी लगी थी। कमल का जहां तक सवाल था। उसका नाम भी शराबी श्ोरों की लिस्ट में आ गया था। मां ने सौचा...,शादी करदी जाए इसकी। लुगाई ही इसे काबू कर पाएगी। मगर, शराबी को कौन देगा अपनी बेटी। कमल की तारीफ के पुल दूर-दूर तक चर्चित हो गए थ्ो। दो सप्ताह तक अस्पताल में भर्ती रहा। घर लौटा तो उसकी तबियत ठीक सी लगने लगी थी। मगर जिद्दी था। कौन सा मानने वाला था। कुछ ही दिनों में हो गया तैयार। मगर इस बार तो अति ही हो चुकी थी। पीलिया के अलावा पेशाब और लेटरीन से खून आने लगा था। घर वालोे ं ने सोचा, अस्पताल ले जाकर क्या करना है।
अपने नवाब किसी की भी मानने वाले नहीं हैं। बस्ती के चिकित्सक का उपचार शुरू हो गया था। मगर उसने भी हाथ खड़े कर दिए। वह बोला... सेवा करो इसकी। दवाओें से ठीक होने जैसा कैस नहीं रह गया है। कमल के हाथों में ग्लूकोज की ड्रिप की दो बोतलें एक साथ चल रही थी। नाक में भी नली थी। पेशाब के लिए केथ्ोडर तक लगवाना पड़ गया था । इतना कुछ होने के बाद भी बस एक ही रट। दारू ही दारू । इसी की रट लगाए हुए था। होठा काले पड़ चुके थ्ो
आंख्ोंे गडढे मेंे समा गई थी। धीमे स्वर या फिर परिवार का कोई उसके निकट आता तो एक ही बात। दारू चाहिए। मेरा मोक्ष तो यही करेगी। दवाओें से तो जिंदगी कुछ घंटों तक आगे सरक जाएगी, मगर कमल की नजर में, दारू ही अमृत थी। जब उसकी चर्चा चला करती थी। आंखों मेें चमक आ जाती थी। शराब के नश्ो से ही जीभ होठों के बाहर निकल जाती थी। ल्याओ जी दारू। डॉक्टर की दवाए काम नहीं करेगी। फटाफट ही मेरी जान निकल जाएगी। फिर अंत में, डॉक्टर भी कहने लगा था, मरने को पड़ा है। आखरी समय है। पिला दो इसे दारू। कम से कम यह तो नहीं रहेगा। मरने से पहले उसे शराब नहीं परोसी गई।