जयपुर। मासूम और बेबस बच्चे को देखकर प्राय:कर लोगोें के दिल में इस बात का दयाभाव आ ही जाता है कि बच्चा है आखिर बच्चा है। उसकी नादानी बातों को प्राय:कर सीरियसली नहीं लिया जा सकता । मगर दो साल के एक बालक का व्यवहार ही कुड ऐसा है जिसे देखकर हर क ोई हैरान है। अनोख्ो विचार वाला यह बालक जयपुर की फुटपाथ पर रह रहा है। बालक का नाम क्षतिज है। और बच्चोंे की तुलना में इस कदर चंचल है कि उसके परिजन भी हैरान है।
क्षतिज की तुतलाई बातोें और व्यवहार का अंदाज अलग की रहता है। उसकी जिद परेशान तो करती है। क्यों उन्हेंं पूरा करना बहुत ही मुश्किल होता है। श्ौतान बच्चोें की श्रेणी वाला यह बालक हर वक्त धूप का चश्मा लगा कर रखता है। चश्मा खिलौना नहीं है। असल है। जिसे उसने का ाफी जिद के बाद पाया है। बालक पोशाक भी स्पेशल है। गहरे हरे रंग की टी- शर्ट और गले मंें गुलाबी छींट वाला रूमाल लपेटा रहता है। पांवोें में सस्ती सी हवाई चप्पलें और खाखी हाफ पैंट बैल्ट सहित पहने रहता है। ना जाने कितने फिल्मी गाने उसे याद हैं। गानोंं के साथ- साथ म्यूजिक भी अपने होठो से निकालता है।बच्च्ो की आर्थिक हालत का जहां तक सवाल है उसके पिता की आगरा में मैन्यूफेक्चरिंग की दुकान है।
जिसकी सप्लाई आगरा के अलावा नजदीक के शहरोंे व कस्बों में किया करता है। बच्चे में संस्कार अच्छे लगते हैं। बोलने का स्टाईल ही कुछ ऐसा है कि हर क ोई उसका बन कर रह जाता है।मासूम बच्च्ो की खूबी के अलावा उसकी कुछेक परेशानी भी है, जिनसे वह कई माह से संघर्ष करता आया है। बच्च्ो के परिजन बताते हैं कि क्षतिज जब गर्भ में था तो चौथ्ो माह से ही परिजनों को इस बात का संकेत मिल गया था कि बालक मंे कोई ना क ोई बड़ी बीमारी है।
इस पर उसे आगरा की जानी- मानी गायनोक्लोजिस्ट को दिखाया था, इस पर जब उसकी सोनोग्राफी की गई तो इस बात का संकेत मिला कि बच्चे की दोनोंं किडनियों में सोजन है। जो हीइड्रोनेफोसिल नामक किडनी की खतरनाक बीमारी का कारण बन सकती है। परिजनोें को जब जानकारी मिली तो उसे बिना क ोई विलंब केे आगरा के बाल रोग चिकित्सक को दिखाया। गुर्दे की संभावित बीमारी का उपचार शुरू करवा दिया था। इसके बाद पूरे नौ माह के बाद जब इस बालक ने जन्म लिया तो वह सामान्य बच्चे की तरह रोया था। उसकी सांस की गति सामान्य थी। पेशाब और शौच की क ोई प्रॉब्लम नहीं होने पर उसे सामान्य शिशु का दर्द दे दिया गया था।
क्षतिज जब अपने घर लाया गया तो उसके शरीर के कई लक्षण सामान्य नहीं पाए गए। वह दिन- रात रोता रहता था। नींद नहीं आने की शिकायत होने पर परिजन परेशान हो गए थ्ो। इसके अलावा उसके पोल्विस में दर्द, किडनी के स्थान पर सोजन की शिकायत रहने लगी थी। साथ ही साथ उसका पेशाब झागदार था। उसके बदन की ग्रोथ एक सामान्य बालक से क ाफी अधिक थी। छोटे से इस बालक के चेहरे पर दाढी- मूंछो के संकेत दिखाई देने लगे थ्ो। आरंभ में उसकी परेशानियोंे को परिजनों ने सीरियसली नहीं लिया। जब भी उस पर क ोई टीका- टिप्पणी करता था, उसे हंस कर टाल दिया जाता था। मगर जब य्ो खामियां जोर पकड़ने लगी तो उसे वहां के एक बड़े निजी अस्पताल में दिखाया।
नेफ्रोलॉजिस्ट ने बच्चे को दिल्ली के एम्स या जयपुर के जे.के.लॉन अस्पताल ले जाने का सुझाव दिया। इस पर जयपुर सुविधाजनक होने पर वे इसे यहां ले आए। बच्चों के इस अस्पताल के आउटडोर में जब उसे दिखाया तो चिकित्सकोंे ने कई सारे टेस्ट लिख दिए। साथ ही कहा कि जांच की रिपोर्ट आने के बाद ही इस बालक को भर्ती किया जाए या नहीं,इस बात का निर्णय लिया जाएगा। कुछ सुविधाओे को देखकर बालक को अस्पताल के मैडिकल युनिट फस्ट के बरामदे में सुला दिया गया। क्षतिज के अलावा और भी बीमार बच्चे वहां रूके हुए थ्ो। निशुल्क भोजन का भी प्रबंध था।
बालक से जब संपर्क हुआ तो जानकारी मिली थी बच्चा जरूरत से ज्यादा फैसन वाला था। हर दिन उसे नई पोषाक चाहिए थी। व्यवहार में वह बहुत ही चंचल होने पर उसका बड़ा ध्यान रखना पड़ता था। समस्या इस बात की भी थी कि वह पूरी रात नहीं सोता था। हर वक्त क ोई ना क ोई खुराफात करता ही रहता था।बच्चे की मां सोनिया बताती है, कि क्षतिज को खिलौने बहुत पसंद है। मगर समस्या इस बात की थी कि किसी भी तरह का खिलौना उसे लाकर दिया जाता था तो कुछ ही मिनट में उसे तोड़ देता था।
हाल यह हो गया कि उसके घर का कमरा खिलौनोंे से भर गया था। इन्हीं दिनों उसे एक नया शौक धूप का चश्मा पहनने का लगा। हर दिन नई डिलाइन का चश्मा तो उसे हर हालत में चाहिए ही था। हालत यह हो गई थी उसे जब आउट डोर में ले जाया गया था तब भी अपना धूप का चश्मा उतारने को तैयार नहीं हुआ था। क्षतिज की एक ओर जिद यह थी, उसे वह जब भी किसी के संपर्क आया बरता था, तो एक बात ही दोहराया करता था कि वह पायलट बनेगा। फिर एक्टिंग करके हवाई जहाज के उड़ने का तरीका बताने लगता था। प्लेन के शोर को अपने ह ोठों मंें जीभ की मदद से फ ुर्र से करत और नन्हंें कदमांें से फर्श पर दौड़ने लग जाता था। उसे देख कर हंसी भी आती थी । मगर उसकी बेबसी पर मन दुखी हो जाया करता था। दोनोंे किडनियां खराब हो जाने पर कितने दिन की जिंदगी जी सकेगा...।
इस तरह के सवाल दिमाग में घूमने लग जाते थ्ो। चिकित्सकोंे से जब भी यह सवाल पूछा जाता था तो वे भी इस बारे में क ोई जवाब नहीं दिया करते थ्ो। मगर उनका यह इशारा था कि बच्च्ो की जान बचाने के लिए उसकी किडनी का ट्रांसप्लांट करवाना ही होगा। अन्यथा वह डायलेसिस भी अधिक नहीं झेल पाएगा।संभवतया यहीं कारण था कि क्षतिज की हर जिद पूरी की जाती थी। तरह- तरह के एरोप्लेन के खिलौने दिलाए जाते रहे। मगर हर बार यही कहा था कि उसे खिलौना नहीं असली विमान चाहिए। जिसे लेकर वह आकाश में बहुत ऊंचाई तक उड़ सकेगा। इस दौरान परियों से उसकी मुलाकात हीोगी। उनके साथ वह ख्ोलना चाहता था।
क्षतिज का भोजन सामान्य बच्चोें की तरह ही था, मगर दूध तो वह बड़े नखरों के बाद पीया करता था। दूध की जिद पूरी करवाने के लिए उसे एक ही बात कही जाती थी। विमान उड़ाना है तो दूध तो उसे पीना ही होगा। भोला-भाला सा यह बच्चा अपनी मां का चेहरा ताकने लगता था। फिर मां से गले मिल कर बड़ा की खुश होता था। क्षतिज अस्पताल के इनडोर वार्ड में वह कुछ ही दिनों तक एडमिट रहा था। वहां भी उसकी जिद उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी। उसका उपचार कर रहे चिकित्सक ने भी इसी फार्मुल्ो का सहारा लिया था। अक्सर उसे कहा जाता था कि स्वपÝ देखना हर बार बुरा नहीं होता। मगर उसका संकल्प से लिंक हो जाने पर वह परेशानी का कारण बन सकता था। क्षतिज के साथ भी यही हुआ। पायलट तो क्या पता बन पाएगा या नहीं। मगर बड़ा होने तक लोगों का सिर दर्द जरूर बन जाएगा।