जयपुर। जेनेटिक दवाओं को लेकर शहर में लोगों के बीच अनेक तरह की शंका तो है, मगर जहां तक सवाल इसकी गुणवत्ता का है, ब्राण्डेड दवाओं की तुलना में इसमें कोई खास फर्क नहीं है।जानकार सूत्रों का कहन है कि जेनेटिक दवाओंे के प्रचार में पैसा खर्च ना होने पर इन मैडिसीन की रेट ब्राण्डेड से काफी कम। जयपुर जयपèुनिया हॉसिपटल मालवीय नगर के सूत्र कहते हैं कि मलेरिया किट की बात करें तो ब्रांडेड में यह दवा तकरीबन 100 रुपये की है। इसी साल्ट में जेनेरिक मलेरिया किट 29.30रुपये की है।
ब्रांडेड-जेनेरिक में फर्क: वरिष्ठ फार्मासिस्ट शिशुपाल सिह ने बताया कि सभी दवाएं केमिकल साल्ट होती हैं। इन्हें शोध के बाद अलग-अलग बीमारियों के लिए बनाते हैं। जेनेरिक दवा जिस साल्ट से बनाई जाती है। उसी साल्ट से उसे जाना जाता है। उदाहरण के तौर पर बुखार और दर्द में काम आने वाला पैरासिटामाल साल्ट कंपनी इसी नाम से बेचेगी तो उसे जेनेरिक दवा ही कहेंगे। इसके अलावा जब कंपनी उस दवा का नाम बदलकर रख दे तो उसे ब्रांडेड के नाम बदलते ही हो जाती है ब्रांडेड दवा: बुखार और दर्द की दवा जेनेरिक अगर आप खरीदेंगे तो वह 1० पैसे प्रति टेबलेट से डेढ़ रुपये तक स्टोर पर मिल जाएगी। यही साल्ट होने पर सिर्फ नाम बदला गया तो दवा ब्रांडेड हो जाएगी। ब्रांडेड दवा डेढ़ रुपये से लेकर 38 रुपये तक मिल जाती है। दवा लेने का यह है नियम: मेडिकल स्टोर से आप दवा खरीदने गए हैं तो आपको डाक्टर का पर्चा दिखाना होगा। चिकित्सक पर्चे पर दवा लिखेंगे।
मेडिकल स्टोर पर जाने के बाद दवा का बिल लेना चाहिए। उस पर्चे में दवा के रेट लिखी होंगी । कुछ दवाइयां ऐसी भी होती हैं जिनका रिकार्ड रखना अनिवार्य है। मेडिकल स्टोर से दवा खरीदते समय उसके साल्ट पर ध्यान देना जरूरी है। कंपनी के नाम पर नहीं। ब्रांडेड दवा की बिक्री बढ़ाने के लिए उनकी मार्केटिग होती है। कंपनियां अपने प्रोडक्ट बनाकर उनका प्रचार कराती हैं। जेनेरिक दवा का कोई प्रचार नहीं होता है। दवा कंपनियों ने जेनेरिक दवाओं के बेहतर विकल्प के तौर पर ब्रांडेड दवाओं का खूब प्रचार करते हैं। जेनेरिक दवाएं सस्ती होने की सबसे बड़ी वजह से है कि उनका कोई प्रचार नहीं होता है। मार्केटिग के प्रचार पर पैसा खर्च नहीं होता है। प्रचार में कंपनियों का काफी पैसा खर्च होता है।
पहले डेवलपर्स के पेटेंट की अवधि समाप्त होने के बाद उनके फार्मूलों और साल्ट का उपयोग करके बनाई जाती हैं। औषधि निरीक्षक ने बताया कि दवाओं को लेकर सरकारी की सीधी मंशा यह है कि गरीब व्यक्ति भी आसानी से अपनी बीमारी का उपचार कम दाम में करा सके। इसको लेकर सरकार ने जन औषधि केंद्र खुलवाए हैं। जिले में 20 जन औषधि केंद्र हैं। जिसमें दो सरकारी अस्पताल में और 18 मेडिकल स्टोर पर हैं। मेडिकल स्टोर पर जेनेरिक और ब्रांडेड दोनों तरह की दवाएं बेची जा रहीं हैं। जबकि इसके पीछे सरकार की मंशा थी कि सिर्फ जेनेरिक दवाएं ही जन औषधि केंद्रों पर बेची जाएं।
ब्राण्डेड और जेनेटिक दवाओं में रेट का अंतर काफी अधिक होता है, जैसे कि मिसाल के तौर पर मलेरिया किट, 29.30, 50 रुपये,ग्लूकोज, 10 रुपये पाउच, 20 रुपये,बुखार, 6 रुपये 10 टेबलेट, 18 रुपये,पेट के कीड़े मारने की दवा, 6 रुपये 10 टेबलेट, 90 रुपये,गैस के लिए, 5 रुपये 10 टेबलेट, 23 रुपये,ब्लड प्रेशर, 7 रुपये 10 टेबलेट, 20 रुपये,मल्टीविटामिन, 46 रुपये 20 टेबलेट, 70 रुपये,डायजीन, 6 रुपये 10 टेबलेट, 20 रुपये,दर्द निवारक जेल, 22 रुपये 30 ग्राम, 29 रुपये, स्प्रे, 48 रुपये, 60 रुपये। यहां गांधी नगर मंें स्थित सरकारी डिस्पेंसरी मेंं उपचार के लिए आए कुछ मरीजांें से जब बात की तो उनका यह कहना था।
आर.डी. गुप्ता गांधी नगर, सुदेश कुमारी न्याय कॉलोनी बजाज नगर, अवध्ोश कुमार एजी ऑफिस, के.एल. वर्मा गौतम नगर टोक रोड़ जयपुर, के.एल, यादव सिवाड़ एरिया बापूनगर, किशन लाल मीणा मालवीय नगर, अशोक गुप्ता बापूनगर, शिव दयाल सिवाड ऐरिया जयपुर, मोती लाल बैरवा लाल कोठी स्कीम, सèुमन कुमारी गुप्ता रिजर्व बैंक कॉलोनी, नीता केशवासी मालवीय नगर, सुरेश अग्रवाल कृष्णाकॉलोनी, ममता देवी बाइस दुकान जयपुर, गीता देवी बापूनगर जयपुर, डी.एन. उपाध्याय बापूनगर जयपुर, नीता अग्रवाल गांधी नगर जयपुर, पीके खण्डेलवाल, तिलक नगर। आदि ने बताया कि वे अपने उपचार के लिए सरकारी डिस्पेंसरियों में ही जाते हैं वहां दी जाने वाली सरकारी निशुल्क दवाएं अच्छा काम कर रही है।
एक बात और इन डिस्पेंसरियों में पेसेंटों की संख्या पहले की तुलना में कम है। इस पर वहां का वातरवरण क्राउडेड नहीं है। फिर यदि कोई पेसेंट चिकित्सक से ब्राण्डेड दवा लिखने की मांग करते हैं, उसमें भी किसी तरह की मनाही नहीं है। गांधी नगर के निवासी बताते हैं कि इस डिस्पेंसरी में सोनोग्राफी की सुविधा होनी चाहिए ताकि विश्ोष कर गर्भवती महिलाओें क ी परेशान कम हो जाए। ब्लड टेस्ट के लिए आम तौर पर प्राईवेट डायगसिस सेंटर पर जाना होता है, जहां सिवाए पैसों की लूट के और कुछ नहीं है। निशुल्क जेनेरेटिक दवाएं लिखने वाले चिकित्सकांें का जहां तक सवाल है, योग्यता और अनुभव के मामले में प्राईवेट की क्लिनिकों की तुलना में कही आगे हैं। मैडिकल रिप्रेजेंटिव की समस्या नहीं है। वरना चिकित्सांे का अधिकतर टाइम इ सी में खर्च हो जाता है।