घिनौने हत्या कांडो की कोई कमी नहीं है। एक से एक संगीन मामले। वक्त की धूल ना जाने कब तक इस केस की फाईल पर हथकड़ी डालेगी। इस केस की शुरुआत कुछ ऐसी बया करती है। इक्कीस सितंबर शुक्रवार का दिन है। रोहणी की शानदार कॉलोनी में हलचल है। कोई दो दर्जन परिवार पिकनिक की तैयारी में है। घूमते मटकते, कश्मीर की सैर के ख्वाब स्मीटे हुए। प्राईवेट बस तैयार है। रवानगी में एक परिवार का इंतजार है। कमाल है। ये योगेंद्र भी अजीब है। हर बार यही नाटक। ना जाने किस आफत में फंसा रहता है। कालरा के चेहरे पर गुस्सा दिखाई देता है। जेब से मोबाईल निकल कर योगेंद्र के नंबर लगता है उफ्फ यह भी बंद। क्या आफत है।
दोनों पावों को पीटकर योगेंद्र के घर की ओर रवाना हो जाता है डिस्टेंस ज्यादा नहीं है। कोई दो मिनट लगे होंगे। वह योगी के फ्लैट के बाहरी गेट पर पंहुच जाता है। मगर कालरा हैरान है। योगी के घर का बाहर वाला दरवाजा खुला है। कोई पांच सात देसी कुत्तों का जमावड़ा है। वह।भी आपस में धमाचौकड़ी मचाते। जोर जोर से भौंकने का शोर। वह रुकता है। योगी को आवाज लगता है। मगर कोई जवाब नही। गुस्सा दिखा कर।झिझक कर फ्लैट के बाहर वाले कमरे में कदम रखता है। हैरान होकर जोर जोर से सांस लेने लगता है। कमरे में रखे सोफे पर उसका शव आधा जमीन और आधा सोफे पर लेटा हुवा। सीने पर गहरा घाव है। खून का कतरा चेस्ट से लुढ़क कर फर्श पर छोटे से तलाब में सिमट गया है। दोनों आंखे खुली हुई। डरावनी दिखाई देती है। तेज स्वर में भाभी ऐ रोजी । कहां मर गई तू। अरे क्या होगया तुम सब को। मर गए सारे तुम। क्या तुम।
दोनों हाथों से पेट को सम्हाल कर तीनों शवों को घूरने लगता है। दिमाग की मशीन जाम हो चुकी है।फिर उल्टे पांव दोरकर साथियों की ओर दौड़ता हफ्ता । आंखे फैलाए। बिना कुछ कहे साथियों को इशारे के हवाले ना जाने क्या चाहे,बोल नहीं पता। स्टोरी का अगला चेप्टर पुलिस थाने की ओर। बरामदे की सीढियां तक गिरता पड़ता पहुंचता है। मुंह से एक ही शब्द यही की थानेदार जी। गजब हो गया। मर्डर हो गया। वह भी तीन तीन। पुलिस ऑफिसर का मुख खुला का खुला का खुला रह जाता है। टेबल पर रखी फाइले नीचे गिर पडती है। चाय का कप लुढ़ग जाता है। फिर साहब का मुंह खुला का खुला रह जाता है। मुनीम को आवाज लगता है। ए हराम खोर। जब देखो तब चाय ही चाय। हराम की खता रहेगा। चल गाड़ी लगा । सरवन और लोकेश सतवीर से कहो दो चार जवान को साथ ले। गाड़ी पर मिलने चाहिए। टेबल पर रखा डंडा उठाकर बरामदे की ओर आकर रुकता है।
फिर जोर से चिल्ला गाड़ी की अगली सीट पर बैठकर कालरा और उसके साथियों की ओर मुंह करके आप लोग भी चलो। तुम लोगों का साथ रहना जरूरी है। योगेश का फ्लैट अंधेरे में डूबा है। पास पड़ोसियों के दवाजे भीतर से बंद है। मगर खिड़कियां खुली है। इसी के भीतर से झांकती। खोई खोई सी। सांस की धोकनी। सांप की तरह फुफकार मारती। तभी बच्चों के रोने की आवाज। साहब जी ठिठकते है।ओर फिर चुप। साले बेवक्त की औलादों। साहब की नारजदुगी का असर होता है। ना जाने मीडिया वालों को कैसे मिली खबर। अफसरों के फ़ोन घांघनाने लग ते है। हंगामा मैच जाता है। क्या करे पुलिस। काम करने नहीं करने देते। बस गालियां डांट फटकार। बस यही चलता राहत है। कहानी आगे बढ़ने लगती है।