जयपुर। बीमार बच्चों के उपचार को लेकर यहां के जे.के.लॉन अस्पताल ने अपनी खासी अच्छी छवि बनाई हुई है। बात भोजन की हो या फिॅ र ब्लड की या दवाओें और मुफ्त जांच की तो जायज मामलों में गरीब और जरूरतमंद लोगोंे को क ोई ना काोई सहारा मिल ही जाता है। मगर कैंची-चाकू घार करने वाली ढाणी वालोंे के एक मामले ने अस्पताल के माहौल को खासी चर्चा का विषय बना दिया है। घटनाक्रम के अनुसार शहर में फेरी लगा कर क ैंचियोें और चाकुओें की धार देने वाले गरीब परिवार में एक साल का बच्चा किसी सीरियस संक्रमण का शिकार हो गया। परिजनों के पास पैसा था नहीं। जयपुरिया और गणगौरी अस्पताल में उसे ईलाज के लिए ले जाया गया। मगर उपचार के साधनोे की कमी के चलते रोगी को जे.के.लॉन अस्पताल ले जाना होगा ।
इसी दौरान कुछेक लोगों ने इस मामले को मुद्दे से अलग कर उसे दूसरा रूप दे दिया और परिजनोें और अस्पताल के प्रशासन के बीच तनातनी हो गई। कई देर के हंगामें के बाद धार वाली बिरादरी के लोगोंे के बीमार बालक अजान को सरकारी एंबूलैंस की मदद से जे.के.लॉन अस्पताल ले आए। बालक की हालत ज्यादा बिगड़ जाने पर वहां उसे तुरंत ही मैडिकल इकाई 6की आपात उपचार युनिट में एडमिट कर लिया। बीमारी की जानकारी के लिए यूनिट के चिकित्सकों के क ाफी सारी दवाएं और जांचें लिख दी। साथ ही कहा कि बच्च्ो की जान बचाने के लिए एक युनिट ब्लड की व्यवस्था तुरंत ही करनी होगी ।
बीमार बच्चे के साथ आए अटेनेंटों में चार जवान पुरूष दो युवक और छ: महिलाएं शामिल थी। चिकित्सकोंे की बात सुनकर वे बोले कि ब्लड की व्यवस्था वे नहीं कर सकते। इसके लिए अस्पताल प्रशासन को ही काोई प्रयास करना ह ोगा। कई देर तक अस्पताल में हंगामा चलता रहा। तभी चिकित्सकोें ने कहा कि एक युनिट ब्लड परिजनों की ओर से आना चाहिए, बाद में जब भी दूसरी यूनिट की आवश्यकता हीोगी, तो इसकी व्यवस्था अस्पताल में ही हो जाएगी।
बीमार बच्च्ो के परिजनों का कहना था कि हम अपना ब्लड नहीं दे सकते। क्योंं कि ज्यादातर कोई ना कोई बीमारी के शिकार है। ऐसे मंे अस्पताल प्रशासन को चाहिए कि मुसीबत के इस समय में वे आजान को अस्पताल की ओर से ब्लड उपलब्ध करवाए। इस मामले में चिकित्सकोें का पक्ष यह है कि कोई भी मरीज को ब्लड की आवश्यकता होती है, उसके अटेनेंट को ब्लड डोनेट करने को कहा जाता है। विश्ोष परिस्थिति में पेसेंट का उप्पचार कर रहे यूनिट हैड की सिफारिस पर उस पेसेंट को एक युनिट ब्लड दिया जा सकता है। उनका प्रयास यह रहता है कि रोगी को ब्लड की आवश्यकता होने पर उसके परिजन ही ब्लड डोनेट करे। इस मामले में अस्पताल के आवश्यक निर्देश तय किए गए है। उनकी गाइड लाईन काम किया जाता है। आजान के केस मेंगौर करने की बात यह है कि जे.के.लॉन अस्पताल मेंं ब्लड खरीदे जाने या बेचने की कोई व्यवस्था नहीं है। यदि कभी इस तरह का कोई मामला सामने आता है तो उसमें कानून के मुताबिक आवश्यक कदम उठाना पडता है।
अस्पताल में एक बार फिर किसी दूर की बात को लेकर हंगामें की स्थिति उस वक्त शुरू हुई कि जब शहर की सेवाभावी संस्थाओे ंकी चार गाड़ियां वहां पहुंची भोजन के पैकिट लेने वालों की की लंबी कतर लग गई। मगर बाद में एका-एक फ्री का यह भोजन खत्म हो गया। संस्था वालोें बताया कि भोजन वितरण के लिए एक दिन पहले ही प्लानिंग कर लेनी पड़ती है। मगर आज तो हालात ही अलग हो गए । कैंची- चाकू घार वालोें की ढाणी वालों के दो दर्जन लोग बस्ती के बीमार बच्चे के उपचार के लिए वहां पहुंच गए। मगर इस बीच भोजन खत्म हो गया और वहां मौजूद किन्हींे शरारती लोगों ने बिना काोई खास बात क ो मुदद बनाने का प्रयास किया।
मरीजों के अटेनेंटोंे का कहना था कि जे.के.लॉन अस्पताल की व्यवस्था को लेकर किसी को क ोइ शिकायत नहीं है। यहां आने वाला क ोई भी सख्स भूख्ो पेट नहीं रहता। सेवाभावी संस्थाओें की पहली गाड़ी सायं ठीक पांच बजे पहुंच जाती है। इनके द्बारा खिचड़ी, चावल वितरित किया जाता है। दूसरी गाड़ी शहर के एक समाज सेवी की आती है,जो लोगों को अस्पताल की चार दीवारी वाले मैंदान में टाट पटट ी बिछा कर लोगोंे को पेट भर भोजन करवाता है। इस भोजन में एक सब्जी, दाल और हरी मिर्च का अचार होता है। हाल ही में एक ओर युवक भी मुफ्त में भोजन लेकर आने लगा है।
इसकी क्वालिटी ज्यादा बेहतर होने पर लोगों की संख्या बहुत ज्यादा रहती है। मोती ड़ंूगरी वाले गण्ोश जी के मंदिर के ट्रस्ट वालोंे की ओर से भी भोजन आने लगा है। कहने का अर्थ यह कि दान- पुण्य के चक्कर में बहुत लोग अपने घर से ही भोजन तैयार कर उसे अच्छे से पैक कर देते है और जे.के.लॉन अस्पताल में पहुंच कर भूख्ों सख्स को भोजन का वितरण कर रहे है। इतनी अधिक सुविधाओंे के बाद भी कभी कदास भोजन कम पड़ जाता है। जिसकी व्यवस्था बीमार बच्चोें के परिजनों के द्बारा की जा रही है।
स्वे बताते हैं कि वहां बीमार बच्चों के लिए दवाओं और जांचों की भी निशुल्क व्यवस्था की गई है। रोगियोें की बढती- घटती भीड़ के चलते कभी कदास ही इन मामलों में का ोई शिकायत की स्थिति पैदा हो जाती है, मगर इन हालातों में बीमार बच्चों के अटेनेंट प्रशासन का आवश्यक सहयोग करते हैं। रहा सवाल भोजन का, वहां भर्ती बच्चों के लिए अस्पताल की ओर से भोजन, दूध और फ लोंे की व्यवस्था हो जाती है। रहा सवाल धार वाले परिवार का, वहां की व्यवस्था विचित्र है।
वहां का कभी क ोई सख्स जब भी बीमार हो जाता है तो उनकी मदद के नाम पर पूरी बस्ती के लोग अस्पताल पहुंच जाते है। इस पर मरीज के घरवालों पर इनके भोजन और चाय नाश्ते का बोझ और आ जाता है। जिसे वह चाह कर भी कुछ नहींे कर पात्ो है, क्योें कि इस मामले में काोई भी शिकायत होने पर उन्हें समाज से बेदखल होने का खतरा रहता है। इस तरह की कुरूतियों के चलते गरीब बीमार बच्चोंे को परेशानी का सामना करना पड़ जाता है।