जयपुर। देश के मंदिरों में अपने अनूठे पन के लिए जानने वाले बहुत से मंदिर ऐसे हैं,जो कि देश और दुनियाभर में प्रसिद्ध है।इन्हीं में एक, संस्कारधानी के पिसनहारी मढिया की कहानी सबसे रोचक है।कहा जाता है कि यहां स्थित मंदिर 600साल पुराना है। यहां जैनियों का तीर्थ स्थल है।
जिसकी कहानी जितनी रोचक है, उतनी भक्त और भक्ति करने वालों के लिए प्रेरणादायी भी है। जैन तीर्थंकरों को मानने वालों केअलावा अन्य जन सामान्य के लिए यह पूज्य स्थल लाखों लोगों के श्रद्धा भाव को मदमस्त करता है। इसके साथ ही यहां मौजूद जिनालयों की प्रतिमाएं भी बहुत ही आकर्षित करने वाली है। ऐसे में इससे जो भी तीर्थात्री वहां पहुंता है, उसे असीमित तृप्ति का आनंद मिलता है। खुद के अलावा अन्य तीर्थत्रियों को इस रस का आनंद लुटाया रहा है।
वर्णी गुरूकुल के अधिष्ठाता ब्रम्हचारी जिनेश कुमार शास्त्री बताते हैं कि जहां पर आज पिसनहारी की मढिया है, वहां कभी एक गुफा हुआ करती थी। जिसमें सिद्ध बाबा निवास करते थ्ो। एक दिन नि:संतान महिला जो कि घरों में चक्की से आटा पीसने का काम करती थी, बाबा जी से आशीर्वाद लेने पहुंची, उसने सिद्ध बाबा जी से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मांगा। तब उन्होने कहा यहां एक मढिया का निर्माण करो। भगवान तेरी मनोकामना जरूर पूरी करेंगे। उस महिला ने भक्ति पर विश्वास जताते हुए करीब तीस-पैतीस साल तक आटा पीस कर जो कमाई की, पूरा पैसा जैन मंदिर या मढिया बनवाने में लगा दिया। जब मढिया तैयार हो गई तो उसके मन में वैराग्य जाग गया। तब उसने चक्की भी मंदिर में दान देदी और दीक्षा लेकर स्वयं साध्वी बन गई।
उसकी चक्की आज भी मंदिर के मुख्य द्बार पर भक्ति को प्रदर्शित करने के लिए विराजमान की गई है। ब्रम्हचारी जिनेश कुमार शास्त्री के अनुसार दक्षिण भारत के जो भी जैन यात्री यहां से गुजरते थे, तो उनका पड़ाव पिसनहारी की मढिया में होता था। सौ साल पहले संत गण्ोश प्रसाद वर्णी ने यहां साधना करते हुए गुरूकुल की स्थापना की, जहां बच्चों को आधुनिक के साथ-साथ आध्यात्मिक शिक्षा भी दी जाती है। इसी स्थान पर जैन साधु वर्णी महाराज और आचार्य बिनोबा भावे का मिलन हुआ था। इसी प्रांगण में सुभाष चंद बोस, वर्णी महाराज का देश को आजाद करने के लिए एक मंच पर प्रेरणादय सभा और भाषण हुआ।
आजाद हिंद फौज को आर्थिक मदद देने के लिए वर्णी महाराज ने अपनी इकलौति खादी की चादर आजादी के दीवानों को सौंप दी जिसे जैन समाज के सम्पन्न लोगों ने बोली लगा कर तीन हजार रुपए में खरीदा था और एकत्रित हुई राशि आजाद हिंद फौज को देश आजाद कराने के लिए सौंप दी। चक्की चला कर मढिया बनवाने वाली उस महिला के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए इस जैन तीर्थ का नाम पिसनहारी की मढिया रखा गया। इसका अर्थ होता है कि एक ऐसी महिला जो हाथों से चक्की में आटा पीस रही है। प्रेरणा के साथ- साथ वहां आसपास का क्ष्ोत्र खूबसूरत दृश्यों से घिरे है। यही कारण है कि इस मंदिर में हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।