City News : अकेली है गरीब मां,कैसे बचाएं अपने बीमार बच्चे की जान

Samachar Jagat | Saturday, 04 Feb 2023 04:30:43 PM
City News :  Poor mother is alone, how to save the life of her sick child

जयपुर। बच्चों के अस्पताल में। सुबह के नौ बजे है। बीमार बच्चों की भीड़ और दिनों की तुलना में आज कुछ ज्यादा है। घुटन भरा माहोल है। दवाओं के अलावा पसीने की गंध। कहने को हवा का झोका महसूस होता है,मगर कुछ नमी है। ठंड महसूस होने लगी है।इसी के बीच। घिचपिच में,एक कोने में सकपकाई सी। अपने बीमार बच्चे को सीने से लगाए। गुलाबी रंग के पुराने शॉल में लपेटे। खुरदुरे हाथों की कमजोर उंगलियों में गंदी सी दूध की बोतल में,मक्खियां भिनभिना रही है। बैचेन सी।

मुरझाई सी। डॉक्टर की टेबल की ओर बढ़ती लाइन में अपनी बारी का इंतजार  कर रही है। रहमत से बात करने का दौर शुरू होता है। कहने लगती है। मेरा बेटा फैज़ दर्द में है। जब वह कुछ महीने का था,तभी से डॉक्टरों के चक्कर मार रहा है। जिंदगी से झूंझ रहा है। कभी कदास,मेरा जी कुंभला सा उठता है। मन में बहम सा उठता है। कहीं खो ना दू इसे। मरी बीमारी पीछा छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही है।

हाल ही में अपने पति को तलाक देने के बाद, फैज़ के जन्म ने मेरे जीवन में नई किरण की शुरुआत महसूस की थी। लेकिन जो हमारे सामने था,उसके लिए हम में से कोई भी तैयार नहीं था। दुर्भाग्य से,उसके जन्म के दो माह के बाद,उसे पीलिया हो गया था। साथ में तेज बुखार भी । मैने घरेलू नुक्से अपनाए। फकीर के पास भी गई। बाबा की मजार पर धोक दिलवाई। मेरे मोहल्ले में बूढ़ा वैध का ईलाज करवाया। पंद्रह दिनों के  लिए दवा दिलवाई। बोला ठीक हो जायेगा। चिंता न करे । मगर दूसरे दिन ही उसकी तबियत ऐसी बिगड़ी कि मारे दर्द के पूरी रात रोया। चुप होने का नाम ही नहीं लेता था।

मेरे पास जो भी कुछ था,लोहे के पुराने संदूक के तले को कुरच कुराच कर,जितना पैसा मिला। सब समेटा। सिटी बस की भीड़ में, ढकीआती,लंबी यात्रा की। अस्पताल के डॉक्टर ने चेकअप किया। तुरंत ही आई सी यू में ले लिया। मेरा दिल नहीं मानता था। कौशिश की,मेरे बच्चे के पास कोई तो रहेगा। मगर अस्पताल के अपने नियम थे। किसी को भी भीतर नही जाने दिया। बाइस दिन इसी तरह बीत गए । एक बार भी तसल्ली की खबर सुनने को नहीं मिली। टेस्ट पर टेस्ट चलते रहे। बायेप्सी में पता चला फैज़ का लीवर खराब हो गया। मैने सुना तो जी बैठ गया। कुछ देर रोली तो मन जरा हल्का महसूस हुवा। मेरे पास ही बूढ़ी मुसलमानी बैठी थी। मेरे पास आई। कहने लगी,धीरज रख। अल्ला मियां पर विश्वास कर ।

हम गरीबन की वहीं सुनेगा। मैं रोती रही। कुरान की आयात बुदबुदाती रही। बड़ा सुकून मिला। दूसरे दिन बड़े डॉक्टर ने मुझे बुलाया। कहने लगा। तेरा बच्चा सीरियस है। लीवर ट्रांसप्लांट करना होगा। इसके अलावा कोई और रास्ता नहीं हो सकता। काम मुश्किल था। बीस लाख का मोटा मोटा सा खर्च था। कहां से आएगा इतना पैसा। रहने को पुराना सा कमरा। इसे बेचने पर भी इत्ता पैसा नहीं मिल सकता। मैने अपने तमाम जेवर बेच डाले। बैंक से कर्जा भी ले लिया।  एक ट्रस्ट से भी मदद ली थी। अब मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था।

मैं उसकी लीवर डोनर हूं। लेकिन उसके जीवन को बचाने वाली सर्जरी के लिए पैसों की कमी बनी रही। फैज़ की मदद करने वाली संस्था का मोबाइल नंबर919930088522. है। आभासी का खाता नंबर 2223330048799027 है। आभासी का नाम फैज रूकसार एंग्लेव कीटो। आईएफसी रत्नोवापीस  मदद तुरंत चाही गई है। इंतजार है।



 

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