दीदी की फुटपाथी पाठशाला का कमाल, अब भीख नहीं मांगेंगे गरीब बच्चे

Samachar Jagat | Tuesday, 31 May 2022 11:06:25 AM
Didi's pavement school is amazing, now poor children will not beg

जयपुर। कहते हैं लक्ष्य बेशक चाहे जितना कठिन हो, मगर व्यक्ति में यदि लगन हो तो इस मुहीम मेंे गरीबी, उम्र और महंगे शोक परिवार की गरीबी की बाधक नहीं हो पाती हैं। आंधी, गर्मी, बरसात और शीत लहर भी उनका कुछ भी नहीं बिगाड. पाती है। इनकी कदम ताल बिना किसी विराम के आगे की ओर बढती ही रहती है। हो सकता है, अनेक लोगों को ऐसी बातांे पर विश्वास ना हो। मगर इन बच्चों के प्रयासों को देखा परखा जा सकता है। ऐसी ही मशाल है, रेणु दीदी की फुटपाथी पाठशाला।

मनमस्त सी इस किशोरी की उम्र केवल सौलह साल की है। सामान्य बच्चोें से जरा हट कर वे अपना फालतु समय टेलिवीजन के प्रोग्राम या मोबाइल के गेम पर खराब नहीं करती । इनकी पाकिट मनी भी इन शालाआंे की जरूरी व्यवस्थाओें पर खर्च हो जाती है। पढाई और समाज सेवा के अलावा रेणुका दीदी घर के काम - काज में अपनी मां का हाथ बढाती है। ज्यादा कुछ नही ंतो घर के बगीचे मंे पानी देना और सब्जी काटने जैसे छोटे- मोटे कामोंं को बड.े उत्साह से पूरा करती है। सांझ ढलते ह ीवह घर मेंं खड.ी एक्टिवा उठाती है और उस पर सवार होकर जेएलएन मार्ग पर, पुलिस मैमोरियर के निकट पथरीली फुटपाथ पर पहुंच जाती है। आश्चर्य की बात यह है कि स्कूल के नाम पर आम तौर पर बच्चे ना नुकर करते हैं। मगर दीदी की शाला का उन पर गजब का नशा है।

टीचर जी की स्कूटी दिखाई देनी चाहिए, दीदी... दीदी चिल्ला कर उनकी ओर दौड़ी चली आती है। कोई नंगे पांव तो किसी की ठीली चड्डी को एक हाथ से संभाल कर हंडरेड मीटर की रेस की तरह दौड.े चले आते हैं। शाला मंे इनका पहला काम बालक- बालिकाओें के मिटटी में सने हाथ - पांव धो कर साफ करनां। फिर गीले हाथों से चेहरे को साफ कर टीचर जी के सामने खड.े होकर ही.....ही .....ही खिलखिला उठते है।
रेणुका दीदी की विश्ोषता यही है ि क वह इन बच्चों से अपने छोटे भाई - बहन की तरह प्यार करती है। सभी बालकों को कतार में बिढाकर सबसे पहले गुलाबी रंग के पर्स में रखी चॉकलेट सभी बच्चों में एक- एक बांटती है। बस इसी मेंं मासूम बच्चे खुश हो कर झूम जाते है। छोटी सी प्रार्थना बोल कर अपनी दैनिक शिक्षा का अगला शुरू करते है।


यहां की खास बात यह भी है ि क इस शाला को सरकार, प्रशासन अथवा किसी भी एंजियो से कोई मदद नहीं मिलती है। दिन की सरकारी पाठशाला की तरह वहां बच्चों में रोज का कलेवा नहीं बंटता है। बालकों के बैठने के लिए वहां टाट पटटी या दरी की व्यवस्था नहीं हो सकी है। रहा सवाल पाठ्य पुस्तकोें का। अपनी सहेलियों से संपर्क कर बाजार से किताबें और कॉपियां खरीद लाती है। जिनका शाला के बच्चों में निशुल्क वितरण कर दिया जाता है। यहां के हर बच्चे की जेब मेंं साफ - सुथरा रू माल हर वक्त मौजूद रहता है। कुछ बच्चों के पांवों में टूटी चप्पलें दिखाई दे जाती है तो अनेक अपने फटी बिवाई वाले पांव लेकर धूल भरी फुटपाथ पर गाड़ी की सी तरह, भुर्र..... भूर्र की आवाज निकाल कर अपनी दीदी के सामने अनुशासन से खड.े हो जाते है। जोशीली तेज सांस के साथ एक स्वर मेंं कहते हैं..... नमस्ते दी......!

डनके चेहरे पर विचित्र सी मुस्कान.......। देखने लायक होती है। टूटे हुए दूधिया दांत..... उनकी आभा बढाने के लिए काफी है। शाला में पढने वाले बच्चों क ी शिक्षिका का जहां तक सवाल है, उनकी रेणुका दीदी स्वयं ग्यारहवी कक्षा की स्टूडेण्ट है। बच्चों की तरह वह खुद भी अपनी नियमित पढाई करती है।कोरोना काल के समय दूसरी लहर तक रेणु की शाला बंद रही थी। मौत के भय के मारे बच्चे भी फुटपाथ से उठकर कहीं अपने परिचितों के यहां चले गए थे मगर जैसे ही कोरोना का कोप कमजोर पड.ा वे फिर से शिक्षा के अभियान में फिर से जुड़ गए हैंे। देखा जाए तो इन शालाओं और कम्पैन में कोरे जोश से काम नहीं चलता।

इनका अपने हम उम्र के बच्चों का संगठन भी जरूरी है। फुटपाथी पाठशाला चलाने वाले स्वयं सेवियों की जयपुर में टीम बनी हुई है;। सभी बच्चे मध्यम श्रेणी के परिवार से संबंध रखते है। इन बच्चोंे की माताएं शिक्षित और हाउस वाइफ है। फुटपाथी बच्चों को पढाने के लिए वे अपने बालकों को उत्साहित करती हैं। समय- समय पर वे इन शालाओं की विजिट करती रहती है। आरंभ में पापा इसका विरोध किया करते थे। उनका मानना था कि पहले खुद कुछ बन कर दिखाओ, समाज सेवा के लिए तुम्हारे पास काफी समय है। पापाजी की बात भी अपनी जगह सच हो सकती है, मगर ये बच्चे अपनी शालाओें के साथ- साथ खुद की पढाई के लिए वक्त निकाल ही लेते है। पापा जी का विरोध इनके संकल्प के आगे कमजौर हो गया है।

अब वे भी अपने बच्चों को उत्साहित करने में पीछे नहीं रहे है। कांति चंद जी कहते हैं कि उनकी बिटिया अकेले ही पूरे होश और जोश के साथ अपने मिशन मंें लगी हुई है। सुलोचना की मम्मी पुराने विचारों की है, मगर बात जब पढाई की आई तो वह भी सहयोगिनी बन गई है। बाल समाज सेवियों का कहना है कि हमें सरकारी या पेश्ोवर सोशल वर्करोंं से कोई लेना देना नहीं हैं, मगर उम्मीद है कि उनके समर्थकोें की टीम जल्द ही विशाल बन जाएगी। इन बच्चोंे का जोश वाकई तारीफ के लायक है। बच्चोें के साथ - साथ उनकी मम्मियां भी अब सेवा भाव में रू चि लेने लगी है। घर में जब भी कोई स्पेशयल डाइट बनती है।

फुटपाथी बच्चों के लिए भिजवाने में पीछे नहीं रहती है । छोटे - छोटे बच्चों की हम उम्र बच्चोें से गुजारिस है ि कवे भी इस मुहीम में उनका साथ दें। यह सहायता इन बच्चों के बीच पुराने कपड.े। दवाओं, स्लेट, कापी पैंसिल आदि की मदद के तौर पर हो सकती है। उनकी यह अपील सोशल मीडिया पर कवर हो जाए तो उनकी परेशानियां दूर हो सकती है। शालाओें का संपर्क का मोबाइल नम्बर 9166870918 है।



 

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