जयपुर। बच्चों के इस अस्पताल में, आई सी यू का माहोल खराब है। वेंटिलेटर की मशीन की आवाज डराने लगी है। मेरा तमाम फोकस दो साल के बच्चे की ओर है। ना जाने कितनी तरह की मशीन और ड्रिप,गिनने का साहस जुटा नही पा रहा है। आईसीयू के बाहर कोई तीस साल की एक महिला बैठी है। बंगाली साड़ी पहने हुए।
यही बेंच पर एक सक्स , सायद उसका पति हो सकता है। बच्चे की मां से बातचीत का सिलसिला शुरू होता है। जरा जिझक के बाद वह बोलने लगती है। मेरा बेबी दो साल का ही है और डाक्टर कहता है,उसे कोई खतारना बीमारी है। जान बचाने के लिए कोई बड़ा आपरेशन जरूरी है। वह चुप हो जाती है। रोने लगी है,शायद। ना जाने कैसे खयालों में डूबी । शायद कुछ कहने की कोशिश में,मगर बोल नही पा रही है। मैं झुकी और उसका सिर अपनी गोद में रख कर,उसके बालों को सहलाने लगी कोशिश लगी हूं।
ओह दीदी,हिम्मत रखो,जंग तो अभी शुरू हुई है। आपका बच्चा मौत के करीब है। हर हालत में उसे बचाना है। ना मालूम कौन से पाप को भोग रहा है ओह , वह कहती है की रीसू की बीमारी का नाम, मेरी समझ के बाहर है।वह फेमिलियल है साईटिकली लिम्फो हिस्तियो साईटिसिस । बड़ा अजीब नाम है। हर कोई कतराने लगा है। बेबेसी झलकती है। मेरा बेटा रीसु जब बीमार पड़ा तो डॉक्टर बोले आपके बच्चे को कोई वॉरस की चपेट में है। उसके शरीर का टेंपरेचर लगातार बद रहा है।कोई दावा काम नही कर रही है। थर्मामीटर की सारी रीडिंग फेल हो गई है।
कुछ महंगी एंटीबैरेटिक बाजार से मंगवाई। सोचा मेरा गिलुमोलू ठीक हो जायेगा। ना जाने किसका बताया टोटका करने लगती है। हर मां की तरह। ठीक हो जाए मेरा लाल। काली मां का कोई उपाय। दो दिन इसी तरह गुजर गए,मगर वही हाल।वही चाल। तभी किसी परिचित की सलाह पर उसे बंगलौर के किसी मल्टी एस्पेसिलिटी हॉस्पिटल गए। कई दिनों तक जांच पर जांच चलती रही।
पता चला की रिशु के शरीर में सक्रिय प्रतिरक्षा कोसिकाओ का उत्पादन हो रहा है। ऐसे में दूसरे अंगों को नुकसान होने लगा है। बच्चे की जान बचाने के लिए अस्थिमज्जा का प्रत्यारोपण जरूई है।
इसके कीमत अड़तीस लाख बताई है।कहां से आएगा इतना पैसा।घर पहले ही गिरवी पड़ा है। गहने बर्तन सभी बिकगगाई। फिर भी चार लाख ही बन पाए। हमारी हालत से डॉक्टर भी परिचित हो चुके थे। बच्चे को बचने के लिए कैंसर थेरेपी दी गई। मगर इतनी कष्ट करी। पहली सूई लगी तभी से लगातार चार घंटे रोता रहा। नॉन स्टॉप। गोद में आया तब जाकर उसे आराम मिला