Jaipur : सात दिनों से मुर्दा घर के बाहर बैठी पांच साल की मासूम बच्ची, ,सुनो नन्ही गुड़िया की कहानी

Samachar Jagat | Thursday, 29 Dec 2022 06:10:36 PM
Jaipur : Dead for seven days, five year old innocent girl sitting outside the house, listen to the story of little doll

जयपुर। मुर्दा घर का नाम सुनते ही हर कोई तोबा तोबा करने लगता है। कोशिश करता है,भागो यहां से। मगर यह सत्य कथा पांच साल की नन्ही बच्ची की है। जो पिछले सात दिनों से मुर्दा घर के बाहर बैठी है। आधी आस्तीन का ऊनी स्वेटर पहनी है। हाथ में एक थैला है। मासूम आँखें किसका इन्तजार कर रही है।  बच्ची को लेकर को लेकर किसी के पास कोई जान करी नन्ही है।  साइकिल स्टैंड का वर्कर। पास में ही  गर्मा गर्म चाय बेचने वाला,गंज खोपड़ी वाला अधेड़ सक्स। इसके अलावा कई पेसेंट भी सौ फीट की दूरी पर बैठे है।

इस बच्ची को लेकर किसी को कोई मतलब नहीं है। मुर्दाघर के बाहर धूप सेक रहा वहां का स्टाफ,उसी से सारी कहानी इस तरह सुनने को मिलती है।स्टाफ का नाम रामेश्वर है। वह कहता है। हॉस्पिटल के आधा दर्जन विभागों में वह ड्यूटी दे रहा है। यहां मुर्दाघर में पिछले दो महीने से है। एक एक सप्ताह से दिन रात की ड्यूटी देता है। इन दिनों उसकी नजर उस बच्ची पर पड़ती है। पहले सोचा जाने कौन है। बिना मतलब फाटमें टांग अड़ाना कौन सी समझ दारी है। एक दिन गुजर गया। दो दिन भी यही सीन। फिर ना चाहते हुवे बच्ची के निकट जाता है। अजनबी को पास में बैठा देख कर वह सहम जाती है। सवाल पूछती नजरों से उसे घूरने लगती है। रामू बोला कि बच्ची का मासूम चेहरा देख कर उसका दिल पसीज जाता है। वह कहता है,बेटी तुम कौन हो। कई दिनों से मैं तुझे देख रहा हूं। सुबह से लेकर सायं तक,बिना किसी हिले डुले बैठी रहती हो।

किसी से भी कोई बात चीत नहीं। रात के समय कहां रहती हो। तेरी मम्मी पापा जहां है। वे कहां रहते है। फिर परिवार में कोई तो होगा तेरा रिश्तेदार। रामू बोलता रहा। बच्ची चारु उसे बीच में रोकती है । कहती है अंकल इस दुनियां में मां के अलावा कोई नही है। कहने को बड़ा भाई है। इक बहन है,मगर उनके लिए मां और मैं मर चूके है। परिवार के दर्दनाक किस्से,सारे सुनाती रही। फिर बोली मेरी मां बीमार है। उसी का यहां बैठ कर इंतजार कर रही है। फिर मां ने ही कहां था,देख चारु मैं डॉक्टर के पास दवा लेने जा रही हूं। यहीं बैठ कर मेरा इंतजार करना। और कहीं जाना नहीं है। बस तभी से,मेरी मां का इन्तजार है। मासूम बच्ची का चेहरा दुख से भरा है। मां का नाम जुबान पर आते ही,रोने लगती है। रामू कहने लगा,चलो हम तेरी मां को खोजते है। हॉस्पिटल के लंबे बरामदे में चल कर पहली मंजिल पर जाकर ऑपरेशन थियेटर के दरवाजे के सामने जाकर खड़ी हो जाती है। उसे क्या पता,थियेटर में आखिर होता क्या है। नादान चारु को पता नहीं था कि मां को बीमारी क्या है।

मां ने यही बताया था कि यहां डाक्टर बैठता है। हाथ में सुई और कैची और चाकू ले कर। इसी के चलते तुम जैसे बच्चों को यहां दरवाजे के भीतर ले जाते नही है।तभी ओटी का गेट खुलता है। गैस की तेज गंध नाक में घुसती है। सिर चकरा जाता है। चारु रामू का हाथ पकड़ती है। उंगली खीचती है। घबराई सी कहती है, चलो यहां से। देखो तो सही ये तो भूत जैसे है। हाथों में चाकू ओर कैंची। सुई भी है। मां कहती थी। बच्चों के लगते है। चारु बाहर भाग कर फिर से गैलरी में पहुंच कर रोने सिसकने लगती है। रामेश्वर सक्रिय होता है। रिकार्ड खंगालता है। तभी पता चलता है। निर्मला नाम की महिला की मेजर सर्जरी की गई थी। पर बच्ची नहीं। मर गई थी। लाश लेने कोई आया नही।लावारिश मांन कर मुर्दा घर भिजवा दी थी। रामू मुर्दा घर पहुंच कर अपना डेडबोडी का स्टॉक चेक करने लगता है। चारु की मां की लाश फ्रिज में मौजूद थी।

रामू की हालत खराब हो गई। आमतौर पर लाशों से पाला पड़ता रहता था। मगर चारु को क्या कहेगा l उस बेचारी पर क्या गुजरेगी। खेर जो भी हो। पुलिस की मदद से उसका दाह संस्कार करवा दिया। अग्नि की रस्म चारु ने ही पूरी की थी। इसके बाद क्या कुछ हुवा। कोई पता नही चला । रहा सवाल उस बच्ची के हाथ में लिया थैले का था। उसके भीतर बिस्किट के कुछ पैकिट थे। इसी की बदौलत अपनी भूख मिटा रही थी।चारु की याद कई दिनों तक सताती रही। तभी पुलिस से जानकारी मिली,उसे किसी एनजीओ को सोपा गया है। अपनी जिंदगी की अगली स्टोरी वहीं से शुरू करेगी



 

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