जयपुर। खुली जगह और आराम दायक सीटें होने पर ई रिक्शा शहरवासियोेें केद बीच लोकप्रिय हो गए है। जहां देखो वहीं इनकी तस्वीर दिखाई दे जाती है, देखा जाए तो इसके पीछे कारण ऑटो रिक्शा चालकोंे की बढती दादागिरी मुख्य है। वाकिए का दूसरा पक्ष भी लोगोंे को परेशान करने वाला है। यहां अपंजीकृत ईक्सा वाहनों की संख्या लगातार बढती जा रही है। अव्यवस्था के इस आलम में सड़क दुर्घटनाओें ने आग में घी का काम किया है। आदि दिन किसी ना किसी की मौत के समाचार सुनने को मिल रहे है। अफसोस इस बात का है कि संसाधनों के अभाव में जयपुर की यातायात पुलिस भी कुछ नहीं कर पा रही है।
ऑटो रिक्सा युनियन के पदाधिकारियों का कहना है कि, ज्यादातर ई रिक्सा वाहन चालक के पास ड्राईविंग का लाईसेंस नहीं है। हालत इस कदर खराब हो चुके हैं किशोर बालक से लेकर कई सारे वृद्ध जिन्हें मुश्किल से दिखाई देता है, वे इसकी सीट पर बैठे शाहर भर में गाड़ी घुमाते दिख जाते हँैं। सच पूछो तो बात खतरनाक है। जो लोग यातायात नियमों की जानकारी नहीं रखते हैं, उन्हें ई रिक्शा दोड़ाने की आजादी मिल गई है। अनाड़ी रिक्सा चालकों के चलते एक्सीडेंट्स की संख्या लगातार बढ रही है। चाहे जो मार्केट देखले,यहां के चांदपोल बाजार, त्रिपोलिया बाजार व जौहरी के साथ- साथ यहां की चौपड़ें देखलें इन सभी को यह बीमारी लग गई है। सड़क दुर्घटनाओंे के वाकिए बढने पर अब शहरवासी भी इसकी सवारी से तौबा करने लगे हँै। चार दीवारी के बाहर की कॉलोनियों के मार्केट में भी ं यह गफलत नामा फैल चुका है। पुराने जयपुर के निवासी बताते हैं कि इन वाहनों के लिए शहर में पर्याप्त वाहन पार्किंग की व्यवस्था नहीं है।
यदि कोई हिम्मत करके वहां जाना चाहते हैं तो पहला सवाल पाकिँग का आता है। इसके अभाव में उपभोक्ता बिना रूके आगे बढ जाता है। इन हालातोंे में आम शहरवासी अब मार्केटिंग के लिए बाजार में जाते घबराने लगे है। संभवतया इसी के चलते ऑन लाइन मार्केटिंग लोगप्रिय होती जा रही है। देखा जाए तो इस सिस्टम में भी अनेक खामियां है। मगर बेबसी के आगे हर कोई जहर का घूंट पीने को विवश है। गौर तलब रहे कि जयपुर शहर में मैट्रो शुरू होने पर लोगोें की सुविधा के लिए इनकी कनेक्टीविटी के लिए इसके प्रत्येक स्टॉप पर इन रिक्सोें को पार्क किया जाना आवश्यक था मागर प्रशासन की ढिलाई के चलते यह योजना भी अपंग हो गई है। ई रिक्शोंे के चलते नगर में ट्रेफिक को संभालना मश्किल हो गया है। बिना किसी प्लानिंग के यह सवारी तमाम शहर मेंे मधुमक्खियोंं के छाते की तरह छा गई है।
यातायात पुलिस के अधिकारी का मानना है कि जयपुर की चार दीवारी हो या फिर बाहर की बापूनगर, राजापार्क, मानसरोवर, मालवीय नगर, झोटवाड़ा और सिंधी कैम्प बस स्टेण्ड, रेलवे जंक्शन के आसपास के क्ष्ोत्र में ये वाहनों की संख्या में जबरदस्त इजाफा हो गया है। इस वाहन की पार्किंग का कोई स्थान चयनित ना होने पर वे मन चाही जगह अपना रिक्शा खड़ा करके सारी व्यवस्था को चैापट कर डाला है। प्रशासन की पूछो तो उनकी नजर में कई सारी समस्याएं सामने आ रही है। इसमेंं पहला यह कि शहर में ई रिक्शा का सिस्टम लागू करने के पहले हर तरह की आवश्यक व्यवस्था की जाती। नगर वासियों को सुरक्षा के साथ- सुविधाएं प्रदान की जाए। यातायात नियमों की जानकारी अधिक से अधिक आम जनता तक पहुंचाई जाए। शहर प्रशासन तो यह भी स्वीकार करता है कि इन ई रिक्साओं में बड़ी कं पनियों का सहयोग नहीं मिल पा रहा है। जो मौजूद है,वे क्वालिटी को मेनटेन नहीं कर पा रहे हैं। इसमें घटिया पार्टस लगाने की शिकायतें सामने आ रही है। हालात इस कदर खराब हो चुके है कि विस्फोटक नासूर आए दिन ब्लास्ट होने लगे हैं।
ई रिक्सा की भूमिका पर विचार किया जाए तो वर्ष 2016 मेंे टेरी की ओर से रिपोर्ट जारी की गई थी। जिसमें बताया गया कि जयपुर में केवल तीस से पैंतीस प्रतिशत ई रिक्श्ो ही रजिस्टेर्ड है। ऐसे मंे यहां नगरी मंे अधिकांश ई रिक्श्ो गैर कानूरी तौर पर चल रहे हँै। अव्यवस्था के आलम के चलते दिल्ली हाई कोर्ट में इस सिलसिले में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, इस पर फैसले के बाद ई रिक्सोें पर रोक लगा दी गई। फिर मार्च 2015 में संसद में मोटर साइकिल संशोधन कानून बना कर इसे लीगल बनाया गया। कानून के बाद सरकार ने पहले से चल रहे ई रिक्शा को रजिस्टर्ड करने का मौका दिया। मगर रिक्शा चालकोें ने इसे लेकर दिलचस्पी नहीं दिखाई। बैटरी रिक्सा वेलफेयर एसोसिएसन ने अनुसार गैर कानूनी रिक्शों में से दो सैम्पल ले कर उसे ऑटो मोबाइल रिसर्च एसोसियन आफ इंडिया और इंटरनेशल सेंटर फार ऑटोमेटिक टेकÝोलोजी आइकेट से अपूव्ड ेकरवाया। बाकियोंे को इन्हीं मानको के आधार पर बदलाव करने केलिए आमंत्रित किया। इसके लिए छ माह की अवधि तय की गई। कई बार इसे बढया भी गया लेकिन इस पर भी ऑटो धारियों ने लाईसेंस के लिए आवेदन नहीं किया ।
सूत्र का यह भी कहना है कि जयपुर में ई रिक्शा का सिस्टम ठेकेदारों के अनुरूप चल रहा है। इस पर कई सारी ऐसी खामियां पैदा हो गई है। जिनका उनका समाधान नहीं हो सका है।यहां हालत यह है कि ई रिक्शा धारी एक ठेकेदार के पास सौ से अधिक रिक्शा होने पर इन्हें किराए पर चलाया जा रह है। किराया राशि 35० से 4०० रूपए प्रतिदिन चल रही है। शासन का यह भी कहना है कि ठेकेदारी का यह सिस्टम इस कदर मजबूत है कि इसमें आवश्यक सुधार किए जाने के प्रयासोे का विरोध शुरू हो जाता है। ठेकेदारोंे के रिक्शोंे को जब्त करने के बाद उन्हें सुरक्षित स्थान पर खड़ा करना और स्क्रेप की कोई कानून गत व्यवस्था नहींे की जा सकी है। ई रिक्सा में ऑटो रिक्सा की तरह सवारियोंे को ढूंसा जा रता है, जब कि केवल तीन सवारियां बैठाने का प्रावधान हैं। दो हजार वॉट की मोटर लगाने की अनुमति दी गई हैी स्पीड 25 कि.मी. फिक्स की गई है। चालक के पास ड्राइविंग का लाइसंस और नम्बर प्लेट आवश्यक किया गया है। ले देकर बात यहां आ कर अटक जाती है कि कानून तो तरह- तरह के बनाए जाते रहे हैं, मगर इनकी पालना नहीं हो पाती है। ऐसे में सवारियोेंे का दुखड़ा सुनने वाला कोई भी नहीं है।