City News : इतनी बेरहमी क्यों, वह जीना चाहती है,मगर मौत के जबड़े में फंसी पड़ी है

Samachar Jagat | Tuesday, 21 Feb 2023 04:37:14 PM
City News : Why so cruel, she wants to live, but is trapped in the jaws of death

समाचार जगत पोर्टल डेस्क। कैसा अस्पताल है। मौत के सिवाय और कुछ दिखाई नहीं देता है। एक से एक संगीन पेसेंट है। अजीबो गरीब बीमारियों की गोद में बैठे। कब कौन छोड़ जाय। यह आहत परेशान कर रही है। इस अजीबो गरीब वार्ड में। बारह नंबर के बैड के पास। मेरे सामने कोई चार साल की बच्ची बिस्तर पर लेटी है। मायूस  चेहरा है। हल्का सांवला रंग है। आंखें बड़ी बड़ी,मगर सुंदर बहुत है। बच्ची के बैड के निकट। लकड़ी की बैंच है। इसी पर बैठी है,संभ्रांत महिला है। चेहरे पर मायूसी है। अन कहे सवाल है। मानो उसके होठ कुछ कहना चाहते है।

कुछ देर की इधर उधर की बातें। फिर अपने ख्वाबों को लेकर बातचीत केंद्रित हो जाती है। कुछ इस तरह....! बचपन से ही मुझे बच्चों से लगाव रहा है। बेबस सी हूं। अपने खुद का बच्चा होने का इंतजार नहीं कर सकती थी। जब मैंने नवीन से शादी की,तो हम दोनों माता पिता होने की खुशियां पाना चाहते थे। दुर्भाग्य से,जैसा कि हमारी पहली बेटी नायसा के साथ हुवा है। हमने केवल डर और दर्द का अनुभव किया है। सवाल था। यह सब कैसे हुवा .......? मुझे आज भी वह दिन याद है जब वह पैदा हुई थी। अपनी बाहों में लेने केलिए तरस रही थी। लेकिन अफसोस,मेरे बच्चे का चेहरा देखने से पहले ही डॉक्टर उसे दूर ले गए।

में रोने लगी। रोती ही रहती थी। फिर वार्ड की नर्स मेरे निकट आई। मेरे कंधे पर स्नेह भरा हाथ रख कर, वह बोली। आपका बेबी अच्छा है। मगर डॉक्टर सपोर्ट चाइए। उसका होठ असामान्य है। दिल भी जरा कमजोर सा लगता है। मैं नहीं समझी नहीं। यह नर्स क्या चाहती है। मेरे चेहरे पर सवाल उभरे तो  बोली। परेशान होने की बात नहीं है। आप का बेबी ही नहीं। कई बच्चों में यह प्रॉबलम देखने को मिल जाता है। डाॅक्टूरी भाषा में। इसे हेतेरोटीक्सि सिंड्रोम और साइट्स अंबिगुयस नामक बीमारी का जाता है। मगर समय पर पता चल जाय। उसका ईलाज हो जाए। बच्चा ठीक हो जाता है।

इसके  दूसरे ही दिन। मैं खोई खोई सी थी। तभी नर्स मेरे निकट आई। उसके हाथों में कुछ था सफेद से कपड़े में लिपटा हु वा। और फिर मैं  खिलखिलाने लगी। मगर मेरी खुशियां बैरन बन गई थी। अपनी बच्ची को देखा तो सुटूट सी रहा गई। आंखों के सामने अंधेरी सी आगई। मैं रोने लगी,फिर कई देर तक रोती ही थी। मैं अकेली थी। पास के बिस्तर वाले बच्चे वाली वह बुजुर्ग महिला। अनजान थी। फिर भी हम दोनो का दर्द एक साही था। वो मेरे निकट आई और मुझे, अपने सीने से लगा लिया। कई देर रोने पर मेरा मन हल्का हुवा। तब जाकर अपना दर्द महसूस हुवा।

यह स्टोरी सात साल पहले की है। आज मेरी बच्ची नायसा,लोगों की नजर चाहे जैसी हो। मेरी प्यारी प्यारी दिल का टुकड़ा थी। जहां सवाल उसकी बीमारी का था। उपचार के नाम पर कोई प्रोग्रेश नहीं थी। उसके दिल का छेद ठीक करने के लिए उसकी दो सर्जरी हुई,लेकिन दोनो सक्सेसफुल नहीं हो सकी। इस बार थोड़ी सीउम्मीद जागी। अहमदाबाद से कोई सीनियर सर्जन यहां आया था। कहते है,इसी तरह के केश देखता है। कई सारे बच्चों को ठीक भी किया है। देखने में ही लगता था। वाकई वह कुछ है। मेरी बच्ची को ठीक कर सकता है।

डॉक्टर कहता था, आपकी बच्ची ठीक हो सकती है। एक आखरी सर्जरी की आवश्कता है। जो इसकी परेशानी को ठीक कर सकती है। रहा सवाल इसके कटे हुवे होठों का। चिंता न करें। मामूली सी सर्जरी से ठीक हो सकता है। मगर हार्ट के ऑपरेशन का खर्च पांच लाख बताया। मैं रोने लगी। कहां से आएगा इतना पैसा। मगर मेरी बच्ची मेरी खुशियां थी। उसे खोना सहन नहीं कर सकती। सांझ ढले।डॉक्टर्स के राऊंड के बाद। मेरे पति वार्ड में आए। सारी बातें बताई। कुछ क्षणों की मुस्कराहट देखी। मगर सवाल था कहां से आएगा इतना पैसा। लंबी सी सांस ली और नायसा के सिर पर स्नेह से हाथ फेरने लगे।  मेरे साहब के पास नौकरी नहीं थी। छोटी सी दुकान थी। तीसरी सर्जरी के लिए पैसे, उनके पास कहां थे। घर में रखी एक्टिवा बिकगई। घर गिरवी चला था। रिश्तेदार कन्नी काटने लगे। क्या हो सकता है।कई से होगा।उसी में दिन काट रही है।



 


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